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Naukarshah Hi Nahin…
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Anil Swarup
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Anil Swarup
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹400 ₹300
Save: 25%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Weight | 408 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
216
यह पुस्तक एक ऐसे लोकसेवक की संघर्षमय जीवन-यात्रा के बारे में बताती है, जिसने अपने कार्यकाल के दौरान उत्पन्न तमाम राजनीतिक विरोधों के बावजूद सफलता हासिल की थी। अनिल स्वरूप अपनी इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों के साथ अपने उन अनुभवों को साझा करते हैं, जिन्होंने उन्हें लोकसेवक के अपने श्रमसाध्य प्रशिक्षण के दौरान एक आकार दिया तथा व्यक्ति एवं व्यवस्था-जनित संकटों का सामना करने की शक्ति भी दी। एक लोकसेवक के रूप में अपने अड़तीस वर्षों के कार्यकाल में उनका सामना अनेक महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से हुआ, जिनमें उत्तर प्रदेश के कोयला माफिया, बाबरी ढाँचा विध्वंस के बाद उपजा संकट तथा शिक्षा माफियाओं का सामना भी शामिल था। अनिल स्वरूप के इन संस्मरणों में उनकी श्रमसाध्य पीड़ा और संकट भी शामिल हैं, जिनमें उनकी भूमिका निर्णय लेनेवाले तथा इस व्यवस्था के आंतरिक प्रखर अवलोकनकर्ता की भी रही। वे अपनी सफलताओं और हताशा—सार्वजनिक और वैयक्तिक तौर पर जिन्हें उन्होंने जिया है—का वर्णन बखूबी करते हैं। उनकी प्रखर लेखनी में एक नौकरशाह की प्रबंधकीय कुशलता भी नजर आती है। यह पुस्तक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के बहुत से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अनिल स्वरूप के प्रयासों और उनकी उत्साही संलिप्तता की पराकाष्ठा भी दरशाती है। ये संस्मरण नितांत व्यक्तिगत होने के साथ-साथ उनका यह विश्वास भी स्पष्ट करते हैं कि इससे अन्य लोगों में भी इसी तरह के कार्य करने की प्रेरणा जाग्रत् हो। ‘‘यह पुस्तक ईमानदारी और लगन के साथ एक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है, जिसने जीवन भर संवेदनहीन व्यवस्था में काम किया। मैं तहे दिल से इसे पढ़ने की सलाह देता हूँ।’’ —गुरचरण दास, लेखक और स्तंभकार ‘‘काफी समय से हम एक नौकरशाह से शासन में प्रभावी नएपन के विषय में सुनना चाहते थे। यह उस उम्मीद को विश्वसनीय रूप से पूरा करती है।’’ —प्रभात कुमार, पूर्व कैबिनेट सचिव और पूर्व राज्यपाल, झारखंड ‘‘यह पुस्तक शासन में उनके कौशल का सटीक वर्णन करती है कि किस प्रकार उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को शांत करना, पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियों में ‘अंधाधुंध कमाई’ का पर्दाफाश करना सीखा।’’ —शेखर गुप्ता, संस्थापक संपादक, द प्रिंट और पूर्व एडिटर इन चीफ, द इंडियन एक्सप्रेस ‘‘यह तमाम तरह के अनुभवों से भरे जीवन की हैरान करने वाली सच्ची कहानी है—सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।’’ —तरुण दास, मेंटर, सीआईआई ‘‘तारीफ करने में दिलदार और आलोचना में धारदार, स्वरूप हमें भारतीय प्रशासन की पेचीदा दुनिया की अंदरूनी सच्चाई दिखाते हैं।’’ —डॉ अंबरीश मिट्ठल, पद्म भूषण, विख्यात एंडोक्राइनोलॉजिस्ट ‘‘सिविल सेवा में आने वाले नए लोगों को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए, क्योंकि लेखक ने नौकरशाही की प्रकृति और उसकी भावना की एक नई परिभाषा दी है।’’ —योगेंद्र नारायण, पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश और पूर्व महासचिव, लोक सभा ‘‘बेहद दिलचस्प.’’ —परमेश्वरन अय्यर, सचिव, ग्रामीण स्वच्छता (स्वच्छ भारत), भारत सरकार.
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Nahin…” Cancel reply
Description
यह पुस्तक एक ऐसे लोकसेवक की संघर्षमय जीवन-यात्रा के बारे में बताती है, जिसने अपने कार्यकाल के दौरान उत्पन्न तमाम राजनीतिक विरोधों के बावजूद सफलता हासिल की थी। अनिल स्वरूप अपनी इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों के साथ अपने उन अनुभवों को साझा करते हैं, जिन्होंने उन्हें लोकसेवक के अपने श्रमसाध्य प्रशिक्षण के दौरान एक आकार दिया तथा व्यक्ति एवं व्यवस्था-जनित संकटों का सामना करने की शक्ति भी दी। एक लोकसेवक के रूप में अपने अड़तीस वर्षों के कार्यकाल में उनका सामना अनेक महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से हुआ, जिनमें उत्तर प्रदेश के कोयला माफिया, बाबरी ढाँचा विध्वंस के बाद उपजा संकट तथा शिक्षा माफियाओं का सामना भी शामिल था। अनिल स्वरूप के इन संस्मरणों में उनकी श्रमसाध्य पीड़ा और संकट भी शामिल हैं, जिनमें उनकी भूमिका निर्णय लेनेवाले तथा इस व्यवस्था के आंतरिक प्रखर अवलोकनकर्ता की भी रही। वे अपनी सफलताओं और हताशा—सार्वजनिक और वैयक्तिक तौर पर जिन्हें उन्होंने जिया है—का वर्णन बखूबी करते हैं। उनकी प्रखर लेखनी में एक नौकरशाह की प्रबंधकीय कुशलता भी नजर आती है। यह पुस्तक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के बहुत से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अनिल स्वरूप के प्रयासों और उनकी उत्साही संलिप्तता की पराकाष्ठा भी दरशाती है। ये संस्मरण नितांत व्यक्तिगत होने के साथ-साथ उनका यह विश्वास भी स्पष्ट करते हैं कि इससे अन्य लोगों में भी इसी तरह के कार्य करने की प्रेरणा जाग्रत् हो। ‘‘यह पुस्तक ईमानदारी और लगन के साथ एक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है, जिसने जीवन भर संवेदनहीन व्यवस्था में काम किया। मैं तहे दिल से इसे पढ़ने की सलाह देता हूँ।’’ —गुरचरण दास, लेखक और स्तंभकार ‘‘काफी समय से हम एक नौकरशाह से शासन में प्रभावी नएपन के विषय में सुनना चाहते थे। यह उस उम्मीद को विश्वसनीय रूप से पूरा करती है।’’ —प्रभात कुमार, पूर्व कैबिनेट सचिव और पूर्व राज्यपाल, झारखंड ‘‘यह पुस्तक शासन में उनके कौशल का सटीक वर्णन करती है कि किस प्रकार उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को शांत करना, पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियों में ‘अंधाधुंध कमाई’ का पर्दाफाश करना सीखा।’’ —शेखर गुप्ता, संस्थापक संपादक, द प्रिंट और पूर्व एडिटर इन चीफ, द इंडियन एक्सप्रेस ‘‘यह तमाम तरह के अनुभवों से भरे जीवन की हैरान करने वाली सच्ची कहानी है—सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।’’ —तरुण दास, मेंटर, सीआईआई ‘‘तारीफ करने में दिलदार और आलोचना में धारदार, स्वरूप हमें भारतीय प्रशासन की पेचीदा दुनिया की अंदरूनी सच्चाई दिखाते हैं।’’ —डॉ अंबरीश मिट्ठल, पद्म भूषण, विख्यात एंडोक्राइनोलॉजिस्ट ‘‘सिविल सेवा में आने वाले नए लोगों को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए, क्योंकि लेखक ने नौकरशाही की प्रकृति और उसकी भावना की एक नई परिभाषा दी है।’’ —योगेंद्र नारायण, पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश और पूर्व महासचिव, लोक सभा ‘‘बेहद दिलचस्प.’’ —परमेश्वरन अय्यर, सचिव, ग्रामीण स्वच्छता (स्वच्छ भारत), भारत सरकार.
About Author
38 वर्षों के अपने कार्यकाल के दौरान अनिल स्वरूप ने इन्हें कार्यरूप देने की कोशिश की। उनका जन्म इलाहाबाद में हुआ और सन् 1978 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की; उन्हें सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ होने पर कुलपति से स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ था। सन् 1981 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) में जाने से पहले उन्होंने एक साल तक भारतीय पुलिस सेवा में भी कार्य किया। उन्हें लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान अपने समूह में सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण अधिकारी के लिए निदेशक से स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ। एक लोकसेवक के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश और केंद्रीय सरकार के विभिन्न पदों पर कार्य किया। अपनी सेवा के अंतिम वर्षों में उनकी नियुक्ति भारत सरकार के कोयला मंत्रालय में सचिव के पद पर हुई, जहाँ उन्होंने कोयला घोटाले से उत्पन्न हुई स्थिति को सँभाला था। तत्पश्चात् उन्होंने स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग में सचिव के पद पर कार्य किया, जहाँ उन्होंने स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया। एक बेहतरीन रणनीतिक विचारक और नव-परिवर्तन के नेतृत्व के लिए भी उन्हें अन्य बहुत से पुरस्कार प्राप्त हुए तथा वर्ष 2010, 2012, 2015 एवं 2016 के लिए ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ ने उनका मनोनयन ‘पॉलिसी चेंज एजेंट’ के रूप में किया था। ‘इंडिया टुडे’ के पैंतीसवें वार्षिकांक में उनका चयन ‘पैंतीस एक्शन हीरोज’ में किया गया था।.
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