Photo Uncle (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Prem Bhardwaj
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Prem Bhardwaj
Language:
Hindi
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Hardback

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प्रेम भारद्वाज का कहानीकार मूलत: काव्यात्मक संवेदना से समृद्ध है। वे कहानी को न दूर बैठकर देखते हैं और न फ़ासला रखकर सुनाते हैं। महसूस करते हुए वे अपने समूचे वजूद के साथ उसमें डूब जाते हैं, और जब अपने कथ्य को लेकर पाठक के सामने उपस्थित होते हैं तो जैसे अपने पात्रों की पीड़ा को आपादमस्तक ओढ़कर स्वयं को ही प्रस्तुत करते हैं।
इस संग्रह में शामिल लगभग सभी कहानियाँ प्रेम भारद्वाज के बतौर एक संवेदनशील रचनाकार महसूस किए गए दर्द की छटपटाहट-भरी अभिव्यक्ति हैं। वह दर्द जो उन्होंने अपने आसपास, अपने समाज में, अपनी पढ़ी-लिखी और सरोकारों का व्यापार करनेवाली दुनिया में देखे और जाने हैं।
संकलन की शीर्षक कथा ‘फोटो अंकल’ को इस समय के कला-साहित्य और उसके समाज के अन्दरूनी अन्तर्विरोध के पोस्टमार्टम की तरह पढ़ा जा सकता है। कला अपने विषय का उपभोग कर अमर हो जाए, या विषय की विडम्बनाओं का हिस्सा होकर विलुप्त हो जाए, यह सवाल हमेशा से रचनाकार-मन को मथता रहा है। इस कहानी में लेखक ने इसे अपने आपसे एक बहस की तरह उठाया है, और पुन: उस घाव को कुरेद दिया है जो सच्चे कलाकार को अपनी ही निगाह में अपराधी किए रहता है।
संग्रह में शामिल अन्य कहानियाँ भी आज के समाज को कई-कई कोणों से देखने और दिखाने का सफल उद्यम करती हैं।
 

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Description

प्रेम भारद्वाज का कहानीकार मूलत: काव्यात्मक संवेदना से समृद्ध है। वे कहानी को न दूर बैठकर देखते हैं और न फ़ासला रखकर सुनाते हैं। महसूस करते हुए वे अपने समूचे वजूद के साथ उसमें डूब जाते हैं, और जब अपने कथ्य को लेकर पाठक के सामने उपस्थित होते हैं तो जैसे अपने पात्रों की पीड़ा को आपादमस्तक ओढ़कर स्वयं को ही प्रस्तुत करते हैं।
इस संग्रह में शामिल लगभग सभी कहानियाँ प्रेम भारद्वाज के बतौर एक संवेदनशील रचनाकार महसूस किए गए दर्द की छटपटाहट-भरी अभिव्यक्ति हैं। वह दर्द जो उन्होंने अपने आसपास, अपने समाज में, अपनी पढ़ी-लिखी और सरोकारों का व्यापार करनेवाली दुनिया में देखे और जाने हैं।
संकलन की शीर्षक कथा ‘फोटो अंकल’ को इस समय के कला-साहित्य और उसके समाज के अन्दरूनी अन्तर्विरोध के पोस्टमार्टम की तरह पढ़ा जा सकता है। कला अपने विषय का उपभोग कर अमर हो जाए, या विषय की विडम्बनाओं का हिस्सा होकर विलुप्त हो जाए, यह सवाल हमेशा से रचनाकार-मन को मथता रहा है। इस कहानी में लेखक ने इसे अपने आपसे एक बहस की तरह उठाया है, और पुन: उस घाव को कुरेद दिया है जो सच्चे कलाकार को अपनी ही निगाह में अपराधी किए रहता है।
संग्रह में शामिल अन्य कहानियाँ भी आज के समाज को कई-कई कोणों से देखने और दिखाने का सफल उद्यम करती हैं।
 

About Author

प्रेम भारद्वाज

5 अगस्त, 1965 को बिहार के ज़िला—छपरा, गाँव—विक्रम कैतुका में जन्मे प्रेम भारद्वाज साहित्यिक मासिक पत्रिका ‘पाखी’ के सम्पादक होने के साथ सशक्त कहानीकार भी थे।

प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा गाँव में ही हुई। पिता फ़ौजी होने के कारण छठी कक्षा के बाद की पढ़ाई देश के विभिन्न शहरों—दार्जिलिंग, दिल्ली, इलाहाबाद, चंडीगढ़, पटना आदि—में हुई। पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने हिन्दी में एम.ए. किया। पिता की असहमति के बावजूद साहित्य को ही जीवन का ध्येय बना लिया। पिछले दो दशकों की पत्रकारिता के दौरान कई पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। पटना में पत्रकारिता का आगाज करने के बाद कई वर्षों तक राजधानी दिल्ली में सत्ता के स्वभाव और संरचना को समझने और बची हुई संवेदना को छूने की जद्दोजहद में लगे रहे।

समसामयिक विषयों पर प्रचुर लेखन। प्रेम भारद्वाज ‘पाखी’ पत्रिका में अपने धारदार और जीवन्त सम्पादकीय के लिए भी बेहद लोकप्रिय थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए। ‘दि संडे पोस्ट’ साप्ताहिक से डेढ़ दशक से भी ज़्यादा समय से जुड़े रहे। कथा-लेखन में एक चर्चित और सक्रिय हस्ताक्षर माने जाते रहे। ‘पाखी’ से अलग होने के बाद ‘भवन्ति’ साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था, जिसका पहला अंक ही बहुचर्चित रहा।

इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं—‘इंतज़ार पाँचवें सपने का’, ‘फ़ोटो अंकल’ (कथा-संग्रह); ‘हाशिये पर हर्फ’ (लेख); ‘नामवर सिंह : एक मूल्यांकन’, ‘...हँसता हुआ अकेलापन’, ‘अनहोना शिल्प : अनहोनी कथाएँ’, ‘शोर के बीच संवाद’ (सम्पादन)।

निधन : 10 मार्च, 2020

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