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Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Anamika
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अनामिका
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अनामिका
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹95 ₹94
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10-12 Days
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ISBN:
SKU
9789350722190
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
130
पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन – अनामिका –
अनामिका हिन्दी की ऐसी पहली महिला कवि हैं, जिन्होंने अन्तर्वस्तु से आगे बढ़कर भाषा, शिल्प, सौन्दर्य और आस्वाद के स्तर पर कविता को एक नया धरातल दिया है। स्त्री का अपना धरातल। इसके लिए उन्हें लम्बा संघर्ष करना पड़ा क्योंकि, अन्तर्वस्तु में बदलाव तो आसान होता है मगर सौन्दर्य बोध और आस्वाद को बदलना बहुत कठिन और उसे स्वीकृति दिलाना भी कठिन।
अनामिका अपनी कविताओं में, बीच-बीच में शब्दों से खेलती हैं, वे गपशप की शैली अपनाती हैं और दादी की कहानियों की तरह भूमिका बाँधती नज़र आती हैं। यह बतकही की अपनी स्त्री-शैली है जिसके सौन्दर्य को पुरुषों के प्रतिमान पर नहीं आँका जा सकता। इसके लिए स्त्रियों के जीवन और कहन-शैली को परखना होगा तभी इस स्त्री के भाषा की ख़ूबसूरती समझ में आयेगी। उनकी एक कविता में जेठ की दुपहरी का चित्र है… बस एक चित्र है। मगर इसकी विशेषता यह है कि सभी बिम्ब, सारे उपमान स्त्री के सक्रिय जीवन से लिए गये हैं। बच्चों की चानी पर तेल स्त्रियाँ ही थोपती हैं और मनिहारिनें ही घर के अन्दर जा कर गृहिणियों तक ज़रूरी सामान, ख़ासकर सौन्दर्य प्रसाधन बेचती हैं। यह हिन्दी कविता का नया लोक है। इसका आस्वादन या पाठ स्त्री जीवन के पाठ के साथ ही सम्भव है। ग़ौरतलब है कि अनामिका भाषा, शिल्प और काव्यसौन्दर्य के स्तर पर ही नहीं, अन्तर्वस्तु और अनुभूति के स्तर पर भी नयी चुनौतियाँ पेश करती हैं। ‘यौन-दासी’ एक भयावह यथार्थ से परिचित कराती है तो ‘एक औरत का पहला राजकीय प्रवास’ अनुभूति के उस स्तर पर जा कर लिखी गयी है, जहाँ तक किसी पुरुष के लिए पहुँचना सम्भव ही नहीं है। हम उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं, मगर दोनों ही स्थितियों में उसे महसूस नहीं कर सकते। इस तरह अन्तर्वस्तु, संवेदना और सौन्दर्य-तीनों ही स्तर पर उनकी कविता नयी चुनौतियाँ पेश करती है।
– मदन कश्यप
अन्तिम पृष्ठ आवरण –
भूलभुलैया हूँ!
एक तरफ़ से खुलती हूँ
तो मुँदती हूँ पचपन तरफ़ से!
एक ओर आग से ढँकी हूँ
और दूसरी ओर नीली बरफ़ से!
मेरा कुछ हो ही नहीं सकता
मैं अपने ही ख़िलाफ़ बैठी पंचायत हूँ
आयतें कहती हैं-अलग वर्ग है इसका
और वर्ग कहते हैं-एक ठस्स आयत हूँ!
अलग पात है मेरी,
अलग जात है मेरी,
फिर भी समझने के लायक हूँ!
गायक हूँ
महाशून्य का
शून्य से शून्य घटा
शून्य बचा।
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Description
पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन – अनामिका –
अनामिका हिन्दी की ऐसी पहली महिला कवि हैं, जिन्होंने अन्तर्वस्तु से आगे बढ़कर भाषा, शिल्प, सौन्दर्य और आस्वाद के स्तर पर कविता को एक नया धरातल दिया है। स्त्री का अपना धरातल। इसके लिए उन्हें लम्बा संघर्ष करना पड़ा क्योंकि, अन्तर्वस्तु में बदलाव तो आसान होता है मगर सौन्दर्य बोध और आस्वाद को बदलना बहुत कठिन और उसे स्वीकृति दिलाना भी कठिन।
अनामिका अपनी कविताओं में, बीच-बीच में शब्दों से खेलती हैं, वे गपशप की शैली अपनाती हैं और दादी की कहानियों की तरह भूमिका बाँधती नज़र आती हैं। यह बतकही की अपनी स्त्री-शैली है जिसके सौन्दर्य को पुरुषों के प्रतिमान पर नहीं आँका जा सकता। इसके लिए स्त्रियों के जीवन और कहन-शैली को परखना होगा तभी इस स्त्री के भाषा की ख़ूबसूरती समझ में आयेगी। उनकी एक कविता में जेठ की दुपहरी का चित्र है… बस एक चित्र है। मगर इसकी विशेषता यह है कि सभी बिम्ब, सारे उपमान स्त्री के सक्रिय जीवन से लिए गये हैं। बच्चों की चानी पर तेल स्त्रियाँ ही थोपती हैं और मनिहारिनें ही घर के अन्दर जा कर गृहिणियों तक ज़रूरी सामान, ख़ासकर सौन्दर्य प्रसाधन बेचती हैं। यह हिन्दी कविता का नया लोक है। इसका आस्वादन या पाठ स्त्री जीवन के पाठ के साथ ही सम्भव है। ग़ौरतलब है कि अनामिका भाषा, शिल्प और काव्यसौन्दर्य के स्तर पर ही नहीं, अन्तर्वस्तु और अनुभूति के स्तर पर भी नयी चुनौतियाँ पेश करती हैं। ‘यौन-दासी’ एक भयावह यथार्थ से परिचित कराती है तो ‘एक औरत का पहला राजकीय प्रवास’ अनुभूति के उस स्तर पर जा कर लिखी गयी है, जहाँ तक किसी पुरुष के लिए पहुँचना सम्भव ही नहीं है। हम उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं, मगर दोनों ही स्थितियों में उसे महसूस नहीं कर सकते। इस तरह अन्तर्वस्तु, संवेदना और सौन्दर्य-तीनों ही स्तर पर उनकी कविता नयी चुनौतियाँ पेश करती है।
– मदन कश्यप
अन्तिम पृष्ठ आवरण –
भूलभुलैया हूँ!
एक तरफ़ से खुलती हूँ
तो मुँदती हूँ पचपन तरफ़ से!
एक ओर आग से ढँकी हूँ
और दूसरी ओर नीली बरफ़ से!
मेरा कुछ हो ही नहीं सकता
मैं अपने ही ख़िलाफ़ बैठी पंचायत हूँ
आयतें कहती हैं-अलग वर्ग है इसका
और वर्ग कहते हैं-एक ठस्स आयत हूँ!
अलग पात है मेरी,
अलग जात है मेरी,
फिर भी समझने के लायक हूँ!
गायक हूँ
महाशून्य का
शून्य से शून्य घटा
शून्य बचा।
About Author
अनामिका -
राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजाकुमार माथुर पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान, साहित्यकार सम्मान से शोभित अनामिका का जन्म 17 अगस्त, 1961, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ। इन्होंने एम.ए., पीएच.डी. (अंग्रेज़ी), दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की। तिनका-तिनके पास (उपन्यास), कहती हैं औरतें (सम्पादित कविता संग्रह) प्रकाशित हैं। वर्तमान में रीडर, अंग्रेज़ी विभाग, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय।
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