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Phir Mausam Badla Hai
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सम्पादक दामोदर खड्से
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सम्पादक दामोदर खड्से
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹550 ₹385
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ISBN:
SKU
9789355189141
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
240
काव्य में मनुष्य की आत्मा बसती है। फिर गीतों और ग़ज़लों में भीतरी संवेदनाएँ शैली का शृंगार कर मन-मस्तिष्क में उतर जाती हैं कवि-गीतकार की संवेदनाएँ श्रोता एवं पाठक की ज़ुबान पर चढ़ जाती हैं और हर कोई इसे अपनी ही संवेदना समझने लगता है। एक तादात्म्य की यह स्थिति रचनाकार और पाठक को एक कर देती है। भावुकता की परिधि में एकाकार की यह स्थिति जीवन को गुनगुनाहट से भर देती है। प्रेम के उद्दाम शिखर पर बैठकर लिखी गयी रचनाएँ हर पीढ़ी को लुभाती रही हैं, फिर चाहे वह संयोग की बात हो या वियोग की। साथ ही व्यक्तिगत सुख-दुख से परे होकर अभिव्यक्ति जब सार्वजनिक हो जाती है तब वह केवल रचनाकार की नहीं रह जाती। समाज, समय और संस्कृति के मिथकों को लेकर रचनाएँ व्यापक हो उठती हैं, फिर प्रेम केवल एकान्तिक न होकर वह सार्वजनिक और सार्वकालिक बन जाता है। ऐसे कई-कई गीत रचे गये हैं, जिन्होंने हर पीढ़ी तक अपना संवेदना-सन्देश पहुँचाया है। विशेष रूप से असफलता और विसंगत क्षणों में रचना की आर्त्त भीतरी संवेदनाओं तक गूंजती रही है। फिर मौसम बदला है अनुभव, अनुभूति और अभिव्यक्ति की ग़ज़लों और गीतों से पूरित यह संवेदनाओं की लड़ियाँ साहित्य को भाव-विभोर और रस-विभोर कर देंगी। – सम्पादकीय से
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Description
काव्य में मनुष्य की आत्मा बसती है। फिर गीतों और ग़ज़लों में भीतरी संवेदनाएँ शैली का शृंगार कर मन-मस्तिष्क में उतर जाती हैं कवि-गीतकार की संवेदनाएँ श्रोता एवं पाठक की ज़ुबान पर चढ़ जाती हैं और हर कोई इसे अपनी ही संवेदना समझने लगता है। एक तादात्म्य की यह स्थिति रचनाकार और पाठक को एक कर देती है। भावुकता की परिधि में एकाकार की यह स्थिति जीवन को गुनगुनाहट से भर देती है। प्रेम के उद्दाम शिखर पर बैठकर लिखी गयी रचनाएँ हर पीढ़ी को लुभाती रही हैं, फिर चाहे वह संयोग की बात हो या वियोग की। साथ ही व्यक्तिगत सुख-दुख से परे होकर अभिव्यक्ति जब सार्वजनिक हो जाती है तब वह केवल रचनाकार की नहीं रह जाती। समाज, समय और संस्कृति के मिथकों को लेकर रचनाएँ व्यापक हो उठती हैं, फिर प्रेम केवल एकान्तिक न होकर वह सार्वजनिक और सार्वकालिक बन जाता है। ऐसे कई-कई गीत रचे गये हैं, जिन्होंने हर पीढ़ी तक अपना संवेदना-सन्देश पहुँचाया है। विशेष रूप से असफलता और विसंगत क्षणों में रचना की आर्त्त भीतरी संवेदनाओं तक गूंजती रही है। फिर मौसम बदला है अनुभव, अनुभूति और अभिव्यक्ति की ग़ज़लों और गीतों से पूरित यह संवेदनाओं की लड़ियाँ साहित्य को भाव-विभोर और रस-विभोर कर देंगी। – सम्पादकीय से
About Author
दामोदर खड़से
प्रकाशित कृतियाँ : कविता-संग्रह : अब वहाँ घोंसले हैं, सन्नाटे में रोशनी, तुम लिखो कविता, अतीत नहीं होती नदी, रात, नदी कभी नहीं सूखती, पेड़ को सब याद है, जीना चाहता है मेरा समय, लौटती आवाज़ें | कथा-संग्रह : भटकते कोलम्बस, आख़िर वह एक नदी थी, जन्मान्तर गाथा, इस जंगल में, गौरैया को तो गुस्सा नहीं आता, सम्पूर्ण कहानियाँ, यादगारी कहानियाँ, चुनी हुई कहानियाँ | उपन्यास : काला सूरज, भगदड़, बादल राग, खिड़कियाँ । यात्रा व भेंटवार्ता : जीवित सपनों का यात्री, एक सागर और, संवादों के बीच।
सम्मान : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली द्वारा 'बारोमास' के लिए अकादेमी पुरस्कार (अनुवाद) - 2015; महाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिन्दी सेवा सम्मान-2016 (महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी) साथ ही केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा; उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ; मध्य प्रदेश साहित्य परिषद्, भोपाल; महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी; प्रियदर्शनी, मुम्बई; नई धारा, पटना; अपनी भाषा, कोलकाता; गुरुकुल, पुणे; केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नयी दिल्ली आदि संस्थानों द्वारा सम्मानित ।
राइटर-इन- रेजीडेंस : महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में 'राइटर-इन- रेजीडेंस' के
रूप में नियुक्त ।
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