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Prem Piyush
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
भूपेन्द्र शंकर श्रीवास्तव
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
भूपेन्द्र शंकर श्रीवास्तव
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9788194928782
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
728
प्रेम पीयूष –
हर वह स्थल जहाँ-जहाँ तनु संग पल गुज़ारे थे, भ्रमण करता रहा। मन तनु के तृष्णा में तृषित था। क़दम कहीं भी ठहरते न थे। मन अशान्त हुआ जा रहा था। आज अशन की भी बुभुक्षा न थी। न सर्दता का ही प्रभाव था। जब सन्ध्याप्रकाश विस्तारित होने लगा तब एक नागा सम्प्रदाय के मठ में जा घुसा और सुलगते काष्ठ के सम्मुख धूनी लगाये एक नग्न नागा के सम्मुख जा बैठा। वह नागा भी इतेष के व्यक्तित्व से झलकते अवधूत को जान लिया। उसकी दीर्घायु को देखकर सब कुछ जान लिया। कोई प्रश्न न पूछकर अपितु सम्मान भाव से देखता रहा। लेकिन इतेष एकान्त और विश्राम चाहता था। अतः उसी तम्बू के नीचे बने प्रकोष्ठ में पहुँचकर विश्राम करने लगा। अवदीर्ण अवस्था में ही सो गया। जब ब्रह्मवेला से कुछ पूर्व का पहर गुज़रने लगा तब इतेष को एक स्वप्न और उसका अहसास हुआ जैसे तनु उसके सिरहाने बैठी हुई उसे पुचकार कर जगा रही हो और कह रही हो…इतेष तुम सो रहे हो। उठो देखो। मैं आ गयी हूँ। अब तो अपने संग ले चलो। सो रहे हो। जब शरीर था तब तुम कोई-न-कोई झूठ बोलकर स्वयं से विलग रखे। लेकिन अब आत्मरूप हूँ। अब कोई झूठ बोलकर मुझे मत बहलाना। अपने संग ही ले चलना।… —इसी उपन्यास से
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Description
प्रेम पीयूष –
हर वह स्थल जहाँ-जहाँ तनु संग पल गुज़ारे थे, भ्रमण करता रहा। मन तनु के तृष्णा में तृषित था। क़दम कहीं भी ठहरते न थे। मन अशान्त हुआ जा रहा था। आज अशन की भी बुभुक्षा न थी। न सर्दता का ही प्रभाव था। जब सन्ध्याप्रकाश विस्तारित होने लगा तब एक नागा सम्प्रदाय के मठ में जा घुसा और सुलगते काष्ठ के सम्मुख धूनी लगाये एक नग्न नागा के सम्मुख जा बैठा। वह नागा भी इतेष के व्यक्तित्व से झलकते अवधूत को जान लिया। उसकी दीर्घायु को देखकर सब कुछ जान लिया। कोई प्रश्न न पूछकर अपितु सम्मान भाव से देखता रहा। लेकिन इतेष एकान्त और विश्राम चाहता था। अतः उसी तम्बू के नीचे बने प्रकोष्ठ में पहुँचकर विश्राम करने लगा। अवदीर्ण अवस्था में ही सो गया। जब ब्रह्मवेला से कुछ पूर्व का पहर गुज़रने लगा तब इतेष को एक स्वप्न और उसका अहसास हुआ जैसे तनु उसके सिरहाने बैठी हुई उसे पुचकार कर जगा रही हो और कह रही हो…इतेष तुम सो रहे हो। उठो देखो। मैं आ गयी हूँ। अब तो अपने संग ले चलो। सो रहे हो। जब शरीर था तब तुम कोई-न-कोई झूठ बोलकर स्वयं से विलग रखे। लेकिन अब आत्मरूप हूँ। अब कोई झूठ बोलकर मुझे मत बहलाना। अपने संग ही ले चलना।… —इसी उपन्यास से
About Author
भूपेन्द्र शंकर श्रीवास्तव -
जन्म: 31 दिसम्बर, 1963 कप्तानगंज के ज़िले आज़मगढ़ में।
शिक्षा: एम.ए. (अर्थशास्त्र), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
प्रकाशित कृतियाँ: 'वह ज़िन्दगी', 'देवअनि' (उपन्यास) इलाहाबाद के प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह साहित्य भण्डार के उपक्रम विभा प्रकाशन से प्रकाशित।
गतिविधियाँ: विभिन्न समाचार-पत्रों में सम्पादक तथा उप-सम्पादक के रूप में कार्य किया। विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता। देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न रचनाओं व लघु उपन्यास का प्रकाशन।
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