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Patthalgarhi
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अनुज लुगुन
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अनुज लुगुन
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹209
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In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789355181015
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
120
औपनिवेशिक समय में जब शासन ने आदिवासियों से उनकी जमीन का मालिकाना सबूत माँगा तो कचहरी में आदिवासियों के साथ पत्थर भी खड़े हुए। अंग्रेजों की अदालत ने आदिवासियों के पक्ष में पत्थरों की गवाही को स्वीकार नहीं किया। उनकी जमीन पर सेंध लगाने के लिए अंग्रेज़ों ने उनके पत्थरों के प्रयोग पर निषेध लगाया। उसके बाद जब-जब आदिवासियों ने अपनी ज़मीन का दावा किया, तब-तब शासन ने उनकी ‘पत्थलगड़ी’ पर निषेध लगाया। सहजीविता और स्वायत्तता को कुचलने की शासन की साजिश बहुत पुरानी है। दुखद है कि आज भी कई आदिवासी गाँव ‘पत्थलगड़ी’ करने के आरोप में देशद्रोही माने गये हैं। आज जब फिर से आदिवासियों से उनकी जमीन का पट्टा माँगा जा रहा है तो पत्थर फिर से उनके पक्ष में गवाही के लिए खड़े हुए हैं। इस बार आदिवासियों के साथ केवल पत्थर ही नहीं खड़े हैं बल्कि उनके साथ कविता भी खड़ी हो गयी है।
अब कविता के स्वभाव पर बात करने के लिए ज़रूरी हो गया है कि पत्थरों के स्वभाव की बात की जाये। पत्थर सिर्फ आदिवासी जीवन के गवाह नहीं हैं। वे छाँव देने वाले पेड़ों के बारे में जानते हैं। वे नदियों के बारे में जानते हैं जिनके गर्भ में केवल मछलियाँ ही नहीं होतीं बल्कि किसानों के सहोदर भी होते हैं। वे जंगलों, पहाड़ों और सम्पूर्ण पारिस्थितिकी के बारे में जानते हैं। वे समूची मानव सभ्यता के गवाह हैं। वे मनुष्य की भूख के बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं। वे मनुष्य के भटकाव को जानते हैं। वही हैं जो गलत रास्ते पर चलते हुए राहगीरों के पाँव में ठोकर बनकर लगते हैं और नये रास्तों की खोज कराते हैं।
यह पत्थरों पर निषेध लगाने का सरकारी समय है। यह पत्थरों को सभ्यता के नाम पर जमींदोज कर देने का क्रूर समय है। ऐसे में कविता वस्तुओं की नक्काशी की कविता नहीं हो सकती। पत्थरों से देव- मूर्तियों का शिल्प उकेरने की कविता तो कतई नहीं हो सकती। यह सत्य के पक्ष में गवाही देने वाले की अनगढ़ता को स्वीकारने वाली कविता होगी।
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Description
औपनिवेशिक समय में जब शासन ने आदिवासियों से उनकी जमीन का मालिकाना सबूत माँगा तो कचहरी में आदिवासियों के साथ पत्थर भी खड़े हुए। अंग्रेजों की अदालत ने आदिवासियों के पक्ष में पत्थरों की गवाही को स्वीकार नहीं किया। उनकी जमीन पर सेंध लगाने के लिए अंग्रेज़ों ने उनके पत्थरों के प्रयोग पर निषेध लगाया। उसके बाद जब-जब आदिवासियों ने अपनी ज़मीन का दावा किया, तब-तब शासन ने उनकी ‘पत्थलगड़ी’ पर निषेध लगाया। सहजीविता और स्वायत्तता को कुचलने की शासन की साजिश बहुत पुरानी है। दुखद है कि आज भी कई आदिवासी गाँव ‘पत्थलगड़ी’ करने के आरोप में देशद्रोही माने गये हैं। आज जब फिर से आदिवासियों से उनकी जमीन का पट्टा माँगा जा रहा है तो पत्थर फिर से उनके पक्ष में गवाही के लिए खड़े हुए हैं। इस बार आदिवासियों के साथ केवल पत्थर ही नहीं खड़े हैं बल्कि उनके साथ कविता भी खड़ी हो गयी है।
अब कविता के स्वभाव पर बात करने के लिए ज़रूरी हो गया है कि पत्थरों के स्वभाव की बात की जाये। पत्थर सिर्फ आदिवासी जीवन के गवाह नहीं हैं। वे छाँव देने वाले पेड़ों के बारे में जानते हैं। वे नदियों के बारे में जानते हैं जिनके गर्भ में केवल मछलियाँ ही नहीं होतीं बल्कि किसानों के सहोदर भी होते हैं। वे जंगलों, पहाड़ों और सम्पूर्ण पारिस्थितिकी के बारे में जानते हैं। वे समूची मानव सभ्यता के गवाह हैं। वे मनुष्य की भूख के बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं। वे मनुष्य के भटकाव को जानते हैं। वही हैं जो गलत रास्ते पर चलते हुए राहगीरों के पाँव में ठोकर बनकर लगते हैं और नये रास्तों की खोज कराते हैं।
यह पत्थरों पर निषेध लगाने का सरकारी समय है। यह पत्थरों को सभ्यता के नाम पर जमींदोज कर देने का क्रूर समय है। ऐसे में कविता वस्तुओं की नक्काशी की कविता नहीं हो सकती। पत्थरों से देव- मूर्तियों का शिल्प उकेरने की कविता तो कतई नहीं हो सकती। यह सत्य के पक्ष में गवाही देने वाले की अनगढ़ता को स्वीकारने वाली कविता होगी।
About Author
जन्म : 10 जनवरी, 1986 को सिमडेगा (झारखण्ड) के जलडेगा पहानटोली गाँव में।
शिक्षा : मैट्रिक सेंट वियान्नी हाई स्कूल, लचरागढ़ से। इंटर और स्नातक सेंट जेवियर्स कॉलेज, राँची से। एम.ए. और पीएच.डी. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से। पीएच.डी. का विषय रहा : मुण्डारी आदिवासी गीतों में जीवन राग एवं आदिम आकांक्षाएँ ।
प्रकाशित पुस्तक : बाघ और सुगना मुण्डा की बेटी। सम्मान : 1. भारत भूषण अग्रवाल सम्मान 2011, नयी दिल्ली, 2. सावित्री त्रिपाठी स्मृति सम्मान 2014, बनारस, 3. भारतीय भाषा परिषद् का युवा सम्मान 2018, कोलकाता, 4. साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2019, नयी दिल्ली ।
स्तम्भ लेखन : दैनिक अख़बार 'प्रभात खबर' में स्तम्भ लेखन ।
सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गया ।
सम्पर्क : गाँव : जलडेगा पहानटोली,
जिला : सिमडेगा (झारखण्ड)। ईमेल: martialartanuj@gmail.com मोबाइल: +91-7677570764
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