Pashchatya Kavya Chintan (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Karunashankar Upadhyay
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
Author:
Karunashankar Upadhyay
Language:
Hindi
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Hardback

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भारतीय काव्यशास्त्र की भाँति पाश्चात्य काव्य-चिन्तन की भी एक सुदीर्घ, समृद्ध एवं विस्तीर्ण परम्परा है जिसके विकास में पाश्चात्य विचारकों एवं काव्यान्दोलनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। पाश्चात्य विचारकों तथा आलोचकों ने अत्यन्त प्राचीन काल से काव्य तथा कलाकृतियों में निहित सौन्दर्य-तत्त्व की विभिन्न दृष्टिकोणों से गहराई में जाकर छानबीन की है और काव्य-चिन्तन के अनेकों शिखर पार किए हैं। पाश्चात्य काव्य-चिन्तन के इस व्यापक फलक के निर्माण में विविध चिन्तन-सरणियों, विचारधाराओं, कवि-स्वभावों, संस्कारों एवं देशकाल की परिस्थितियों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है।
पाश्चात्य मनीषा ने काव्य-चिन्तन के क्षेत्र में सदैव प्रयोग किए हैं और अपनी गतिशील सोच द्वारा परम्परा के साथ घात-प्रतिघात करते हुए उसे पुरस्कृत किया है। इन काव्यान्दोलनों का महत्त्व पाश्चात्य विचारकों के योगदान की तुलना में ज़्यादा ही है, क्योंकि प्लेटो से लेकर जैक्स देरिदा तक यदि विचारकों की एक सुदीर्घ शृंखला उपलब्ध होती है तो काव्यान्दोलनों की परम्परा और भी ज़्यादा समृद्ध तथा विस्मयकारी है।
ऐसी स्थिति में इन काव्यान्दोलनों के समस्त आयामों को समेटते हुए उन्हें एक सूत्र में पिरोकर प्रस्तुत करने की अपेक्षा बरकरार है। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिशा में एक सार्थक प्रयास है।

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Description

भारतीय काव्यशास्त्र की भाँति पाश्चात्य काव्य-चिन्तन की भी एक सुदीर्घ, समृद्ध एवं विस्तीर्ण परम्परा है जिसके विकास में पाश्चात्य विचारकों एवं काव्यान्दोलनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। पाश्चात्य विचारकों तथा आलोचकों ने अत्यन्त प्राचीन काल से काव्य तथा कलाकृतियों में निहित सौन्दर्य-तत्त्व की विभिन्न दृष्टिकोणों से गहराई में जाकर छानबीन की है और काव्य-चिन्तन के अनेकों शिखर पार किए हैं। पाश्चात्य काव्य-चिन्तन के इस व्यापक फलक के निर्माण में विविध चिन्तन-सरणियों, विचारधाराओं, कवि-स्वभावों, संस्कारों एवं देशकाल की परिस्थितियों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है।
पाश्चात्य मनीषा ने काव्य-चिन्तन के क्षेत्र में सदैव प्रयोग किए हैं और अपनी गतिशील सोच द्वारा परम्परा के साथ घात-प्रतिघात करते हुए उसे पुरस्कृत किया है। इन काव्यान्दोलनों का महत्त्व पाश्चात्य विचारकों के योगदान की तुलना में ज़्यादा ही है, क्योंकि प्लेटो से लेकर जैक्स देरिदा तक यदि विचारकों की एक सुदीर्घ शृंखला उपलब्ध होती है तो काव्यान्दोलनों की परम्परा और भी ज़्यादा समृद्ध तथा विस्मयकारी है।
ऐसी स्थिति में इन काव्यान्दोलनों के समस्त आयामों को समेटते हुए उन्हें एक सूत्र में पिरोकर प्रस्तुत करने की अपेक्षा बरकरार है। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिशा में एक सार्थक प्रयास है।

About Author

करुणाशंकर उपाध्याय

डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय का जन्म 15 अप्रैल, 1968 को घोरका तालुकदारी, शिवगढ़, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ। ‘पाश्चात्य काव्य चिन्तन के विविध आन्दोलन’ विषय पर उन्होंने पोस्ट डॉक्टरल किया है। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘सर्जना की परख’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता में काव्य चिन्तन’, ‘मध्यकालीन काव्य : चिन्तन और संवेदना’, ‘पाश्चात्य काव्य-चिन्तन’, ‘विविधा’, ‘आधुनिक कविता का पुनर्पाठ’, ‘हिन्दी कथा साहित्य का पुनर्पाठ’, ‘हिन्दी का विश्व सन्दर्भ’, ‘आवाँ विमर्श’, ‘हिन्दी साहित्य : मूल्यांकन और मूल्यांकन’, ‘ब्लैकहोल विमर्श’, ‘सृजन के अनछुए सन्दर्भ’, ‘साहित्य और संस्कृति के सरोकार’, ‘पाश्चात्य काव्य चिन्तन : आभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकतावाद तक’, ‘अप्रतिम भारत’, ‘चित्रा मुद्गल संचयन’, ‘गोरखबानी’, ‘मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ’। उन्होंने ‘मानव मूल्यपरक शब्दावली का विश्वकोश’, ‘तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोश’ का सहलेखन और कई पुस्तकों का सम्पादन किया है।
उन्हें महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का ‘बाबूराव विष्णु पराडकर पुरस्कार’, ‘हिन्दी सेवी सम्मान’, ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान’, ‘विश्व हिन्दी सेवा सम्मान’, ‘व्यंग्य यात्रा सम्मान’, ‘मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान’, ‘विद्यापति कवि कोकिल सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का ‘पद्मश्री अनन्त गोपाल शेवड़े सम्मान’, ‘पुस्तक भारती संस्थान’, कनाडा का ‘प्रो. नीलू गुप्ता सम्मान’ आदि कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
सम्प्रति : प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय।
ई-मेल : dr.krupadhyay@gmail.com

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