Rajneetik Baat-Bebaat

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Bhawesh Chand
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Bhawesh Chand
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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216

शब्द भी गरमी और ठंडक का एहसास देते हैं। कम समय में भवेश चंद ने अपनी प्रतिभा के बल पर अच्छी दूरी तय की है, लेकिन पत्रकारों के लिए कभी आसान रहा भी नहीं यह सफर। उस पर पत्रकार व्यंग्य लेखक हो जाए तो आप उसके शब्द सामर्थ्य का अंदाजा लगा सकते हैं। खास तौर से राजनीतिक विषयों पर लिखना एक बेहतर समझदारी से गुजरना है। इस किताब में ज्यादातर व्यंग्य राजनीतिक हैं। इसकी खासियत यह कि ये कहीं से भी बोझिल नहीं हैं और आप बीच में छोड़कर पन्ना पलटने का मन नहीं बना सकते। शब्द बाँधे रखते हैं और अंतिम पूर्णविराम तक आपको पहुँचाते हैं। हर दिन की बड़ी या चर्चित खबर की इतनी बारीक समझ कम पत्रकारों में दिखती है, जितनी यहाँ है। खबर के एनालिसिस से आगे की चीज है खबर पर व्यंग्य लिखना। ‘राजनीतिकबात-बेबात’ पुस्तक समय की नब्ज पर हाथ रखने की तरह है और समय की गरमाहट महसूस करने व कराने में समर्थ है। लेखक की मुट्ठी में जो समय है, वह बालू की तरह नहीं है। हाँ, ये व्यंग्य पढ़ते हुए आपको एहसास होगा कि क्या शब्द भी गरम और ठंडे होते हैं? आप कई व्यंग्य पढ़ते हुए महसूस करते हुए इसका जवाब पा सकेंगे। बिहार की राजनीति पर लिखते वक्त ऐसे शब्दों का प्रयोग बहुत सँभलकर करना होता है, लेखक ने सँभलकर लिखा है। उन्होंने शब्द हिसाब से खर्च किए हैं। तराशे हुए शब्द, चमकते शब्द और अँधेरे को दूर करते शब्द। इसमें आप बिहार की राजनीतिक उथल-पुथल भी महसूस कर सकते हैं और शासक के मिजाज से लेकर मनमानी तक को निशाने पर लेते हुए देख सकते हैं। —डॉ. प्रणय प्रियंवद युवा कवि एवं पत्रकार.

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Description

शब्द भी गरमी और ठंडक का एहसास देते हैं। कम समय में भवेश चंद ने अपनी प्रतिभा के बल पर अच्छी दूरी तय की है, लेकिन पत्रकारों के लिए कभी आसान रहा भी नहीं यह सफर। उस पर पत्रकार व्यंग्य लेखक हो जाए तो आप उसके शब्द सामर्थ्य का अंदाजा लगा सकते हैं। खास तौर से राजनीतिक विषयों पर लिखना एक बेहतर समझदारी से गुजरना है। इस किताब में ज्यादातर व्यंग्य राजनीतिक हैं। इसकी खासियत यह कि ये कहीं से भी बोझिल नहीं हैं और आप बीच में छोड़कर पन्ना पलटने का मन नहीं बना सकते। शब्द बाँधे रखते हैं और अंतिम पूर्णविराम तक आपको पहुँचाते हैं। हर दिन की बड़ी या चर्चित खबर की इतनी बारीक समझ कम पत्रकारों में दिखती है, जितनी यहाँ है। खबर के एनालिसिस से आगे की चीज है खबर पर व्यंग्य लिखना। ‘राजनीतिकबात-बेबात’ पुस्तक समय की नब्ज पर हाथ रखने की तरह है और समय की गरमाहट महसूस करने व कराने में समर्थ है। लेखक की मुट्ठी में जो समय है, वह बालू की तरह नहीं है। हाँ, ये व्यंग्य पढ़ते हुए आपको एहसास होगा कि क्या शब्द भी गरम और ठंडे होते हैं? आप कई व्यंग्य पढ़ते हुए महसूस करते हुए इसका जवाब पा सकेंगे। बिहार की राजनीति पर लिखते वक्त ऐसे शब्दों का प्रयोग बहुत सँभलकर करना होता है, लेखक ने सँभलकर लिखा है। उन्होंने शब्द हिसाब से खर्च किए हैं। तराशे हुए शब्द, चमकते शब्द और अँधेरे को दूर करते शब्द। इसमें आप बिहार की राजनीतिक उथल-पुथल भी महसूस कर सकते हैं और शासक के मिजाज से लेकर मनमानी तक को निशाने पर लेते हुए देख सकते हैं। —डॉ. प्रणय प्रियंवद युवा कवि एवं पत्रकार.

About Author

भवेश चंद जन्म: 01 मार्च, 1979 शिक्षा: पत्रकारिता में स्नातकोत्तर। संप्रति: हिंदुस्तान, पूर्णिया में संपादकीय प्रभारी। लेखन: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानियाँ और व्यंग्य प्रकाशित। कार्यानुभव: दैनिक जागरण, अमर उजाला और दैनिक भास्कर के संपादकीय विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया। कई शोधपरक खबरें प्रकाशित

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