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Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Mamta Kalia
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
ममता कालिया
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
ममता कालिया
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹65 ₹64
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ISBN:
SKU
9789350722268
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
72
पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन : ममता कालिया
ममता कालिया ने आज भले ही लेखन की विधाओं में अपना प्रमुख स्थान बना लिया हो, मूलतः वह कवयित्री हैं। उनकी रचना यात्रा कविता से आरम्भ हुई थी और कविता की गत्यात्मकता उनके गद्य की उसी प्रकार विशिष्टता जिस प्रकार निर्मल वर्मा अथवा अज्ञेय की। ममता कालिया का आन्तरिक विन्यास एक ऐसे कवि का है जिसके पास मुक्तिबोध जैसी बेचैनी और धूमिल जैसा अक्खड़पन कमोवेश मँडराता रहता है।
प्रस्तुत कविताएँ ममता के जीवन-जगत और संघर्ष का दर्पण हैं। इनमें कालजयी, क्लासिक प्रश्नों की जगह ये समस्त वास्तविक जटिलताएँ हैं जिनसे व्यक्ति की चेतना प्रतिदिन, प्रतिपल रगड़ खाती रहती है। चिन्तन व्यक्ति का संघर्ष ज़्यादा मारक होता है क्योंकि वह दो धरातलों पर चलता है। उसके आगे प्रत्यक्ष और परोक्ष, प्रस्तुत एवं अप्रस्तुत क्षणजीवी व चिरन्तन के दृश्य कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक आवेग-संवेग उपस्थित करते हैं। ममता की कविताएँ बहुत लम्बी नहीं होतीं, वे प्रत्यंचा सी तनी हुई, पाठक की चेतना पर असर डालती हैं। कवि के रचना-संसार में पुरुष, विरोधी अथवा खलनायक की तरह नहीं वरन प्रेमी या पार्टनर की तरह आता है जिससे बराबर का हक़ माँगती स्त्री सतत संवाद की स्थिति में है। इन कविताओं में स्त्री-विमर्श अपनी पॉजिटिव शक्ति के साथ उभरता है। इन रचनाओं में गहरी संवेदना, मौलिक कल्पना, अचूक दृष्टि और बौद्धिक ऊर्जा तो है ही, साथ ही है जीवन के प्रति अनुरागमयी आत्मीयता और संघर्षर्मिता। इनमें चुनौती और हस्तक्षेप, वाद और विवाद तथा सोच और विचार सम्मिलित है। जगह-जगह परिवार के वर्चस्ववादी फ्रेम पर टिप्पणी है तो परस्पर सुख व प्रेम का स्वीकार भी है। जीवन को सीधे सम्बोधित ये रचनाएँ कवि की गहरी आस्था, विश्वास और अनुराग का दर्पण है।
शायद इसीलिए युवा रचनाकार शशिभूषण ने लिखा है : ममता कालिया की कविताएँ पढ़ते हुए अगर सिमोन द बोवुआ की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘द सेकेंड सेक्स’ याद आ जाय तो आश्चर्य नहीं। ममता कालिया स्त्री देह के विखण्डन से बचते हुए उसके मर्म तक पहुँचती हैं। पूरे संग्रह में एक आन्तरिक लय है लेकिन कुछ कविताओं की संगीतात्मकता एक विरल ताज़गी लिए हुए है।
समकालीन आलोचक राजकिशोर का कथन है : कि ‘अब तक तो इन कविताओं की धूम मच जानी चाहिए थी।’
डॉ. राज्यश्री शुक्ला के अनुसार : ‘ममता कालिया की कविताओं में समन्वय का यथार्थ है, इनमें स्त्री का व्यक्तित्व बोलता है। सबसे बढ़कर उसकी संवेदनशीलता परिलक्षित होती है।’
श्रवण मिश्र ने ममता कालिया की कविताओं को स्त्री-आन्दोलन की पहली पाठशाला माना है। उनके शब्दों में : ममता कालिया की कविताओं में स्त्री की उस आकांक्षा को आधार प्राप्त हुआ है जिसमें स्त्री की सम्बन्धों से नहीं बल्कि सम्बन्धों में मुक्ति की माँग निहित है। वह पुरुष से मुक्त होने की बजाय सामाजिक व सांस्कृतिक वर्चस्ववादी मानसिकता से मुक्त होना चाहती है। स्त्री की संघर्षधर्मी चेतना से बनते-बिगड़ते मूल्य और हाशिये से मुख्यधारा में आने का संघर्ष इन कविताओं में प्रतिबिम्बित हुआ है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण –
इस सारे सुख को
नाम नहीं देंगे हम,
छोर से छोर तक
माप कर
यह नहीं कहेंगे हम
‘इतना है, हमसे!’
सिर्फ़ यह अहसास
हमारे अकेलेपन
कच्ची दीवारों से
ढहाता जायेगा,
और हम
अपनी बनायी जेलों से
बाहर आ जायेंगे।
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Description
पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन : ममता कालिया
ममता कालिया ने आज भले ही लेखन की विधाओं में अपना प्रमुख स्थान बना लिया हो, मूलतः वह कवयित्री हैं। उनकी रचना यात्रा कविता से आरम्भ हुई थी और कविता की गत्यात्मकता उनके गद्य की उसी प्रकार विशिष्टता जिस प्रकार निर्मल वर्मा अथवा अज्ञेय की। ममता कालिया का आन्तरिक विन्यास एक ऐसे कवि का है जिसके पास मुक्तिबोध जैसी बेचैनी और धूमिल जैसा अक्खड़पन कमोवेश मँडराता रहता है।
प्रस्तुत कविताएँ ममता के जीवन-जगत और संघर्ष का दर्पण हैं। इनमें कालजयी, क्लासिक प्रश्नों की जगह ये समस्त वास्तविक जटिलताएँ हैं जिनसे व्यक्ति की चेतना प्रतिदिन, प्रतिपल रगड़ खाती रहती है। चिन्तन व्यक्ति का संघर्ष ज़्यादा मारक होता है क्योंकि वह दो धरातलों पर चलता है। उसके आगे प्रत्यक्ष और परोक्ष, प्रस्तुत एवं अप्रस्तुत क्षणजीवी व चिरन्तन के दृश्य कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक आवेग-संवेग उपस्थित करते हैं। ममता की कविताएँ बहुत लम्बी नहीं होतीं, वे प्रत्यंचा सी तनी हुई, पाठक की चेतना पर असर डालती हैं। कवि के रचना-संसार में पुरुष, विरोधी अथवा खलनायक की तरह नहीं वरन प्रेमी या पार्टनर की तरह आता है जिससे बराबर का हक़ माँगती स्त्री सतत संवाद की स्थिति में है। इन कविताओं में स्त्री-विमर्श अपनी पॉजिटिव शक्ति के साथ उभरता है। इन रचनाओं में गहरी संवेदना, मौलिक कल्पना, अचूक दृष्टि और बौद्धिक ऊर्जा तो है ही, साथ ही है जीवन के प्रति अनुरागमयी आत्मीयता और संघर्षर्मिता। इनमें चुनौती और हस्तक्षेप, वाद और विवाद तथा सोच और विचार सम्मिलित है। जगह-जगह परिवार के वर्चस्ववादी फ्रेम पर टिप्पणी है तो परस्पर सुख व प्रेम का स्वीकार भी है। जीवन को सीधे सम्बोधित ये रचनाएँ कवि की गहरी आस्था, विश्वास और अनुराग का दर्पण है।
शायद इसीलिए युवा रचनाकार शशिभूषण ने लिखा है : ममता कालिया की कविताएँ पढ़ते हुए अगर सिमोन द बोवुआ की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘द सेकेंड सेक्स’ याद आ जाय तो आश्चर्य नहीं। ममता कालिया स्त्री देह के विखण्डन से बचते हुए उसके मर्म तक पहुँचती हैं। पूरे संग्रह में एक आन्तरिक लय है लेकिन कुछ कविताओं की संगीतात्मकता एक विरल ताज़गी लिए हुए है।
समकालीन आलोचक राजकिशोर का कथन है : कि ‘अब तक तो इन कविताओं की धूम मच जानी चाहिए थी।’
डॉ. राज्यश्री शुक्ला के अनुसार : ‘ममता कालिया की कविताओं में समन्वय का यथार्थ है, इनमें स्त्री का व्यक्तित्व बोलता है। सबसे बढ़कर उसकी संवेदनशीलता परिलक्षित होती है।’
श्रवण मिश्र ने ममता कालिया की कविताओं को स्त्री-आन्दोलन की पहली पाठशाला माना है। उनके शब्दों में : ममता कालिया की कविताओं में स्त्री की उस आकांक्षा को आधार प्राप्त हुआ है जिसमें स्त्री की सम्बन्धों से नहीं बल्कि सम्बन्धों में मुक्ति की माँग निहित है। वह पुरुष से मुक्त होने की बजाय सामाजिक व सांस्कृतिक वर्चस्ववादी मानसिकता से मुक्त होना चाहती है। स्त्री की संघर्षधर्मी चेतना से बनते-बिगड़ते मूल्य और हाशिये से मुख्यधारा में आने का संघर्ष इन कविताओं में प्रतिबिम्बित हुआ है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण –
इस सारे सुख को
नाम नहीं देंगे हम,
छोर से छोर तक
माप कर
यह नहीं कहेंगे हम
‘इतना है, हमसे!’
सिर्फ़ यह अहसास
हमारे अकेलेपन
कच्ची दीवारों से
ढहाता जायेगा,
और हम
अपनी बनायी जेलों से
बाहर आ जायेंगे।
About Author
ममता कालिया -
02 नवम्बर, 1940।
वृन्दावन, उत्तर प्रदेश, भारत
व्यवसाय: कवयित्री, लेखिका
भाषा: हिन्दी
राष्ट्रीयता: भारतीय
अवधि/काल: आधुनिक काल
विधा: गद्य और पद्य।
विषय: कहानी, नाटक, उपन्यास, निबन्ध, कविता और पत्रकारिता।
उल्लेखनीय कार्य: अपत्नी, दौड़, एक दिन अचानक, मेला, परदेसी, पीठ और दुक्खम्-सुक्खम्, अन्दाज़-ए-बयां उर्फ़ रवि-कथा।
उल्लेखनीय सम्मान: व्यास सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, यशपाल स्मृति सम्मान, महादेवी स्मृति पुरस्कार, कमलेश्वर स्मृति सम्मान, सावित्री बाई फुले स्मृति सम्मान, अमृत सम्मान, लमही सम्मान, सीता पुरस्कार आदि।
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