Rahim – Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya

Publisher:
Rajpal and Sons
| Author:
Hada, Madhav
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajpal and Sons
Author:
Hada, Madhav
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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128

अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना जहाँ एक ओर मध्यकाल के उच्च कोटि के कवि थे तो दूसरी ओर वे मुग़ल बादशाह अकबर के एक महत्त्वपूर्ण दरबारी भी थे। घुड़सवारी, कुश्ती, तलवारबाज़ी जैसे सैन्य-कौशलों में सक्षम और सफल सैन्य-अभियानों का नेतृत्व करने वाले रहीम फ़ारसी, तुर्की, अरबी, संस्कृत, हिन्दी के अच्छे जानकार थे और कला व सौन्दर्य के पारखी भी। एक ही व्यक्ति में ऐसे विरोधाभासी गुण होना काफ़ी उल्लेखनीय है। और यह भी उल्लेखनीय है कि इस्लाम धर्म के अनुयायी होने के बावजूद उनकी कविताओं में उनका मुस्लिम होने का कहीं कोई संकेत नहीं मिलता। लेकिन सामंत-राजकीय जीवन, दरबारी उतार-चढ़ाव और उठापटक के उनके अनुभवों का प्रभाव उनकी कविता में अवश्य मिलता है। उनकी कविता का सरोकार धन-सम्पत्ति, सुख-दुःख, राजा-प्रजा, शत्रुता-मित्रता इत्यादि जैसे सांसारिक चिन्ताओं को दर्शाता है। यह ‘दुनियादारी’ रहीम की कविता की अपनी अलग पहचान है और इतनी सदियों बाद भी जो उनको आज भी प्रासंगिक बनाये हुए हैं।
इस पुस्तक का चयन व संपादन माधव हाड़ा ने किया है, जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे वहाँ की पत्रिका चेतना के संपादक हैं।

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अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना जहाँ एक ओर मध्यकाल के उच्च कोटि के कवि थे तो दूसरी ओर वे मुग़ल बादशाह अकबर के एक महत्त्वपूर्ण दरबारी भी थे। घुड़सवारी, कुश्ती, तलवारबाज़ी जैसे सैन्य-कौशलों में सक्षम और सफल सैन्य-अभियानों का नेतृत्व करने वाले रहीम फ़ारसी, तुर्की, अरबी, संस्कृत, हिन्दी के अच्छे जानकार थे और कला व सौन्दर्य के पारखी भी। एक ही व्यक्ति में ऐसे विरोधाभासी गुण होना काफ़ी उल्लेखनीय है। और यह भी उल्लेखनीय है कि इस्लाम धर्म के अनुयायी होने के बावजूद उनकी कविताओं में उनका मुस्लिम होने का कहीं कोई संकेत नहीं मिलता। लेकिन सामंत-राजकीय जीवन, दरबारी उतार-चढ़ाव और उठापटक के उनके अनुभवों का प्रभाव उनकी कविता में अवश्य मिलता है। उनकी कविता का सरोकार धन-सम्पत्ति, सुख-दुःख, राजा-प्रजा, शत्रुता-मित्रता इत्यादि जैसे सांसारिक चिन्ताओं को दर्शाता है। यह ‘दुनियादारी’ रहीम की कविता की अपनी अलग पहचान है और इतनी सदियों बाद भी जो उनको आज भी प्रासंगिक बनाये हुए हैं।
इस पुस्तक का चयन व संपादन माधव हाड़ा ने किया है, जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे वहाँ की पत्रिका चेतना के संपादक हैं।

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