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Pehle Tumhara Khilna
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
विजेन्द्र
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
विजेन्द्र
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹90 ₹89
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ISBN:
SKU
8126310855
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
पहले तुम्हारा खिलना –
विजेन्द्र हमारे समय के विशिष्ट कवि हैं जिनमें नवीनता की पूरी चेतना के साथ जातीय स्मृतियों को अपनी कविता में गूँथने का विरल कौशल है। विजेन्द्र की विशेषता है कि वे अपने अंचल के भूगोल, प्रकृति, परिवेश, मानवीय क्रियाओं, अनुभवों, मुहावरों के निकट अपने पाठक को सिर्फ़ ले जाते ही नहीं, बल्कि उनसे तादात्म्य कराते हैं। यह विजेन्द्र की बड़ी शक्ति है जो उन्हें अन्य कवियों से अलग करती है।
विजेन्द्र निरन्तर अन्वेषणशील कवि हैं। जीवन और रचना की परिपक्वता के बावजूद यह खोज उनमें जारी रहती है। उनकी कविता में एक ईमानदार नैतिक बोध एवं उदार व्यक्ति के असुरक्षा बोध का स्वर बहुत ऊँचा और परिपक्व है।
चाहे सुन्दरता हो या कुरूपता; विजेन्द्र अपनी कविताओं में बहुत ही प्रामाणिकता और बारीकी से इन्हें रूपायित करते हैं।
विजेन्द्र की काव्य-भाषा को लेकर हमेशा विवाद रहा है, क्योंकि वे काव्य-भाषा के साँचे को तोड़ते हैं। उनकी भाषा कथ्य के अनुरूप लोकांचलों की ओर सहज भ्रमण करती है। उसमें नयी लोकोन्मुख संस्कृति की विकसित होती छवियाँ भी बराबर दिखती हैं। वे कविता के संसार को नया ही नहीं बनातीं, उसमें अपने समय के यथार्थ को भी चित्रित करती है।
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Description
पहले तुम्हारा खिलना –
विजेन्द्र हमारे समय के विशिष्ट कवि हैं जिनमें नवीनता की पूरी चेतना के साथ जातीय स्मृतियों को अपनी कविता में गूँथने का विरल कौशल है। विजेन्द्र की विशेषता है कि वे अपने अंचल के भूगोल, प्रकृति, परिवेश, मानवीय क्रियाओं, अनुभवों, मुहावरों के निकट अपने पाठक को सिर्फ़ ले जाते ही नहीं, बल्कि उनसे तादात्म्य कराते हैं। यह विजेन्द्र की बड़ी शक्ति है जो उन्हें अन्य कवियों से अलग करती है।
विजेन्द्र निरन्तर अन्वेषणशील कवि हैं। जीवन और रचना की परिपक्वता के बावजूद यह खोज उनमें जारी रहती है। उनकी कविता में एक ईमानदार नैतिक बोध एवं उदार व्यक्ति के असुरक्षा बोध का स्वर बहुत ऊँचा और परिपक्व है।
चाहे सुन्दरता हो या कुरूपता; विजेन्द्र अपनी कविताओं में बहुत ही प्रामाणिकता और बारीकी से इन्हें रूपायित करते हैं।
विजेन्द्र की काव्य-भाषा को लेकर हमेशा विवाद रहा है, क्योंकि वे काव्य-भाषा के साँचे को तोड़ते हैं। उनकी भाषा कथ्य के अनुरूप लोकांचलों की ओर सहज भ्रमण करती है। उसमें नयी लोकोन्मुख संस्कृति की विकसित होती छवियाँ भी बराबर दिखती हैं। वे कविता के संसार को नया ही नहीं बनातीं, उसमें अपने समय के यथार्थ को भी चित्रित करती है।
About Author
विजेन्द्र -
जन्म: 10 जनवरी, 1935।
काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.। 'साहित्य रत्न' और 'साहित्य अलंकार'।
राजस्थान की विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में अध्यापन कार्य। 1993 में एन.डी.बी. राजकीय महाविद्यालय, नोहर (राज.) में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त।
कृतियाँ: 'त्रास' (1966), 'ये आकृतियाँ तुम्हारी' (1980), 'चैत की लाल टहनी' (1982), 'उठे गूमड़े नीले' (1983), 'धरती कामधेनु से प्यारी' (1990), 'ऋतु का पहला फूल' (1994), 'उदित क्षितिज पर' (सानेट संग्रह) (1996), 'घना के पाँखी' तथा 'कविता और मेरा समय' (2000) |
पुरस्कार सम्मान: राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च 'मीरा पुरस्कार' से पुरस्कृत। वहीं से विशिष्ट साहित्यकार के रूप में सम्मानित। 'पहल' सम्मान से अलंकृत। के. के. बिड़ला फाउंडेशन के 'बिहारी पुरस्कार' से सम्मानित।
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