Naye Samay Ka Koras

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रजनी गुप्ता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रजनी गुप्ता
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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208

नये समय का कोरस –
“अचानक आसमान ने नीले रंग की पूरी बाँहों का परिधान पहन लिया जिसके बीचों-बीच पीले रंग की धारियों से तिलक लगा दिया हो किसी ने जैसे।”
ऐसे माहौल में जमा हैं आधुनिक बच्चे जो जवानी की दहलीज़ से अब नीचे उतर रहे हैं। नेहा और उसके स्कूल, कॉलेज, पहले जॉब के साथ इसी वातावरण में इकट्ठे हैं। अपनी ऊँचे तथा व्हाइट कॉलर जॉब से असन्तुष्ट, अपने सभी फ़िक्र को धुएँ में उड़ा देने का जज़्बा है जिनमें। ऐसे आधुनिक जीवन की कहानी को बख़ूबी अपनी समानान्तर भाषा में उकेरा है रजनी गुप्त ने। कथाकार ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें भाषा की विविधता है, यह एक सफल रचनाकार हैं। उपन्यास में उपस्थित खुले मिज़ाज और बड़ी-बड़ी कार्पोरेट संसार में विचरण करनेवाली ख़ुदमुख़्तार स्त्रियाँ अन्दर से कितनी खोखली हैं, इसका ज़िक्र किये बिना नहीं रहती हैं लेखिका।
आज के नौनिहाल हर क्षेत्र में महारत हासिल कर रहे हैं पर उनकी ओर सीना फुलाकर देखनेवाले नहीं देख पाते कि उनकी दिक़्क़त क्या है ? विशेष रूप से लड़कियाँ। लड़कियों ने अपने को सिद्ध किया है। अब पहलेवाली पीढ़ी की तरह कोई नहीं कह सकता कि वे कमतर हैं और न कोई यह कह सकता कि लड़की होने के कारण उनका प्रमोशन हो जाता है। परन्तु यह बात परिवार बनाने के लिए भारी है। पति और बच्चे का टास्क लेना वे अफ़ोर्ड नहीं कर सकतीं। नव्या की मुश्किलें देखकर नेहा विवाह के विषय में सोचती तक नहीं। वह उससे कनफेस करती है—”तभी तो मेरी शादी करने की हिम्मत नहीं होती। कितना मुश्किल है मल्टी टास्किंग होना।” अपने आप के लिए समय नहीं। टारगेट पूरे करने में समय हाथ से फिसलता जाता है। एक समय था जब ये सभी सात साथी कहते थे, अपना सपना मनी मनी, मनी हाथ में आ जायेगा तब सब कुछ पूरा हो जायेगा, लेकिन अब तो आलम ये है कि जाने कितने अरसे सीता मार्केट की चाट नहीं खायी, साथ बैठकर ज़ोर से ठहाके नहीं लगाये। नये समय का कोरस है यह जो संकेत देता है भयानक विखंडन का। आकांक्षाओं के आकाश छूने वाले थके पंछियों का। रजनी गुप्त ने उनकी डोर तो अपने हाथों में रखी है परन्तु आकाश की निस्सीमता बेहद लुभावनी है।
नव-युवाओं के लिए प्रेरक है यह उपन्यास— नये समय का कोरस। कथाकार इस कोरस को सँभाल ले जाती हैं कि एक भी सुर नहीं छूटता। — उषाकिरण खान, पद्मश्री वरिष्ठ कथाकार

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Description

नये समय का कोरस –
“अचानक आसमान ने नीले रंग की पूरी बाँहों का परिधान पहन लिया जिसके बीचों-बीच पीले रंग की धारियों से तिलक लगा दिया हो किसी ने जैसे।”
ऐसे माहौल में जमा हैं आधुनिक बच्चे जो जवानी की दहलीज़ से अब नीचे उतर रहे हैं। नेहा और उसके स्कूल, कॉलेज, पहले जॉब के साथ इसी वातावरण में इकट्ठे हैं। अपनी ऊँचे तथा व्हाइट कॉलर जॉब से असन्तुष्ट, अपने सभी फ़िक्र को धुएँ में उड़ा देने का जज़्बा है जिनमें। ऐसे आधुनिक जीवन की कहानी को बख़ूबी अपनी समानान्तर भाषा में उकेरा है रजनी गुप्त ने। कथाकार ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें भाषा की विविधता है, यह एक सफल रचनाकार हैं। उपन्यास में उपस्थित खुले मिज़ाज और बड़ी-बड़ी कार्पोरेट संसार में विचरण करनेवाली ख़ुदमुख़्तार स्त्रियाँ अन्दर से कितनी खोखली हैं, इसका ज़िक्र किये बिना नहीं रहती हैं लेखिका।
आज के नौनिहाल हर क्षेत्र में महारत हासिल कर रहे हैं पर उनकी ओर सीना फुलाकर देखनेवाले नहीं देख पाते कि उनकी दिक़्क़त क्या है ? विशेष रूप से लड़कियाँ। लड़कियों ने अपने को सिद्ध किया है। अब पहलेवाली पीढ़ी की तरह कोई नहीं कह सकता कि वे कमतर हैं और न कोई यह कह सकता कि लड़की होने के कारण उनका प्रमोशन हो जाता है। परन्तु यह बात परिवार बनाने के लिए भारी है। पति और बच्चे का टास्क लेना वे अफ़ोर्ड नहीं कर सकतीं। नव्या की मुश्किलें देखकर नेहा विवाह के विषय में सोचती तक नहीं। वह उससे कनफेस करती है—”तभी तो मेरी शादी करने की हिम्मत नहीं होती। कितना मुश्किल है मल्टी टास्किंग होना।” अपने आप के लिए समय नहीं। टारगेट पूरे करने में समय हाथ से फिसलता जाता है। एक समय था जब ये सभी सात साथी कहते थे, अपना सपना मनी मनी, मनी हाथ में आ जायेगा तब सब कुछ पूरा हो जायेगा, लेकिन अब तो आलम ये है कि जाने कितने अरसे सीता मार्केट की चाट नहीं खायी, साथ बैठकर ज़ोर से ठहाके नहीं लगाये। नये समय का कोरस है यह जो संकेत देता है भयानक विखंडन का। आकांक्षाओं के आकाश छूने वाले थके पंछियों का। रजनी गुप्त ने उनकी डोर तो अपने हाथों में रखी है परन्तु आकाश की निस्सीमता बेहद लुभावनी है।
नव-युवाओं के लिए प्रेरक है यह उपन्यास— नये समय का कोरस। कथाकार इस कोरस को सँभाल ले जाती हैं कि एक भी सुर नहीं छूटता। — उषाकिरण खान, पद्मश्री वरिष्ठ कथाकार

About Author

रजनी गुप्त - जन्म: 2 अप्रैल, 1963, चिरगाँव, झाँसी उ.प्र.। शिक्षा: जे.एन.यू. से एम.फिल. और पीएच.डी.। प्रकाशित कृतियाँ: उपन्यास— 'कहीं कुछ और', 'किशोरी का आसमाँ', 'एक न एक दिन', 'कुल जमा बीस', 'ये आम रास्ता नहीं', 'कितने कठघरे' व 'नये समय का कोरस'; कहानी-संग्रह— 'एक नयी सुबह', 'हाट बाज़ार', 'प्रेम सम्बन्धों की कहानियाँ', 'अस्ताचल की धूप', 'फिर वहीं से शुरू'; स्त्री-विमर्श— 'सुनो तो सही' (आलोचना), 'बहेलिया समय में स्त्री' (स्त्री मुद्दों पर आलेख); सम्पादन— 'आज़ाद औरत कितनी आज़ाद', 'मुस्कराती औरतें', 'आख़िर क्यों लिखती हैं स्त्रियाँ'। विशेष: 'कहीं कुछ और' राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ओपन यूनिवर्सिटी के स्त्री-विमर्श पाठ्यक्रम में शामिल। 'स्त्री घर' (डायरी) औरंगाबाद विश्वविद्यालय के बी.ए. पाठ्यक्रम में शामिल। 'सुनो तो सही' हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास (रामचन्द्र तिवारी) में शामिल। पुरस्कार/सम्मान: युवा लेखन सर्जना पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान), आर्य स्मृति साहित्य सम्मान, 2006 (किताबघर प्रकाशन), 'किशोरी का आसमाँ' पर अमृतलाल नागर पुरस्कार, 2008 क़लमकार फ़ाउंडेशन द्वारा अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार, 2014। 'अस्ताचल की धूप' कहानी-संग्रह पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का 'रावी स्मृति सम्मान' । 'कितने कठघरे' पर 'महादेवी वर्मा पुरस्कार', 2016। शोधकार्य : दर्जनों विश्वविद्यालयों में शोधकार्य सम्पन्न एवं जारी।

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