Priya Neelkanthi

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कुबेरनाथ राय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
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कुबेरनाथ राय
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9788119014439 Category
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128

प्रिया नीलकण्ठी –
ललित निबन्ध हिन्दी में कम ही लोगों ने लिखे हैं और ऐसे लेखक तो और भी कम हैं जिन्होंने सारी युगीन चेतना को आत्मसात् करके अभिव्यक्ति की इस एक ही विधा को समृद्ध किया है। कुबेरनाथ राय ऐसे ही विरल रचनाकार हैं, जिनका नाम ललित निबन्धों के साथ अब कुछ ऐसा जुड़ गया है कि दोनों संज्ञाएँ एक-दूसरे की पूरक-सी लगने लगी हैं। और, यही कारण है कि प्रस्तुत निबन्ध-संग्रह विशिष्ट हो गया है।
भारतीय जनजीवन के परम्परागत पैटर्न में जो रूपान्तरण आज हो रहा है उसकी ‘समग्र अनुभूति’ प्राप्त करने की चेष्टा ही ‘प्रिया नीलकण्ठी’ के निबन्धों की सृजन-प्रेरणा है। इस रूपान्तरण में ग्राम संस्कृति के सूखते रस-बोध का स्थान यन्त्र युग की बौद्धिकता लेती जा रही है, जिसने आज के व्यक्ति को अभिशप्त और निर्वासित जीवन जीने के लिए विवश किया है। यह सत्य है कि औद्योगिक संस्कृति के विकास के साथ-साथ बौद्धिकता का दायरा बढ़ता जायेगा, किन्तु ग्रामीण जीवन की उल्लास-साधना इतनी हेय और उपेक्षणीय नहीं कि इसे सूखने दिया जाये। अतः आधुनिक यन्त्रबोध से उत्पन्न ‘निर्वासन’ के भाव को जीवन की स्वीकारात्मक स्थितियों तक ले जाने के लिए एक नया ‘सम्पाती’ चाहिए, जो अपने पंख जल जाने पर भी निराश न हो और सत्य को स्वर्ण-मंजूषा में बन्द कर लाने के लिए प्रतिबद्ध रहे।
अवश्य ही सहज-विदग्ध शैली में लिखे गये इन निबन्धों को पढ़कर आपको परितोष मिलेगा।

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Description

प्रिया नीलकण्ठी –
ललित निबन्ध हिन्दी में कम ही लोगों ने लिखे हैं और ऐसे लेखक तो और भी कम हैं जिन्होंने सारी युगीन चेतना को आत्मसात् करके अभिव्यक्ति की इस एक ही विधा को समृद्ध किया है। कुबेरनाथ राय ऐसे ही विरल रचनाकार हैं, जिनका नाम ललित निबन्धों के साथ अब कुछ ऐसा जुड़ गया है कि दोनों संज्ञाएँ एक-दूसरे की पूरक-सी लगने लगी हैं। और, यही कारण है कि प्रस्तुत निबन्ध-संग्रह विशिष्ट हो गया है।
भारतीय जनजीवन के परम्परागत पैटर्न में जो रूपान्तरण आज हो रहा है उसकी ‘समग्र अनुभूति’ प्राप्त करने की चेष्टा ही ‘प्रिया नीलकण्ठी’ के निबन्धों की सृजन-प्रेरणा है। इस रूपान्तरण में ग्राम संस्कृति के सूखते रस-बोध का स्थान यन्त्र युग की बौद्धिकता लेती जा रही है, जिसने आज के व्यक्ति को अभिशप्त और निर्वासित जीवन जीने के लिए विवश किया है। यह सत्य है कि औद्योगिक संस्कृति के विकास के साथ-साथ बौद्धिकता का दायरा बढ़ता जायेगा, किन्तु ग्रामीण जीवन की उल्लास-साधना इतनी हेय और उपेक्षणीय नहीं कि इसे सूखने दिया जाये। अतः आधुनिक यन्त्रबोध से उत्पन्न ‘निर्वासन’ के भाव को जीवन की स्वीकारात्मक स्थितियों तक ले जाने के लिए एक नया ‘सम्पाती’ चाहिए, जो अपने पंख जल जाने पर भी निराश न हो और सत्य को स्वर्ण-मंजूषा में बन्द कर लाने के लिए प्रतिबद्ध रहे।
अवश्य ही सहज-विदग्ध शैली में लिखे गये इन निबन्धों को पढ़कर आपको परितोष मिलेगा।

About Author

कुबेरनाथ राय - प्रख्यात ललित निबन्धकार। जन्म: 1935, मतसा (गाजीपुर) उत्तर प्रदेश। प्रमुख रचनाएँ: मराल, प्रिया नीलकण्ठी, रस आखेटक, गन्धमादन, निषाद बाँसुरी, विषाद योग, पर्णमुकुट, महाकवि की तर्जनी, मणिपुतुल के नाम, किरात नदी पर चन्द्रमधु, मनपवन की नौका, दृष्टि अभिसार, त्रेता का बृहत्साम, उत्तर कुरु, अन्धकार में अग्निशिखा, वाणी का क्षीरसागर, कथा-मणि, कामधेनु और रामायण महातीर्थम् । उपलब्धियाँ: 'कामधेनु' भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित, इसी पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार। 'गन्धमादन', 'विषाद योग', 'पर्ण मुकुट' भी हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत। 'महाकवि की तर्जनी', मानस संगम कानपुर, साहित्य अनुसन्धान परिषद् कलकत्ता और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत। 'त्रेता का बृहत्साम' भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता से पुरस्कृत। निधन: 5 जून, 1996 गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)।

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