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Premchand : Dalit Jeevan Ki Kahaniya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रवींद्र कालिया, जितेंद्र श्रीवास्तव
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रवींद्र कालिया, जितेंद्र श्रीवास्तव
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹220 ₹198
Save: 10%
In stock
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10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788126340972
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
198
प्रेमचन्द दलित जीवन की कहानियाँ –
प्रेमचन्द को किसी विशेषण में नहीं बाँधा जा सकता। साहित्य का यह श्रमजीवी जीवनपर्यन्त अपनी क़लम को हथियार बना लड़ता रहा, समाज की हर रूढ़ि के ख़िलाफ़, हर उस विचार के ख़िलाफ़ जो प्रगतिशीलता में बाधक बनी।
प्रेमचन्द को हिन्दू समाज व्यवस्था के प्रति किसी प्रकार का भ्रम न था। वे एक ऐसे हिन्दुस्तान का स्वप्न देख रहे थे जिसमें किसी भी प्रकार की कोई ग़ुलामी न होगी, कोई किसी का जाति-धर्म अथवा लिंग के आधार पर शोषण नहीं कर सकेगा। यह अकारण नहीं है कि उन्होंने लिखा- ‘पुरोहितों के प्रभुत्व के दिन अब बहुत थोड़े रह गये हैं और समाज और राष्ट्र की भलाई इसी में है कि जाति से यह भेद-भाव, यह एकांगी प्रभुत्व, यह चूसने की प्रवृत्ति मिटायी जाये क्योंकि जैसा हम पहले कह चुके हैं, राष्ट्रीयता की पहली शर्त वर्ण-व्यवस्था, ऊँच-नीच के भेद और धार्मिक पाखण्ड की जड़ खोदना है।’
कहना न होगा कि 1990 के बाद भारतीय सामाजिक संरचना और राजनीति में जो बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ा, उसे आधी सदी पहले प्रेमचन्द ने देख लिया था। आज दलितों में आत्मसम्मान की भावना आ चुकी है। वे अपना हक़ जान चुके हैं और वे सरकार के नहीं, सरकार उनकी मोहताज़ हो गयी है। आज किसी दलित का शोषण उच्च वर्ण के लिए असम्भव व्यापार है। प्रेमचन्द का स्वप्न धीरे-धीरे सार्थक होता दीख रहा है। भारतीय समाज, ख़ासकर हिन्दू समाज का बदरंग चेहरा ठीक होने लगा है। लोगों को प्रेम की महत्ता और जाति-पाँति की निरर्थकता समझ में आने लगी है।
प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज, उसके जीवन, दुश्वारारियों पर पैनी निगाह रख लिखी कहानियाँ, संकलित हैं। प्रेमचन्द के शोधार्थियों व विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक एक संचयन की तरह है तो आम पाठकों के लिए भी बराबर की उपयोगी।
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Description
प्रेमचन्द दलित जीवन की कहानियाँ –
प्रेमचन्द को किसी विशेषण में नहीं बाँधा जा सकता। साहित्य का यह श्रमजीवी जीवनपर्यन्त अपनी क़लम को हथियार बना लड़ता रहा, समाज की हर रूढ़ि के ख़िलाफ़, हर उस विचार के ख़िलाफ़ जो प्रगतिशीलता में बाधक बनी।
प्रेमचन्द को हिन्दू समाज व्यवस्था के प्रति किसी प्रकार का भ्रम न था। वे एक ऐसे हिन्दुस्तान का स्वप्न देख रहे थे जिसमें किसी भी प्रकार की कोई ग़ुलामी न होगी, कोई किसी का जाति-धर्म अथवा लिंग के आधार पर शोषण नहीं कर सकेगा। यह अकारण नहीं है कि उन्होंने लिखा- ‘पुरोहितों के प्रभुत्व के दिन अब बहुत थोड़े रह गये हैं और समाज और राष्ट्र की भलाई इसी में है कि जाति से यह भेद-भाव, यह एकांगी प्रभुत्व, यह चूसने की प्रवृत्ति मिटायी जाये क्योंकि जैसा हम पहले कह चुके हैं, राष्ट्रीयता की पहली शर्त वर्ण-व्यवस्था, ऊँच-नीच के भेद और धार्मिक पाखण्ड की जड़ खोदना है।’
कहना न होगा कि 1990 के बाद भारतीय सामाजिक संरचना और राजनीति में जो बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ा, उसे आधी सदी पहले प्रेमचन्द ने देख लिया था। आज दलितों में आत्मसम्मान की भावना आ चुकी है। वे अपना हक़ जान चुके हैं और वे सरकार के नहीं, सरकार उनकी मोहताज़ हो गयी है। आज किसी दलित का शोषण उच्च वर्ण के लिए असम्भव व्यापार है। प्रेमचन्द का स्वप्न धीरे-धीरे सार्थक होता दीख रहा है। भारतीय समाज, ख़ासकर हिन्दू समाज का बदरंग चेहरा ठीक होने लगा है। लोगों को प्रेम की महत्ता और जाति-पाँति की निरर्थकता समझ में आने लगी है।
प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज, उसके जीवन, दुश्वारारियों पर पैनी निगाह रख लिखी कहानियाँ, संकलित हैं। प्रेमचन्द के शोधार्थियों व विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक एक संचयन की तरह है तो आम पाठकों के लिए भी बराबर की उपयोगी।
About Author
प्रधान सम्पादक - रवीन्द्र कालिया -
जन्म: 1 अप्रैल, 1939।
कथाकार, संस्मरण लेखक और यशस्वी सम्पादक। 30 से अधिक मौलिक व सम्पादित पुस्तकें प्रकाशित। कृतियाँ: 'नौ साल छोटी पत्नी', 'ग़रीबी हटाओ', 'चकैया नीम', 'ज़रा-सी रोशनी', 'गली कूचे', (कहानी); 'ख़ुदा सही सलामत है', 'ए.बी.सी.डी.', '17 रानडे रोड' (उपन्यास); 'कॉमरेड मोनालिसा', 'ग़ालिब छुटी शराब' (संस्मरण); 'तेरा क्या होगा कालिया' (व्यंग्य)।
सम्मान व पुरस्कार: 'लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान' (उ.प्र. हिन्दी संस्थान); 'साहित्य भूषण सम्मान' (उ.प्र. हिन्दी संस्थान); प्रेमचन्द सम्मान; 'पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सम्मान' (म.प्र. साहित्य अकादमी)।
सम्पादक - जितेन्द्र श्रीवास्तव -
जन्म: उत्तर प्रदेश के देवरिया में।
प्रकाशन: 'इन दिनों हालचाल', 'अनभै कथा', 'असुन्दर सुन्दर' (कविता); 'भारतीय समाज की 4 समस्याएँ और प्रेमचन्द', 'भारतीय राष्ट्रवाद और प्रेमचन्द', 'शब्दों में समय', 'आलोचना का मानुष मर्म' (आलोचना)।
पुरस्कार/सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली का 'कृति सम्मान', उ.प्र. हिन्दी संस्थान का 'रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार', 'भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार', उ.प्र. हिन्दी संस्थान का 'विजयदेव नारायण साही पुरस्कार', देवीशंकर अवस्थी आलोचना सम्मान आदि।
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