Prithvi Manthan : Vaishvik Bharat Banane Ki Kahani (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Aseem Shrivastava, Ashish Kothari, Tr. Yogendra Dutt
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Aseem Shrivastava, Ashish Kothari, Tr. Yogendra Dutt
Language:
Hindi
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Hardback

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यह एक बेहतरीन किताब है…कक्षा में मैं इसका प्रयोग किसी और पुस्तक से ज़्यादा करता हूँ।
—पी. साईनाथ; पत्रकार व लेखक
 
प्रचार-हमला को चीरती हुई यह किताब बताती है कि आज क्या हो रहा है।
—अमिताव घोष; लेखक
 
यह आज के विरोधी-धाराओं का एक महत्त्वपूर्ण वृत्तान्त है…इस पक्ष को सुनना और समझना ज़रूरी है।
—अरुणा रॉय; समाजकर्मी
 
वैश्वीकरण के विशाल पुस्तक-संग्रह में यह किताब बौद्धिक साहस और ईमान का एक कीर्तिमान है जो बेहतर दुनिया के लिए रास्ता दिखाती है।
—अमित भादुड़ी; अर्थशास्त्री
 
आज अगर गाँधी जी ज़‍िन्दा होते और ‘हिन्द स्वराज’ की रचना करते, तो उन्हें लगभग उन्हीं सवालों से जूझना पड़ता जो इस किताब में हैं।
—गणेश देवी; लेखक और भाषाविद्
 
यह किताब दर्शाती है कि इस वैश्विक युग में हमारी तथाकथित स्वेच्छा वस्तुत: कितनी पराधीन है…आज की दुनिया से चिन्तित किसी भी इनसान के लिए यह पुस्तक अनिवार्य है।
—मल्लिका साराभाई; नृत्यांगना और संस्कृतिकर्मी
 
आज के वैश्विक युग की तमाम तब्दीलियों के परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण संश्लेषण है…साथ ही इस किताब में एक वैकल्पिक दुनिया की कल्पना की गई है जिस पर गम्भीरता से सोचने और बहस करने की ज़रूरत है।
—माधव गाडगिल; पर्यावरणशास्त्री
 
यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और असरदार किताब है…लेखक जो व्यापक प्रमाण पेश करता है उसका हमें सामना करना होगा।
—हर्ष मंदर; समाजकर्मी  

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Description

यह एक बेहतरीन किताब है…कक्षा में मैं इसका प्रयोग किसी और पुस्तक से ज़्यादा करता हूँ।
—पी. साईनाथ; पत्रकार व लेखक
 
प्रचार-हमला को चीरती हुई यह किताब बताती है कि आज क्या हो रहा है।
—अमिताव घोष; लेखक
 
यह आज के विरोधी-धाराओं का एक महत्त्वपूर्ण वृत्तान्त है…इस पक्ष को सुनना और समझना ज़रूरी है।
—अरुणा रॉय; समाजकर्मी
 
वैश्वीकरण के विशाल पुस्तक-संग्रह में यह किताब बौद्धिक साहस और ईमान का एक कीर्तिमान है जो बेहतर दुनिया के लिए रास्ता दिखाती है।
—अमित भादुड़ी; अर्थशास्त्री
 
आज अगर गाँधी जी ज़‍िन्दा होते और ‘हिन्द स्वराज’ की रचना करते, तो उन्हें लगभग उन्हीं सवालों से जूझना पड़ता जो इस किताब में हैं।
—गणेश देवी; लेखक और भाषाविद्
 
यह किताब दर्शाती है कि इस वैश्विक युग में हमारी तथाकथित स्वेच्छा वस्तुत: कितनी पराधीन है…आज की दुनिया से चिन्तित किसी भी इनसान के लिए यह पुस्तक अनिवार्य है।
—मल्लिका साराभाई; नृत्यांगना और संस्कृतिकर्मी
 
आज के वैश्विक युग की तमाम तब्दीलियों के परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण संश्लेषण है…साथ ही इस किताब में एक वैकल्पिक दुनिया की कल्पना की गई है जिस पर गम्भीरता से सोचने और बहस करने की ज़रूरत है।
—माधव गाडगिल; पर्यावरणशास्त्री
 
यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और असरदार किताब है…लेखक जो व्यापक प्रमाण पेश करता है उसका हमें सामना करना होगा।
—हर्ष मंदर; समाजकर्मी  

About Author

असीम श्रीवास्तव

आप लेखक और अर्थशास्त्री हैं। दिल्ली के निवासी हैं। आपने भारत, अमेरिका और नॉर्वे में अर्थशास्त्र और फ़‍िलॉसफ़ी (फ़लसफ़ा) पढ़ाया है। कई सालों से आपका मुख्य काम पर्यावरण के संकट से जुड़ा रहा है। 2012 में आपकी अशीष कोठारी के साथ लिखी  किताब ‘चर्निंग दी अर्थ : द मेकिंग ऑफ़ ग्लोबल इंडिया’ (पेंगुइन वाइकिंग, दिल्ली) से प्रकाशित हुई। आजकल आप रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्राकृतिक दर्शन पर कि‍ताब लिख रहे हैं।

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