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Naye Sajan Ghar Aaye

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
जितेंद्र विसारिया
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
जितेंद्र विसारिया
Language:
Hindi
Format:
Hardback

182

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In stock

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10-12 Days

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789326354158 Category
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Page Extent:
190

नये सजन घर आए –
जितेन्द्र विसारिया की यह किताब समकालीन कथा परिदृश्य में एक आश्चर्य की तरह इसलिए पढ़ी जानी चाहिए कि इसमें ग्रामीण जीवन का अलक्षित पुनर्वास है। ऐसा ग्रामीण जीवन जिसमें वस्तुगत यथार्थ की सच्ची और मार्मिक छवियाँ हैं। इधर शोषित प्रवंचित समाज का सत्य जबकि कहानियों से दूर होता जा रहा है और दलित जीवन की स्थितियों पर कहानीकारों की निगाह ठिठकी-ठिठकी सी है, जितेन्द्र विसारिया क़िस्सागोई की अचूक ताक़त के साथ गाँव और उसकी वर्ण-व्यवस्था के अब तक स्थापित भयावह सच को आधुनिक सन्दर्भ में अनुभूत करते हुए, पाठकों के सामने रखते हैं।
आज के गाँव में जो जातिगत भेद-विभेद, अनाचार, शोषण और सामन्ती सोच का बोलबाला है, ये कहानियाँ उनके विरोध में मज़बूती से खड़ी होती हैं। चम्बल के गाँव-जवार की जातीय संरचना और सामाजिक सांस्कृतिक पिछड़ेपन को परिभाषित करती यह कृति हमें पाठ के बाद सन्नाटे की हतप्रभता में विचार के लिए छोड़ देती है। लोक भाषा की प्रवाहमयता, सादगी और आन्तरिक लय में सत्य का उत्खनन करती यह कृति अपना विशिष्ट होना प्रमाणित करती है।

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Description

नये सजन घर आए –
जितेन्द्र विसारिया की यह किताब समकालीन कथा परिदृश्य में एक आश्चर्य की तरह इसलिए पढ़ी जानी चाहिए कि इसमें ग्रामीण जीवन का अलक्षित पुनर्वास है। ऐसा ग्रामीण जीवन जिसमें वस्तुगत यथार्थ की सच्ची और मार्मिक छवियाँ हैं। इधर शोषित प्रवंचित समाज का सत्य जबकि कहानियों से दूर होता जा रहा है और दलित जीवन की स्थितियों पर कहानीकारों की निगाह ठिठकी-ठिठकी सी है, जितेन्द्र विसारिया क़िस्सागोई की अचूक ताक़त के साथ गाँव और उसकी वर्ण-व्यवस्था के अब तक स्थापित भयावह सच को आधुनिक सन्दर्भ में अनुभूत करते हुए, पाठकों के सामने रखते हैं।
आज के गाँव में जो जातिगत भेद-विभेद, अनाचार, शोषण और सामन्ती सोच का बोलबाला है, ये कहानियाँ उनके विरोध में मज़बूती से खड़ी होती हैं। चम्बल के गाँव-जवार की जातीय संरचना और सामाजिक सांस्कृतिक पिछड़ेपन को परिभाषित करती यह कृति हमें पाठ के बाद सन्नाटे की हतप्रभता में विचार के लिए छोड़ देती है। लोक भाषा की प्रवाहमयता, सादगी और आन्तरिक लय में सत्य का उत्खनन करती यह कृति अपना विशिष्ट होना प्रमाणित करती है।

About Author

जितेन्द्र विसारिया - जन्म: 20 अगस्त, 1980 नुन्हाटा, भिड (म.प्र.)। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (हिन्दी साहित्य) जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)। हिन्दी सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा म.गाँ.अ.हि.वि.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)। रचनाएँ: आलोचना, फ़िल्म समीक्षा, शोध-पत्र, कविताएँ और अनुवाद आदि प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं, ई-मैगज़ीन व ब्लॉगस पर प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित। 'जख़्म' (उपन्यास); 'नये सजन घर आए' (कहानी-संग्रह); 'आत्मकथाओं का वैश्विक परिदृश्य और हिन्दी दलित आत्मकथाएँ' तथा बुन्देली महाकाव्य 'आल्हखण्ड : एक अन्तर्जनपदीय प्रभाव' (आलोचना) प्रकाशित। सम्पादन: प्रताप समाचार, आखरमाटी, अभिव्यंजना और युवा दख़ल जैसी साहित्यक तथा सांस्कृतिक पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादन सहयोग। सम्मान: राजीव गाँधी नेशनल फ़ेलोशिप (यू.जी.सी. नयी दिल्ली), जूनियर रिसर्च फ़ेलोशिप (संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार) और रैंक ऐंड वोल्ट अवॉर्ड (एयर इंडिया)।

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