Nai Sadi Ka Panchtantra 557

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Neelanchal Chandra

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सुजाता
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
सुजाता
Language:
Hindi
Format:
Paperback

279

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SKU 9789389915501 Category
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288

चैतन्यदेव की निष्कम्प दृष्टि जिस बिन्दु पर अटक-सी गयी है, दरअसल वह सागर किनारे है ही नहीं, वह तो भागीरथी के किनारे है। भागीरथी की भी नियति तो सागर में मिलने की ही है। वह भी तभी शान्त होती है तभी तृप्त होती है जब सागर में समाहित हो जाती है। फिर भी गंगा का अपना एक अलग महत्त्व है। हर-हर गंगे के उद्घोष से गंगा का घाट हमेशा से जयघोषित होता रहा है, गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक…। आज चैतन्यदेव की स्मृतियाँ पद्मा के जलप्रपात में आलोड़ित, अवगुण्ठित हो रही हैं। आज इन्हें बहुत याद आ रही है…गंगा के तट पर बसी अपनी जन्मभूमि नवद्वीप की और उसी नवद्वीप में रहने वाली अपनी वृद्धा जननी की, और… उसकी, जिसे स्मृति क्या मन में एक क्षण के लिए भी लाने की इजाज़त संन्यास धर्म नहीं देता पर जिसे स्मृतिलुप्त होने नहीं देता इनका मानव धर्म…। तीन साल हो गये नवद्वीप छोड़े हुए। इन तीन सालों में जाह्नवी के कितने जल बहे होंगे और सम्पूर्ण जलराशि इसी सागर में ही तो मिली होगी। फिर भी आज, सागर की जलराशि से मन अनाकर्षित हो रहा है। जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति उधर ही खींच रही है, गंगा के उसी तट पर जहाँ छोड़ आये हैं, अपने जीवन के व्यतीत चौबीस साल की दास्ताँ । जो वहाँ के लोगों को कभी रुलाती है तो कभी हँसाती है।

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Description

चैतन्यदेव की निष्कम्प दृष्टि जिस बिन्दु पर अटक-सी गयी है, दरअसल वह सागर किनारे है ही नहीं, वह तो भागीरथी के किनारे है। भागीरथी की भी नियति तो सागर में मिलने की ही है। वह भी तभी शान्त होती है तभी तृप्त होती है जब सागर में समाहित हो जाती है। फिर भी गंगा का अपना एक अलग महत्त्व है। हर-हर गंगे के उद्घोष से गंगा का घाट हमेशा से जयघोषित होता रहा है, गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक…। आज चैतन्यदेव की स्मृतियाँ पद्मा के जलप्रपात में आलोड़ित, अवगुण्ठित हो रही हैं। आज इन्हें बहुत याद आ रही है…गंगा के तट पर बसी अपनी जन्मभूमि नवद्वीप की और उसी नवद्वीप में रहने वाली अपनी वृद्धा जननी की, और… उसकी, जिसे स्मृति क्या मन में एक क्षण के लिए भी लाने की इजाज़त संन्यास धर्म नहीं देता पर जिसे स्मृतिलुप्त होने नहीं देता इनका मानव धर्म…। तीन साल हो गये नवद्वीप छोड़े हुए। इन तीन सालों में जाह्नवी के कितने जल बहे होंगे और सम्पूर्ण जलराशि इसी सागर में ही तो मिली होगी। फिर भी आज, सागर की जलराशि से मन अनाकर्षित हो रहा है। जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति उधर ही खींच रही है, गंगा के उसी तट पर जहाँ छोड़ आये हैं, अपने जीवन के व्यतीत चौबीस साल की दास्ताँ । जो वहाँ के लोगों को कभी रुलाती है तो कभी हँसाती है।

About Author

डॉ. सुजाता चौधरी का जन्म 6 जनवरी 1964 को एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ। एम.ए. (राजनीतिशास्त्र, इतिहास), एल.एल.बी., पीएच.डी., पत्रकारिता में डिप्लोमा। सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में लेख और कहानियाँ प्रकाशित। आकाशवाणी भागलपुर से अनेक कहानियाँ प्रसारित। प्रकाशित रचनाएँ : दुख भरे सुख, कश्मीर का दर्द, दुख ही जीवन की कथा रही, प्रेमपुरुष, सौ साल पहले-चम्पारण का गाँधी, मैं पृथा ही क्यों न रही, नोआखाली (उपन्यास); मर्द ऐसे ही होते हैं, सच होते सपने, चालू लड़की, अगले जनम मोहे बिटिया ही दीज्यो (कहानी संग्रह); महात्मा का अध्यात्म, बापू और स्त्री, गाँधी की नैतिकता, राष्ट्रपिता और नेता जी, राष्ट्रपिता और भगतसिंह, बापू कृत बालपोथी, चम्पारण का सत्याग्रह, सत्य के दस्तावेज़ (गाँधी साहित्य); संक्षिप्त श्रीमद्भागवतम्, श्री चैतन्यदेव (अन्य रचनाएँ)। प्रकाशनाधीन : कहाँ है मेरा घर? (कविता संग्रह); महामानव आ रहा है (उपन्यास); दूसरी कैकयी (कहानी संग्रह)। कार्यक्षेत्र : श्री रास बिहारी मिशन ट्रस्ट की मुख्य न्यासी एवं नेशनल मूवमेंट फ्रंट की राष्ट्रीय संयोजिका। मिशन एवं फ्रंट द्वारा प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्र में विद्यालयों की स्थापना, विशेषतया बालिका शिक्षा और महिला स्वावलम्बन एवं सशक्तीकरण हेतु रोजगार एवं प्रशिक्षण। दलित बच्चों की शिक्षा हेतु विद्यालय संचालन, वृन्दावन में महिलाओं के लिए आश्रम का संचालन, निराश्रित जनों के लिए भोजन की व्यवस्था, चैरिटेबल विद्यालयों का संचालन, देशभर में बा-बापू एकल पाठशाला का संचालन। ई-मेल : sujatachaudhary@hotmail.com

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