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Pahala Path (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Bhishma Sahni
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Bhishma Sahni
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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इतिहास के जिस मोड़ पर यह कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ था, वह भारत के राजनीतिक-सामाजिक जीवन का सन्धि-काल था। आज़ादी के बाद का पहला दशक, जिसके साल 1957 में यह संग्रह प्रकाशित हुआ। इसी संग्रह में भीष्म जी की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से एक ‘चीफ़ की दावत’ प्रकाशित हुई, जो मध्यवर्ग की कैरियरिस्ट विडम्बनाओं और पारिवारिक मूल्यों के तेज़ी से बदलने की प्रक्रिया को बारीकी और मार्मिकता से पकड़ने के लिए आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। बाद में इसके आलावा भी भीष्म जी की क़लम से ऐसी कहानियों की रचना हुई जो न सिर्फ़ अपनी संरचना, बल्कि अपनी पठनीयता के नज़रिए से भी मील का पत्थर साबित हुई।
इस संग्रह में संकलित कहानियाँ, उन तमाम विशेषताओं को कहीं-न-कहीं रेखांकित करती हैं, जो बीच-बीच में उनकी कालजयी कथा-रचनाओं में एक साथ उपस्थित होती रही हैं। इन कहानियों ने बताया था कि भीष्म जी ने अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को कहानी की नहीं, अपनी दृष्टि की पहचान बनाया। इसीलिए ये कहानियाँ बावजूद इसके कि लेखक के सोचने का अपना एक अनुशासन है, अपनी नियति की तरफ स्वतंत्र रूप से बढ़ती हैं, और उपदेश के बजाय जीवन को एक नई जगह से देखने का विकल्प सुझाती हैं।

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Description

इतिहास के जिस मोड़ पर यह कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ था, वह भारत के राजनीतिक-सामाजिक जीवन का सन्धि-काल था। आज़ादी के बाद का पहला दशक, जिसके साल 1957 में यह संग्रह प्रकाशित हुआ। इसी संग्रह में भीष्म जी की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से एक ‘चीफ़ की दावत’ प्रकाशित हुई, जो मध्यवर्ग की कैरियरिस्ट विडम्बनाओं और पारिवारिक मूल्यों के तेज़ी से बदलने की प्रक्रिया को बारीकी और मार्मिकता से पकड़ने के लिए आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। बाद में इसके आलावा भी भीष्म जी की क़लम से ऐसी कहानियों की रचना हुई जो न सिर्फ़ अपनी संरचना, बल्कि अपनी पठनीयता के नज़रिए से भी मील का पत्थर साबित हुई।
इस संग्रह में संकलित कहानियाँ, उन तमाम विशेषताओं को कहीं-न-कहीं रेखांकित करती हैं, जो बीच-बीच में उनकी कालजयी कथा-रचनाओं में एक साथ उपस्थित होती रही हैं। इन कहानियों ने बताया था कि भीष्म जी ने अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को कहानी की नहीं, अपनी दृष्टि की पहचान बनाया। इसीलिए ये कहानियाँ बावजूद इसके कि लेखक के सोचने का अपना एक अनुशासन है, अपनी नियति की तरफ स्वतंत्र रूप से बढ़ती हैं, और उपदेश के बजाय जीवन को एक नई जगह से देखने का विकल्प सुझाती हैं।

About Author

भीष्म साहनी

जन्म : 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में।

शिक्षा : हिन्दी-संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा घर में। स्कूल में उर्दू और अंग्रेज़ी। गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए., फिर पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच.डी.।

बँटवारे से पूर्व थोड़ा व्यापार, साथ-ही-साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन। बँटवारे के बाद पत्रकारिता, इप्टा नाटक मंडली में काम, बम्बई में बेकारी। फिर अम्बाला में एक कॉलेज में तथा खालसा कॉलेज, अमृतसर में अध्यापन। तत्पश्चात् स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में साहित्य का प्राध्यापन। इस बीच लगभग सात वर्ष 'विदेशी भाषा प्रकाशन गृह’, मॉस्को में अनुवादक के रूप में कार्य। अपने इस प्रवासकाल में उन्होंने रूसी भाषा का यथेष्ट अध्ययन और लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का अनुवाद किया। क़रीब ढाई साल 'नई कहानियाँ’ का सौजन्य-सम्पादन। ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ तथा ‘अफ्रो-एशियाई लेखक संघ’ से सम्बद्ध।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘भाग्यरेखा’, ‘पहला पाठ’, ‘भटकती राख’, ‘पटरियाँ’, ‘वाङ्चू’, ‘शोभायात्रा’, ‘निशाचर’, ‘पाली’, ‘डायन’ (कहानी-संग्रह); ‘झरोखे’, ‘कड़ियाँ’, ‘तमस’, ‘बसंती’, ‘मय्यादास की माड़ी’, ‘कुंतो’, ‘नीलू नीलिमा नीलोफ़र’ (उपन्यास); ‘माधवी’, ‘हानूश’, ‘कबिरा खड़ा बज़ार में’, ‘मुआवजे’, ‘सम्पूर्ण नाटक’ (दो खंडों में) (नाटक); ‘आज के अतीत’ (आत्मकथा); ‘गुलेल का खेल’ (बालोपयोगी कहानियाँ)।

सम्मान : अन्य पुरस्कारों के अलावा ‘तमस’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा ‘हिन्दी अकादमी’, दिल्ली का ‘शलाका सम्मान’।

‘साहित्य अकादेमी’ के महत्तर सदस्य रहे।

निधन : 11 जुलाई, 2003

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