Neelanchal Chandra 279

Save: 30%

Back to products
Noakhali 245

Save: 30%

Noakhali

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सुजाता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सुजाता
Language:
Hindi
Format:
Hardback

315

Save: 30%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789389915358 Category
Category:
Page Extent:
224

गहरी नींद में आने के बाद भी वह महिला गाँधी के सामने से नहीं हटी। उसकी आवाज़ अभी भी कानों में गूँज रही थी-महात्मा जी मैंने तो आप पर विश्वास किया था कि आप देश का विभाजन नहीं होने देंगे। -क्या मैंने विभाजन रोकने की कोशिश नहीं की, गाँधी छटपटा रहे थे। – महात्मा जी मैंने तो हमेशा यही सुना था आप जो चाहते हैं, वही होता है, आप अगर चाहते विभाजन न हो, तो कभी नहीं होता। -यह सच नहीं है, बहन । मैंने चाहा था भगतसिंह की फाँसी रुक जाये… कहाँ रुकी? -लोग कहते हैं आपने भगतसिंह की फाँसी रोकनी ही नहीं चाही थी, आप चाहते तो फाँसी भी रुक जाती। -मैं एक साधारण इन्सान हूँ…, ईश्वर नहीं कि मेरी इच्छा से ही सारे कार्य होंगे। मेरी इच्छा से एक पत्ता तक नहीं हिल सकता। में तो भारतीयों का एक सेवक हूँ, सच्चा सेवक। उनकी सेवा करना ही मैंने अपना कर्तव्य माना है… शहीदे आजम भगतसिंह को बचाने के लिए मैंने कितनी कोशिशें कीं, तुम नहीं जानतीं। -महात्मा जी, मैं ही नहीं, सभी लोगों को यह विश्वास था, आप विभाजन नहीं होने देंगे। हम सबों का विश्वास टूटा है… कहते-कहते उस स्त्री की वेशभूषा बदलने लगी, उसके शरीर पर राजसी वस्त्र आ गये, वह हरिद्वार नहीं हस्तिनापर में खड़ी थी। उसके माथे पर सोने का मुकुट था-उसके सामने श्रीकृष्ण खड़े थे-वह स्त्री क्रोध में काँप रही थी-श्रीकृष्ण तुम चाहते तो महाभारत टल जाता, तुम चाहते तो मेरे सौ पुत्रों का वध नहीं होता। आज मैं पुत्रविहीना नहीं होती, तुम चाहते तो… गान्धारी फूट-फूटकर रो रही थी। -बुआ जी, मैंने महाभारत टालने की कितनी कोशिश की, हस्तिनापुर उसका गवाह है। मेरे शान्तिदूत बनकर आने की.., बुआ जी महाभारत मेरे चाहने से नहीं रुक सकता था, दुर्योधन की अति महत्त्वाकांक्षा के त्याग पर रुक सकता था। सामने न अब गान्धारी थी और न श्रीकृष्ण। गाँधी सपने में ही बुदबुदा रहे थे-बहन, जब दुर्योधन की अति महत्त्वाकांक्षा के कारण श्रीकृष्ण के चाहने पर भी महाभारत नहीं रुक पाया तो मैं उनके सामने एक तुच्छ प्राणी हूँ। भला जिन्ना की महत्त्वाकांक्षा के सामने मेरी क्या बिसात…। गाँधी की नींद खुल गयी, सामने न रावलपिण्डी की स्त्री थी और न गान्धारी। बस श्रीकृष्ण थे जिनकी व्यापकता को महसूस कर उनके चरणों में सब कुछ अर्पित कर रहे थे।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Noakhali”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

गहरी नींद में आने के बाद भी वह महिला गाँधी के सामने से नहीं हटी। उसकी आवाज़ अभी भी कानों में गूँज रही थी-महात्मा जी मैंने तो आप पर विश्वास किया था कि आप देश का विभाजन नहीं होने देंगे। -क्या मैंने विभाजन रोकने की कोशिश नहीं की, गाँधी छटपटा रहे थे। – महात्मा जी मैंने तो हमेशा यही सुना था आप जो चाहते हैं, वही होता है, आप अगर चाहते विभाजन न हो, तो कभी नहीं होता। -यह सच नहीं है, बहन । मैंने चाहा था भगतसिंह की फाँसी रुक जाये… कहाँ रुकी? -लोग कहते हैं आपने भगतसिंह की फाँसी रोकनी ही नहीं चाही थी, आप चाहते तो फाँसी भी रुक जाती। -मैं एक साधारण इन्सान हूँ…, ईश्वर नहीं कि मेरी इच्छा से ही सारे कार्य होंगे। मेरी इच्छा से एक पत्ता तक नहीं हिल सकता। में तो भारतीयों का एक सेवक हूँ, सच्चा सेवक। उनकी सेवा करना ही मैंने अपना कर्तव्य माना है… शहीदे आजम भगतसिंह को बचाने के लिए मैंने कितनी कोशिशें कीं, तुम नहीं जानतीं। -महात्मा जी, मैं ही नहीं, सभी लोगों को यह विश्वास था, आप विभाजन नहीं होने देंगे। हम सबों का विश्वास टूटा है… कहते-कहते उस स्त्री की वेशभूषा बदलने लगी, उसके शरीर पर राजसी वस्त्र आ गये, वह हरिद्वार नहीं हस्तिनापर में खड़ी थी। उसके माथे पर सोने का मुकुट था-उसके सामने श्रीकृष्ण खड़े थे-वह स्त्री क्रोध में काँप रही थी-श्रीकृष्ण तुम चाहते तो महाभारत टल जाता, तुम चाहते तो मेरे सौ पुत्रों का वध नहीं होता। आज मैं पुत्रविहीना नहीं होती, तुम चाहते तो… गान्धारी फूट-फूटकर रो रही थी। -बुआ जी, मैंने महाभारत टालने की कितनी कोशिश की, हस्तिनापुर उसका गवाह है। मेरे शान्तिदूत बनकर आने की.., बुआ जी महाभारत मेरे चाहने से नहीं रुक सकता था, दुर्योधन की अति महत्त्वाकांक्षा के त्याग पर रुक सकता था। सामने न अब गान्धारी थी और न श्रीकृष्ण। गाँधी सपने में ही बुदबुदा रहे थे-बहन, जब दुर्योधन की अति महत्त्वाकांक्षा के कारण श्रीकृष्ण के चाहने पर भी महाभारत नहीं रुक पाया तो मैं उनके सामने एक तुच्छ प्राणी हूँ। भला जिन्ना की महत्त्वाकांक्षा के सामने मेरी क्या बिसात…। गाँधी की नींद खुल गयी, सामने न रावलपिण्डी की स्त्री थी और न गान्धारी। बस श्रीकृष्ण थे जिनकी व्यापकता को महसूस कर उनके चरणों में सब कुछ अर्पित कर रहे थे।

About Author

डॉ. सुजाता चौधरी का जन्म 6 जनवरी 1964 को एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ। एम.ए. (राजनीतिशास्त्र, इतिहास), एल.एल.बी., पीएच.डी., पत्रकारिता में डिप्लोमा। सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में लेख और कहानियाँ प्रकाशित। आकाशवाणी भागलपुर से अनेक कहानियाँ प्रसारित। प्रकाशित रचनाएँ : दुख भरे सुख, कश्मीर का दर्द, दुख ही जीवन की कथा रही, प्रेमपुरुष, सौ साल पहले-चम्पारण का गाँधी, मैं पृथा ही क्यों न रही, नोआखाली (उपन्यास); मर्द ऐसे ही होते हैं, सच होते सपने, चालू लड़की, अगले जनम मोहे बिटिया ही दीज्यो (कहानी संग्रह); महात्मा का अध्यात्म, बापू और स्त्री, गाँधी की नैतिकता, राष्ट्रपिता और नेता जी, राष्ट्रपिता और भगतसिंह, बापू कृत बालपोथी, चम्पारण का सत्याग्रह, सत्य के दस्तावेज़ (गाँधी साहित्य); संक्षिप्त श्रीमद्भागवतम्, श्री चैतन्यदेव (अन्य रचनाएँ)। प्रकाशनाधीन : कहाँ है मेरा घर? (कविता संग्रह); महामानव आ रहा है (उपन्यास); दूसरी कैकयी (कहानी संग्रह)। कार्यक्षेत्र : श्री रास बिहारी मिशन ट्रस्ट की मुख्य न्यासी एवं नेशनल मूवमेंट फ्रंट की राष्ट्रीय संयोजिका। मिशन एवं फ्रंट द्वारा प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्र में विद्यालयों की स्थापना, विशेषतया बालिका शिक्षा और महिला स्वावलम्बन एवं सशक्तीकरण हेतु रोजगार एवं प्रशिक्षण। दलित बच्चों की शिक्षा हेतु विद्यालय संचालन, वृन्दावन में महिलाओं के लिए आश्रम का संचालन, निराश्रित जनों के लिए भोजन की व्यवस्था, चैरिटेबल विद्यालयों का संचालन, देशभर में बा-बापू एकल पाठशाला का संचालन। ई-मेल : sujatachaudhary@hotmail.com

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Noakhali”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED