Rag Darbari Aalochana Ki Phans (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Rekha Awasthi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Rekha Awasthi
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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‘राग दरबारी’ पर यह पहली आलोचना पुस्तक है। ‘राग दरबारी’ को लेकर हिन्दी समालोचना के क्षेत्र में जो तर्क-वितर्क और विवेचनात्मक वाग्युद्ध हुए हैं, उन्हें ऐतिहासिक क्रम से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। श्रीलाल शुक्ल पर लिखे गए शोध ग्रन्थों में भी यह सामग्री उपलब्ध नहीं होती है। अत: इस पुस्तक में राग दरबारी से सम्बन्धित तमाम बहसों की जाँच-पड़ताल की गई है।
‘राग दरबारी’ के प्रकाशन के तुरन्त बाद नेमिचन्द्र जैन और श्रीपत राय ने जो समीक्षाएँ लिखी थीं, उनसे कृति को लेकर भयंकर विवाद छिड़ गया था। इस पुस्तक में उस दौर की समीक्षाओं के अतिरिक्त अब तक के अनेक आलोचकों और सृजनकर्मियों के उन आलेखों और टिप्पणियों का संचयन-संकलन भी किया गया है जो अभी तक किसी पुस्तक में संगृहीत नहीं हैं। कथा समालोचना के मौजूदा स्वरूप का वस्तुपरक आकलन करने की दृष्टि से यह पुस्तक सार्थक और महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है।
इस संचयन-संकलन के चार खंड हैं। पहला खंड समालोचना पर केन्द्रित है। दूसरा खंड लोकप्रियता और व्याप्ति से सम्बन्धित है जिसके अन्तर्गत रंगकर्मी, फ़िल्म निर्देशक और अनुवादक के संस्मरण समेत पाठकों की प्रतिक्रियाओं का दिग्दर्शन करानेवाले लेख भी सम्मिलित हैं। तीसरा खंड बकलमख़ुद श्रीलाल शुक्ल के ख़ुद के वक्तव्यों को समेटता है और चौथा खंड शख़्सियत उनके व्यक्तित्व से सम्बन्धित टिप्पणियों और संस्मरणों को प्रस्तुत करता है। इतनी भरी-पूरी सामग्री के संचयन के कारण यह पुस्तक ‘राग दरबारी’ का आलोचनात्मक दर्पण बन गई है।

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Description

‘राग दरबारी’ पर यह पहली आलोचना पुस्तक है। ‘राग दरबारी’ को लेकर हिन्दी समालोचना के क्षेत्र में जो तर्क-वितर्क और विवेचनात्मक वाग्युद्ध हुए हैं, उन्हें ऐतिहासिक क्रम से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। श्रीलाल शुक्ल पर लिखे गए शोध ग्रन्थों में भी यह सामग्री उपलब्ध नहीं होती है। अत: इस पुस्तक में राग दरबारी से सम्बन्धित तमाम बहसों की जाँच-पड़ताल की गई है।
‘राग दरबारी’ के प्रकाशन के तुरन्त बाद नेमिचन्द्र जैन और श्रीपत राय ने जो समीक्षाएँ लिखी थीं, उनसे कृति को लेकर भयंकर विवाद छिड़ गया था। इस पुस्तक में उस दौर की समीक्षाओं के अतिरिक्त अब तक के अनेक आलोचकों और सृजनकर्मियों के उन आलेखों और टिप्पणियों का संचयन-संकलन भी किया गया है जो अभी तक किसी पुस्तक में संगृहीत नहीं हैं। कथा समालोचना के मौजूदा स्वरूप का वस्तुपरक आकलन करने की दृष्टि से यह पुस्तक सार्थक और महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है।
इस संचयन-संकलन के चार खंड हैं। पहला खंड समालोचना पर केन्द्रित है। दूसरा खंड लोकप्रियता और व्याप्ति से सम्बन्धित है जिसके अन्तर्गत रंगकर्मी, फ़िल्म निर्देशक और अनुवादक के संस्मरण समेत पाठकों की प्रतिक्रियाओं का दिग्दर्शन करानेवाले लेख भी सम्मिलित हैं। तीसरा खंड बकलमख़ुद श्रीलाल शुक्ल के ख़ुद के वक्तव्यों को समेटता है और चौथा खंड शख़्सियत उनके व्यक्तित्व से सम्बन्धित टिप्पणियों और संस्मरणों को प्रस्तुत करता है। इतनी भरी-पूरी सामग्री के संचयन के कारण यह पुस्तक ‘राग दरबारी’ का आलोचनात्मक दर्पण बन गई है।

About Author

रेखा अवस्थी

जन्म : 20 जून, 1947 को लालगंज, ज़िला : रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी), भाषा विज्ञान में डिप्लोमा तथा भागलपुर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 1968 से 1973 तक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और गृहमंत्रालय के केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो में काम किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेक कॉलेजों में अस्थायी प्राध्यापक पद पर कार्य करने के बाद स्थायी रूप से दयाल सिंह कॉलेज प्रात: (दिल्ली विश्वविद्यालय) में अध्यापन करते हुए जून, 2012 में सेवानिवृत्त। साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों और जन-आन्दोलनों में सक्रिय योगदान रहा है। फिलहाल जनवादी लेखक संघ की राष्ट्रीय सचिव और 'नया पथ’ के सम्पादक मंडल से सम्बद्ध।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘प्रगतिवाद और समानान्तर साहित्य’।

सम्पादित : ‘प्रेमचन्द : विगत महत्ता और वर्तमान अर्थवत्ता’, ‘श्रीलाल शुक्ल : जीवन ही जीवन’, ‘1857 : इतिहास, कला साहित्य’, ‘1857 : इतिहास और संस्कृति’, ‘1857 : बगावत के दौर का इतिहास’, ‘हिन्दी-उर्दू : साझा संस्कृति’, ‘फ़ैज़ की शायरी एक जुदा अन्दाज़ का जादू’, फ़ैज़ की
शख़्यित : अँधेरे में सुर्ख़ लौ’, ‘जाग उठे ख़्वाब कई’ (साहिर लुधियानवी की नज़्मों एवं गीतों का संग्रह)।

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