SalePaperback
Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Mamta Kalia
₹65 ₹64
Save: 2%
Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Prayag Shukla
₹65 ₹64
Save: 2%
Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Savita Singh
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सविता सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सविता सिंह
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹65 ₹64
Save: 2%
In stock
Ships within:
10-12 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789350008942
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
80
पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन : सविता सिंह
सविता सिंह की कविता हमारे ऐतिहासिक समय में नयी स्त्री के नये स्वप्नों और सामर्थ्य से भरपूर कविताएँ हैं। सविता सिंह की रचनाशीलता ने हिन्दी काव्य के सौन्दर्य शास्त्र को विस्तार दिया है क्योंकि यह स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से युक्त एक ऐसे सांस्कृतिक बोध का परिणाम है जहाँ आत्मविश्वास से दीप्त एक स्त्री ने हमारी भाषा में ‘आत्मचेतस आत्मन’ के बहुस्तरीय आविष्कार सम्भव किये हैं। यहाँ सच के अनूठे बिम्ब हैं, जो यथार्थ और स्वप्नमयता के हुन्छ से अपनी ऊर्जा और ताप लेकर आते हैं। सविता सिंह की कविताओं में जहाँ संघर्ष से उपजे आवेग-संवेग के नाना रूप हैं, वहीं संवेदना के गहरे धरातल पर वह आत्मीय एकान्त भी है जहाँ उदग्र ऐन्द्रियता के साथ स्मृति, सृजनशील कल्पना में और कल्पना निरन्तर स्पन्दित स्मृति में बदलती रहती है।
सविता सिंह का काव्य अवदान इस अर्थ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि एक ओर जहाँ इसमें विपुल गरिमा के साथ बदलाव के साक्ष्य उजागर हैं तो दूसरी तरफ़ बदलाव के सांस्कृतिक, सामाजिक कारकों की विनम्र उपस्थिति भी देखी जा सकती है यानी संवेदना और यथार्थ के वैयक्तिक और सामाजिक स्तरों पर इसकी अन्तर्वस्तु में अशेष क्रियाशीलता की सम्पदा है। पचास कविताओं का यह चयन, निस्सन्देह, हिन्दी कविता की अमूल्य थाती है जो बिरल नवोन्मेष से पूरित है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण –
चारों तरफ़ नींद है
प्यास है हर तरफ़
जागरण में भी
उधर भी जिधर स्वप्न जाग रहे हैं
जिधर समुद्र लहरा रहा है
दूर तक देख सकते हैं
समतल पथरीले मैदान हैं
प्राचीनतम-सा लगता विश्व का एक हिस्सा
और एक स्त्री है लाँघती हुई प्यास।
Be the first to review “Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Savita Singh” Cancel reply
Description
पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन : सविता सिंह
सविता सिंह की कविता हमारे ऐतिहासिक समय में नयी स्त्री के नये स्वप्नों और सामर्थ्य से भरपूर कविताएँ हैं। सविता सिंह की रचनाशीलता ने हिन्दी काव्य के सौन्दर्य शास्त्र को विस्तार दिया है क्योंकि यह स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से युक्त एक ऐसे सांस्कृतिक बोध का परिणाम है जहाँ आत्मविश्वास से दीप्त एक स्त्री ने हमारी भाषा में ‘आत्मचेतस आत्मन’ के बहुस्तरीय आविष्कार सम्भव किये हैं। यहाँ सच के अनूठे बिम्ब हैं, जो यथार्थ और स्वप्नमयता के हुन्छ से अपनी ऊर्जा और ताप लेकर आते हैं। सविता सिंह की कविताओं में जहाँ संघर्ष से उपजे आवेग-संवेग के नाना रूप हैं, वहीं संवेदना के गहरे धरातल पर वह आत्मीय एकान्त भी है जहाँ उदग्र ऐन्द्रियता के साथ स्मृति, सृजनशील कल्पना में और कल्पना निरन्तर स्पन्दित स्मृति में बदलती रहती है।
सविता सिंह का काव्य अवदान इस अर्थ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि एक ओर जहाँ इसमें विपुल गरिमा के साथ बदलाव के साक्ष्य उजागर हैं तो दूसरी तरफ़ बदलाव के सांस्कृतिक, सामाजिक कारकों की विनम्र उपस्थिति भी देखी जा सकती है यानी संवेदना और यथार्थ के वैयक्तिक और सामाजिक स्तरों पर इसकी अन्तर्वस्तु में अशेष क्रियाशीलता की सम्पदा है। पचास कविताओं का यह चयन, निस्सन्देह, हिन्दी कविता की अमूल्य थाती है जो बिरल नवोन्मेष से पूरित है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण –
चारों तरफ़ नींद है
प्यास है हर तरफ़
जागरण में भी
उधर भी जिधर स्वप्न जाग रहे हैं
जिधर समुद्र लहरा रहा है
दूर तक देख सकते हैं
समतल पथरीले मैदान हैं
प्राचीनतम-सा लगता विश्व का एक हिस्सा
और एक स्त्री है लाँघती हुई प्यास।
About Author
सविता सिंह -
जन्म : फ़रवरी 1962, आरा (बिहार)।
राजनीति शास्त्र में एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी. (दिल्ली विश्वविद्यालय)। मैकगिल विश्वविद्यालय, माट्रियाल (कनाडा) मंं साढ़े चार वर्ष तक शोध एवं अध्यापन। शोध का विषय : भारत में आधुनिकता का विमर्श।
डेढ़ दशक तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन। हिन्दी और अंग्रेज़ी में सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य, स्त्री विमर्श और समकालीन वैचारिक मुद्दों पर लेखन। अन्तरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में शोध पत्र तथा साहित्यिक रचनाएँ प्रकाशित। पहला कविता संग्रह 'अपने जैसा जीवन' (2001) हिन्दी अकादमी द्वारा पुरस्कृत। दूसरे कविता संग्रह 'नींद थी और रात थी' (2005) पर रज़ा सम्मान। दो द्विभाषिक कविता संग्रह : 'रोविंग टुगेदर' (अंग्रेज़ी-हिन्दी) तथा ‘ज स्वी ला मेजों दे जैत्वाल' (फ्रेंच-हिन्दी) 2008 में प्रकाशित। अंग्रेज़ी में अन्तरराष्ट्रीय चयन 'सेवेन लीव्स, वन ऑटम' का सम्पादन जिसमें प्रतिनिधि कविताएँ शामिल।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Savita Singh” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.