Phans

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
संजीव
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
संजीव
Language:
Hindi
Format:
Paperback

279

Save: 30%

In stock

Ships within:
10-12 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789352290000 Category
Category:
Page Extent:
258

हिन्दी-मराठी की सन्धि पर खड़ा संजीव का नया उपन्यास है। ‘फाँस’-सम्भवतः किसी भी भाषा में इस तरह का पहला उपन्यास। केन्द्र में है विदर्भ और समूचे देश में तीन लाख से ज्यादा हो चुकी किसानों की आत्महत्याएँ और 80 लाख से ज़्यादा किसानी छोड़ चुके भारतीय किसान। यह न स्विट्जरलैंड की ‘मीकिलिंग का मृत्यु उत्सव’ है, न ही असम के जोराथांगा की ज्वाला में परिन्दों के ‘सामूहिक आत्मदाह का उत्सर्ग पर्व’ । यह जीवन और जगत से लांछित और लाचार भारतीय किसान की मूक चीख है। विकास की अन्धी दौड़ में किसान और किसानी की सतत उपेक्षा, किसानों की आत्महत्या या खेती छोड़ देना सिर्फ अपने देश की ही समस्या नहीं है, पर अपने देश में है सबसे भयानक। यहाँ हीरो होंडा, मेट्रो और दूसरी उपभोक्ता सामग्रियों पर तो रियायतें हैं मगर किसानी पर नहीं। बिना घूस-पाती दिये न नौकरी मिलने वाली, न बिना दहेज दिये बेटी का ब्याह। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, हारी-बीमारी, सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती समस्याएँ! फर्ज और कर्ज के दलदल में डूबता ही चला जाता है विकल्पहीन जीवन। गले का फाँस बन गयी है खेती।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Phans”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

हिन्दी-मराठी की सन्धि पर खड़ा संजीव का नया उपन्यास है। ‘फाँस’-सम्भवतः किसी भी भाषा में इस तरह का पहला उपन्यास। केन्द्र में है विदर्भ और समूचे देश में तीन लाख से ज्यादा हो चुकी किसानों की आत्महत्याएँ और 80 लाख से ज़्यादा किसानी छोड़ चुके भारतीय किसान। यह न स्विट्जरलैंड की ‘मीकिलिंग का मृत्यु उत्सव’ है, न ही असम के जोराथांगा की ज्वाला में परिन्दों के ‘सामूहिक आत्मदाह का उत्सर्ग पर्व’ । यह जीवन और जगत से लांछित और लाचार भारतीय किसान की मूक चीख है। विकास की अन्धी दौड़ में किसान और किसानी की सतत उपेक्षा, किसानों की आत्महत्या या खेती छोड़ देना सिर्फ अपने देश की ही समस्या नहीं है, पर अपने देश में है सबसे भयानक। यहाँ हीरो होंडा, मेट्रो और दूसरी उपभोक्ता सामग्रियों पर तो रियायतें हैं मगर किसानी पर नहीं। बिना घूस-पाती दिये न नौकरी मिलने वाली, न बिना दहेज दिये बेटी का ब्याह। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, हारी-बीमारी, सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती समस्याएँ! फर्ज और कर्ज के दलदल में डूबता ही चला जाता है विकल्पहीन जीवन। गले का फाँस बन गयी है खेती।

About Author

संजीव 38 वर्षों तक एक रासायनिक प्रयोगशाला, 7 वर्षों तक 'हंस' समेत कई पत्रिकाओं के सम्पादन और स्तम्भ-लेखन से जुड़े संजीव का अनुभव संसार विविधता से भरा हुआ है, साक्षी हैं उनकी प्रायः 150 कहानियाँ और 12 उपन्यास । इसी विविधता और गुणवत्ता ने उन्हें पाठकों का चहेता बनाया है। इनकी कुछ कृतियों पर फिल्में बनी हैं, कई कहानियाँ और उपन्यास विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हैं। अपने समकालीनों में सर्वाधिक शोध भी उन्हीं की कृतियों पर हुए हैं। ‘कथाक्रम', 'पहल', 'अन्तरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा', 'सुधा-सम्मान' समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित... । नवीनतम है हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मानों में से एक इफको का श्रीलाल शुक्ल स्मृति साहित्य सम्मान-2013। अगर कथाकार संजीव की भावभूमि की बात की जाये तो यह उनके अपने शब्दों में ज्यादा तर्कसंगत, सशक्त और प्रभावी होगा- “मेरी रचनाएँ मेरे लिए साधन हैं, साध्य नहीं । साध्य है मानव मुक्ति ।” सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Phans”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED