SaleSold outHardback
Phir Jeete Shri Ram
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Balveer Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Balveer Singh
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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Weight | 363 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
178
वह रात जागरण वाली थी जी हाँ! वह जागरण की ही रात थी। मुलायम सिंह जागते रहे थे इस चाव में कि कल 30 अक्तूबर को डेढ़ जिसकावर्णन सेवक भी उनकी प्रिय मसजिद की ओर नहीं बढ़ पाएगा तो मैं किन शब्दों में अपनी महान् विजय का बखान दूरदर्शन पर करूँगा। लाखों जिसकावर्णन सेवक जागते रहे इस ललक, उछाह और सौभाग्य की प्रतीक्षा में कि कब दिन निकले और हमें अपने आराध्य रामलला के श्रीचरणों में जीवन पुष्प चढ़ाने का सौभाग्य मिले। हवाएँ, तारक मालाएँ, अनंत आकाश और धवल चंद्रमा जागते रहे उन राम सेनानियों पर आशीषों की वर्षा करने में जो कल अपने प्राण हथेली पर लेकर निहत्थे मशीनगनों की गोलियों की बौछारों में सीने तानकर आगे बढ़ेंगे। और माँ सरयू जाग रही थी उस पावन रक्त के अपनी जलनाशि में आ मिलने की आशंका में दहती हुई जो कल अयोध्या की गलियों और उसके पुल पर बहने वाला है। उस रात तो स्वयं नींद भी जागी थी। पल-पल का मोल अमोल और अनमोल हो उठा था।.
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Description
वह रात जागरण वाली थी जी हाँ! वह जागरण की ही रात थी। मुलायम सिंह जागते रहे थे इस चाव में कि कल 30 अक्तूबर को डेढ़ जिसकावर्णन सेवक भी उनकी प्रिय मसजिद की ओर नहीं बढ़ पाएगा तो मैं किन शब्दों में अपनी महान् विजय का बखान दूरदर्शन पर करूँगा। लाखों जिसकावर्णन सेवक जागते रहे इस ललक, उछाह और सौभाग्य की प्रतीक्षा में कि कब दिन निकले और हमें अपने आराध्य रामलला के श्रीचरणों में जीवन पुष्प चढ़ाने का सौभाग्य मिले। हवाएँ, तारक मालाएँ, अनंत आकाश और धवल चंद्रमा जागते रहे उन राम सेनानियों पर आशीषों की वर्षा करने में जो कल अपने प्राण हथेली पर लेकर निहत्थे मशीनगनों की गोलियों की बौछारों में सीने तानकर आगे बढ़ेंगे। और माँ सरयू जाग रही थी उस पावन रक्त के अपनी जलनाशि में आ मिलने की आशंका में दहती हुई जो कल अयोध्या की गलियों और उसके पुल पर बहने वाला है। उस रात तो स्वयं नींद भी जागी थी। पल-पल का मोल अमोल और अनमोल हो उठा था।.
About Author
बलवीरसिंह ‘करुण’ जन्म: ज्येष्ठ शु. 10 (गंगा दशहरा), सं. 1995 वि. (07 जून, 1938) शिक्षा: एम.ए., बी.एड. व्यवसाय: राजस्थान शिक्षा विभाग में प्रधानाचार्य पद से सेवा-निवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन। प्रकाशित साहित्य: मैं द्रोणाचार्य बोलता हूँ (महाकाव्य), समरवीर गोकुला (महाकाव्य), विजयकेतु (खंडकाव्य), मैं उत्तरा (खंडकाव्य) तथा 10 अन्य काव्य कृतियाँ। उपन्यास: डीग का जौहर, ययाति, पांडव सखा श्रीकृष्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह। व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित। प्रमुख सम्मान एवं पुरस्कार: उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा दो लाख रुपए की राशि का अवंतीबाई सम्मान, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा एक लाख रुपए की राशि का डॉ. जनार्दनराय नागर सम्मान, पँवार वाणी फाउंडेशन, मेरठ का एक लाख रुपए का सम्मान, राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार, म.प्र. साहित्य अकादमी का पं. भवानीप्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार, बफेलो (अमेरिका) में हिंदी सेवी सम्मान तथा दर्जनों अन्य सम्मान एवं पुरस्कार।.
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