Nathpanth Ka Itihas

Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Dr. Padmaja Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Dr. Padmaja Singh
Language:
Hindi
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Paperback

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महात्मा बुद्ध के बाद भारत में सामाजिक पुनर्जागरण का शंखनाद महायोगी गोरखनाथ ने किया। गोरखनाथ भारतीय इतिहास में ऐसे तपस्वी हैं, जिन्होंने विशुद्ध योगी एवं तपस्वी होते हुए भी सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना का नेतृत्व किया। उन्होंने नाथपन्थ का पुनर्गठन सामाजिक पुनर्जागरण के लिए किया। पारलौकिक जीवन के साथ-साथ भौतिक जीवन का सामंजस्य बिठाने वाले इस महायोगी ने भारतीय समाज में सदाचार, नैतिकता, समानता एवं स्वतंत्रता की वह लौ प्रज्ज्वलित की, जिसकी लपटें जाति-पाँति, ऊँच-नीच, छुआछूत, भेदभाव, अमीरी-गरीबी, पुरुष-स्त्री, विषमताओं और क्षेत्रीयतावाद जैसी प्रवृत्तियों को निरंतर जलाती रहीं। नाथपन्थ के विचार-दर्शन ने एक ऐसी योगी-परंपरा को जन्म दिया, जिसने भारतीय संस्कृति के एकाकार सामाजिक चिंतन को ही अपना उद्देश्य बना दिया। नाथपन्थ की इस योगी-परंपरा ने हर प्रकार की सामाजिक बुराइयों का खुलकर प्रतिकार किया। महायोगी गोरखनाथ ने वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था के श्रेष्ठतावादी सिद्धांत को चुनौती दी एवं सभी वर्णों तथा जातियों को एक समान बताया।

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Description

महात्मा बुद्ध के बाद भारत में सामाजिक पुनर्जागरण का शंखनाद महायोगी गोरखनाथ ने किया। गोरखनाथ भारतीय इतिहास में ऐसे तपस्वी हैं, जिन्होंने विशुद्ध योगी एवं तपस्वी होते हुए भी सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना का नेतृत्व किया। उन्होंने नाथपन्थ का पुनर्गठन सामाजिक पुनर्जागरण के लिए किया। पारलौकिक जीवन के साथ-साथ भौतिक जीवन का सामंजस्य बिठाने वाले इस महायोगी ने भारतीय समाज में सदाचार, नैतिकता, समानता एवं स्वतंत्रता की वह लौ प्रज्ज्वलित की, जिसकी लपटें जाति-पाँति, ऊँच-नीच, छुआछूत, भेदभाव, अमीरी-गरीबी, पुरुष-स्त्री, विषमताओं और क्षेत्रीयतावाद जैसी प्रवृत्तियों को निरंतर जलाती रहीं। नाथपन्थ के विचार-दर्शन ने एक ऐसी योगी-परंपरा को जन्म दिया, जिसने भारतीय संस्कृति के एकाकार सामाजिक चिंतन को ही अपना उद्देश्य बना दिया। नाथपन्थ की इस योगी-परंपरा ने हर प्रकार की सामाजिक बुराइयों का खुलकर प्रतिकार किया। महायोगी गोरखनाथ ने वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था के श्रेष्ठतावादी सिद्धांत को चुनौती दी एवं सभी वर्णों तथा जातियों को एक समान बताया।

About Author

डॉ. पद्मजा सिंह का जन्म 2 जनवरी, 1972 को देवरिया जनपद के नगवाखास गाँव में हुआ। उनकी संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा गोरखपुर महानगर में हुई। सन् 1993 में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग से पी.जी. में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। स्नातकोत्तर की उपाधि के साथ ही नेट परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 2018 में इसी विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग में सहायक आचार्य नियुक्त हुईं। 12 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रस्तुत किए गए शोध-पत्र प्रशंसित हुए। 14 शोध-पत्र प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। इससे पूर्व इनकी प्रकाशित पुस्तक 'नाथपन्थ वर्तमान उपादेयता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य', भारत के सामाजिक-धार्मिक इतिहास में अभिरुचि रखनेवाले अध्येताओं के लिए महत्त्वपूर्ण है। नाथपन्थ के विशेषज्ञ के रूप में अपना शोध 'नाथपन्थ का उद्भव एवं विकास : एक ऐतिहासिक विवेचन' विषय पर पूरा किया है।

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