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Prakriti Aur Antahprakriti

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सम्पादक - प्रभाकरन हेब्बार इल्लत
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सम्पादक - प्रभाकरन हेब्बार इल्लत
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789355181480 Category
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176

प्रकृति और अन्तःप्रकृति –
हमारे जीवन का स्वाभाविक समीकरण व सन्तुलन बदल गया है, बिगड़ गया है। प्रकृति के साथ हमारे मन का जो सम्बन्ध था, हमारी संस्कृति में जो रिश्ता था, वह आज के समय में ढीला होता जा रहा है। हमारे सम्बन्ध प्रकृतिपरक थे, पारिवारिक थे, उसमें प्रेम की गर्मी थी, मन की तरलता थी, भावों की भंगिमा थी। इसलिए ही वे सम्बन्ध ठोस आधार लिए हुए थे। कुमार वीरेन्द्र की कविता इसी बात की याद दिलाती है। कविता कहती है कि ‘हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, काका-काकी यहाँ तक कि माँ-बाप ने ही बताया है कि चाँद मामा है, नदी माँ है, बिल्ली मौसी है, कनखोज़र भाई है।’ इस प्रकार के भावात्मक सम्बन्धों को बचाने की ज़रूरत है। सबके नष्ट होते जाने के परिसर में उदय प्रकाश की कविता बचाने की बात करती है-“बचाना चाहिए तो बचाना चाहिए/गाँव में खेत, जंगल में पेड़, शहरों में हवा/पेड़ों में घोंसले, अख़बारों में सच्चाई/राजनीति में सिद्धान्त, प्रशासन में मनुष्यता/दाल में हल्दी।” कवि मन का सार इतना है कि मानव अपनी ‘प्रकृति और अन्तःप्रकृति’ को बचा, जीवन को सुन्दर बनायें। मानव अकेले में जीवन का श्रृंगार नहीं कर सकता है। जिस प्रकार विभिन्न सुरों से, वाद्य-यन्त्रों के नाद के सम्यक मिलन से संगीत सुरभित होता है, उसी प्रकार प्रकृति के वैभव की प्रचुरता में ही जीवन की आभा रहती है। कवित्व अपने समय का साक्षी अवश्य है। वह जीवन की प्रकट-अप्रकट सच्चाइयों का ज्वलन्त दस्तावेज़ है। उसमें समय के काले-सफ़ेद अनुभव अंकित होते हैं, जीवन के अभाव, विषमता का बयान होता है। इस बयान के साथ ही वह जीवन को बदरंग करने वाले सभी प्रकार के कुचक्रों की पोल खोल देता है, साथ ही संघर्ष का एक राजमार्ग प्रशस्त करता है।

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Description

प्रकृति और अन्तःप्रकृति –
हमारे जीवन का स्वाभाविक समीकरण व सन्तुलन बदल गया है, बिगड़ गया है। प्रकृति के साथ हमारे मन का जो सम्बन्ध था, हमारी संस्कृति में जो रिश्ता था, वह आज के समय में ढीला होता जा रहा है। हमारे सम्बन्ध प्रकृतिपरक थे, पारिवारिक थे, उसमें प्रेम की गर्मी थी, मन की तरलता थी, भावों की भंगिमा थी। इसलिए ही वे सम्बन्ध ठोस आधार लिए हुए थे। कुमार वीरेन्द्र की कविता इसी बात की याद दिलाती है। कविता कहती है कि ‘हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, काका-काकी यहाँ तक कि माँ-बाप ने ही बताया है कि चाँद मामा है, नदी माँ है, बिल्ली मौसी है, कनखोज़र भाई है।’ इस प्रकार के भावात्मक सम्बन्धों को बचाने की ज़रूरत है। सबके नष्ट होते जाने के परिसर में उदय प्रकाश की कविता बचाने की बात करती है-“बचाना चाहिए तो बचाना चाहिए/गाँव में खेत, जंगल में पेड़, शहरों में हवा/पेड़ों में घोंसले, अख़बारों में सच्चाई/राजनीति में सिद्धान्त, प्रशासन में मनुष्यता/दाल में हल्दी।” कवि मन का सार इतना है कि मानव अपनी ‘प्रकृति और अन्तःप्रकृति’ को बचा, जीवन को सुन्दर बनायें। मानव अकेले में जीवन का श्रृंगार नहीं कर सकता है। जिस प्रकार विभिन्न सुरों से, वाद्य-यन्त्रों के नाद के सम्यक मिलन से संगीत सुरभित होता है, उसी प्रकार प्रकृति के वैभव की प्रचुरता में ही जीवन की आभा रहती है। कवित्व अपने समय का साक्षी अवश्य है। वह जीवन की प्रकट-अप्रकट सच्चाइयों का ज्वलन्त दस्तावेज़ है। उसमें समय के काले-सफ़ेद अनुभव अंकित होते हैं, जीवन के अभाव, विषमता का बयान होता है। इस बयान के साथ ही वह जीवन को बदरंग करने वाले सभी प्रकार के कुचक्रों की पोल खोल देता है, साथ ही संघर्ष का एक राजमार्ग प्रशस्त करता है।

About Author

प्रभाकरन हेब्बार इल्लत जन्म : केरल के कण्णूर जिले के पाणप्पुपा गाँव में। शैक्षणिक योग्यताएं : एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अंग्रेज़ी), एम.ए. (भाषाविज्ञान), एम.ए. (अनुवाद अध्ययन), बी.एड., एम.फिल., पीएच. डी., पी.जी.डी.टी.एस., पी.जी. एन.एल.पी., यूजीसी नेट, स्लेट। प्रकाशित रचनाएँ : 1. निराला के काव्य निर्माण में वैदिक संस्कृति की भूमिका, 2. नारायणगुरु की यात्रा (पेरुंवडवम श्रीधरन के मलयालम 'नारायणम' का हिन्दी अनुवाद), 3. गंगा (के.पी. सुधीरा के मलयालम उपन्यास 'गंगा' का हिन्दी अनुवाद), 4. Rajaravi Varma : The Colossus of Indian Painting, 5. राजभाषा हिन्दी : विविध आयाम, 6. सिद्धार्थ (हेरमन हेस्से के 'सिद्धार्थ' उपन्यास का हिन्दी अनुवाद), 7. संस्कृति भाषा साहित्य, 8. नवत्युत्तर हिन्दी कविता की नूतन प्रवृत्तियाँ, 9. रामविलास शर्मा का अवदान, 10. मानवाधिकार और समकालीन हिन्दी कविता, 11. भाषा एवं साहित्य : विविध परिदृश्य, 12. आधुनिक हिन्दी कविता से साक्षात्कार, 13. पर्यावरण और समकालीन हिन्दी साहित्य,14. मानवाधिकार की राजनीति। पुरस्कार : 1. उत्तम शोध ग्रन्थ के लिए केरल हिन्दी साहित्य अकादमी का पुरस्कार (2001), 2. अनुवाद के लिए राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का पुरस्कार (2008), 3. हिन्दीतर लेखक हिन्दी पुरस्कार, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार (2013), 4. वालकृष्ण गोइन्का अनुवाद पुरस्कार (2015), 5. डॉ. सुनीताबाई आलोचना पुरस्कार (2020 ) । अनुसंधान : यूजीसी की दो कनिष्ठ परियोजनाएँ पूरी कीं, यूजीसी का रिसर्च पुरस्कार (2014), पोस्ट डॉक्टरल फेलो- केरल सरकार। सदस्यता : कण्णूर विश्वविद्यालय, कण्णूर एवं कालडी श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कालड़ी के बोर्ड ऑफ स्टडीज़ का सदस्य। रुचि : कविता, आलोचना, भाषाविज्ञान, अनुवाद । सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कुसाट, कोच्चिन, केरल-682022 स्थायी पता : पी.ओ. पाणप्पुपा, एम.एम. बाज़ार, कण्णूर जिला, केरल-670306 ई-मेल : drhebbarillath@gmail.com मो. : 9146661250, 9447661250

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