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Publisher:
Lokbharti
| Author:
RAM KATHIN SINGH
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
RAM KATHIN SINGH
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Hindi
Format:
Hardback
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9788119133253
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Category: Hindi
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जब पूर्वांचल में सूती-मिल की स्थापना हुई, तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सैकड़ों लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियाँ मिलीं। रहने के लिए घर, बिजली-पानी आदि अनेक सुविधाएँ उन्हें प्राप्त हुईं। वे खुश थे। पर उनकी खुशी दीर्घकालिक न रह सकी। मिल अपने जीवन के दो दशक भी पूरे नहीं कर पाई और दम तोड़ दिया। लोग बेघर और बेरोज़गार हो गए। लोगों का परिवार बिखर गया। उन्हीं में एक परिवार पद्मिनी का भी था। उसके भी सपने टूटकर बिखर गए थे। उसी की कहानी से शुरू होता है, यह उपन्यास। पद्मिनी को किन्हीं कारणवश बहुत छोटी उम्र में ही माँ-बाप का घर छोड़कर नाना-नानी के साथ रहने के लिए विवश होना पड़ा था। उसके पिता मिल में अधिकारी थे। उनकी आय का एकमात्र स्रोत सूती-मिल जब बन्द हो गई, तब उसका परिवार एक गहरे संकट में पड़ गया। पद्मिनी की परेशानियाँ तब और भी बढ़ गई थीं।पद्मिनी की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, उसके साथ ही मिल से जुड़े अनेक चेहरे जैसे : दयालु चाचा, मार्कण्डेय भाई, राय साहब, संतोष, भीमसेन, आदि एक-एक कर किरदार बनकर खड़े होते जाते हैं। उनका संघर्ष, उनकी पीड़ा और उनके आँसू शब्द बनकर स्वयं ही कहानी रचने लगते हैं। उनकी कहानियाँ अनेक सवाल भी उठाती हैं : मिलों-कारखानों में मजदूरों के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलन, क्या सचमुच उनके हित-साधक होते हैं? मरजादपुर सूती-मिल बन्द कराकर आखिर किसका फायदा हुआ? …मजदूरों का? कर्मचारियों का? या पूर्वांचल के लोगों का? नहीं! इनमें से किसी का भी नहीं। हाँ, कुछ की तिजोरियाँ अवश्य भर गईं और कुछ लोगों की नेतागिरी भी खूब चमकी। किन्तु, जो जानें गईं, विकलांग हुए, परिवार उजड़े, उन सबका जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने नहीं चाहिए?
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जब पूर्वांचल में सूती-मिल की स्थापना हुई, तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सैकड़ों लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियाँ मिलीं। रहने के लिए घर, बिजली-पानी आदि अनेक सुविधाएँ उन्हें प्राप्त हुईं। वे खुश थे। पर उनकी खुशी दीर्घकालिक न रह सकी। मिल अपने जीवन के दो दशक भी पूरे नहीं कर पाई और दम तोड़ दिया। लोग बेघर और बेरोज़गार हो गए। लोगों का परिवार बिखर गया। उन्हीं में एक परिवार पद्मिनी का भी था। उसके भी सपने टूटकर बिखर गए थे। उसी की कहानी से शुरू होता है, यह उपन्यास। पद्मिनी को किन्हीं कारणवश बहुत छोटी उम्र में ही माँ-बाप का घर छोड़कर नाना-नानी के साथ रहने के लिए विवश होना पड़ा था। उसके पिता मिल में अधिकारी थे। उनकी आय का एकमात्र स्रोत सूती-मिल जब बन्द हो गई, तब उसका परिवार एक गहरे संकट में पड़ गया। पद्मिनी की परेशानियाँ तब और भी बढ़ गई थीं।पद्मिनी की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, उसके साथ ही मिल से जुड़े अनेक चेहरे जैसे : दयालु चाचा, मार्कण्डेय भाई, राय साहब, संतोष, भीमसेन, आदि एक-एक कर किरदार बनकर खड़े होते जाते हैं। उनका संघर्ष, उनकी पीड़ा और उनके आँसू शब्द बनकर स्वयं ही कहानी रचने लगते हैं। उनकी कहानियाँ अनेक सवाल भी उठाती हैं : मिलों-कारखानों में मजदूरों के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलन, क्या सचमुच उनके हित-साधक होते हैं? मरजादपुर सूती-मिल बन्द कराकर आखिर किसका फायदा हुआ? …मजदूरों का? कर्मचारियों का? या पूर्वांचल के लोगों का? नहीं! इनमें से किसी का भी नहीं। हाँ, कुछ की तिजोरियाँ अवश्य भर गईं और कुछ लोगों की नेतागिरी भी खूब चमकी। किन्तु, जो जानें गईं, विकलांग हुए, परिवार उजड़े, उन सबका जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने नहीं चाहिए?
About Author
रामकठिन सिंह
जन्म : 1 फरवरी, 1942, ग्राम-ताजोपुर, जनपद-मऊ (उ.प्र.)
शिक्षा : एम.एस-सी. (कृषि), रोस्टक विश्वविद्यालय (जर्मनी) से पी-एच.डी.
गतिविधियाँ : कई वर्षों तक हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में अध्यापन एवं शोध-कार्य; नरेन्द्रदेव कृषि-विश्वविद्यालय, फैजाबाद में निदेशक (शोध); अन्तरराष्ट्रीय धान-अनुसंधान-संस्थान, फिलीपीन्स के प्रतिनिधि एवं परियोजना-संयोजक, राष्ट्रीय कृषि-विज्ञान-अकादमी, नयी दिल्ली के सचिव, उपाध्यक्ष आदि पदों पर कार्य करने का अनुभव; 200 से अधिक शोध-पत्र एवं 20 पुस्तकें प्रकाशित।
साहित्य सेवा : 'मेरी गुड़िया' हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत, खण्डकाव्य, 'तारे जमीं के'–बालकाव्य संग्रह, 'आस-पास', बूढ़ी आवाज, 'मेरी आवाज सुनो' – कहानी संग्रह। 'झाँककर जो देखा'- लघुकथा संग्रह।
प्रधान सम्पादक शब्दिता'–अर्द्धवार्षिक साहित्यिक पत्रिका', नन्द प्रसार ज्योति–अर्द्धवार्षिक कृषि-विज्ञान पत्रिका।
सम्मान : महिन्द्रा समृद्धि इण्डिया-एग्री अवार्ड-2012; लोकमत सम्मान-2018; सिपानी एग्री-एशिया कृषि-अनुसंधान सम्मान-2005, पूर्वांचल साहित्य परिषद्, मऊ द्वारा सारस्वत सम्मान-2012; सुधाविन्दु सम्मान-2013; अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य कला-मंच द्वारा साहित्यकार सम्मान-2013 (काठमाण्डू, नेपाल) 'डॉ. रामप्यारे तिवारी स्मृति-सम्मान-2013' साहित्य भूषण सम्मान-2014 (उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा ) इत्यादि।
सम्प्रति : निदेशक, नन्द एजुकेशनल फाउण्डेशन फार रूरल डेवलपमेण्ट (नेफोर्ड), 1, देवलोक कॉलोनी, चर्च रोड, विष्णुपुरी, अलीगंज, लखनऊ-226022, उत्तर प्रदेश (भारत)
ईमेल : rksingh.neford@gmail.com
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