SaleHardback
Nagarjun Rachanawali : Vols. 1 7 (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Nagarjun
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Nagarjun
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹5,500 ₹3,850
Save: 30%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9788126701513
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
उनके जीवन के लगभग अड़सठ वर्ष (1929–1997) रचनाकर्म को समर्पित। कविता, उपन्यास, संस्मरण, यात्रावृत्त, निबन्ध, बाल–साहित्य आदि सभी विधाओं में उन्होंने लिखा। हिन्दी के अलावा मैथिली, बांग्ला और संस्कृत में भी उन्होंने न सिर्फ़ मौलिक रचनाएँ कीं, इन भाषाओं से अनुवाद भी किए। कुछ पत्र–पत्रिकाओं में उन्होंने स्तम्भ-लेखन भी किया।
रचनावली के प्रथम खंड में बाबा की उन सभी कविताओं को संकलित किया गया है, जिनका रचनाकाल 1967 ई. तक है। ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तुमने कहा था’, ‘हज़ार–हज़ार बाँहोंवाली’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘रत्नगर्भ’, ‘इस गुब्बारे की छाया में’ तथा ‘भूल जाओ पुराने सपने’—इन संग्रहों से 1967 तक की सभी कविताओं को कालक्रम से यहाँ ले लिया गया है।
इसके अलावा नागार्जुन के सर्वाधिक प्रिय कवि कालिदास की रचना ‘मेघदूत’ का उनके द्वारा मुक्तछन्द में किया गया अनुवाद भी इसमें संकलित है। यह अनुवाद 1953 में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के एक ही अंक में प्रकाशित हुआ। इसके बाद 1955 में पुस्तकाकार प्रकाशन के समय इसमें एक लम्बी भूमिका और कुछ पादटिप्पणियाँ भी जोड़ी गर्इं। रचनावली में वह इसी रूप में उपलब्ध है।
Be the first to review “Nagarjun Rachanawali : Vols. 1 7 (HB)” Cancel reply
Description
उनके जीवन के लगभग अड़सठ वर्ष (1929–1997) रचनाकर्म को समर्पित। कविता, उपन्यास, संस्मरण, यात्रावृत्त, निबन्ध, बाल–साहित्य आदि सभी विधाओं में उन्होंने लिखा। हिन्दी के अलावा मैथिली, बांग्ला और संस्कृत में भी उन्होंने न सिर्फ़ मौलिक रचनाएँ कीं, इन भाषाओं से अनुवाद भी किए। कुछ पत्र–पत्रिकाओं में उन्होंने स्तम्भ-लेखन भी किया।
रचनावली के प्रथम खंड में बाबा की उन सभी कविताओं को संकलित किया गया है, जिनका रचनाकाल 1967 ई. तक है। ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तुमने कहा था’, ‘हज़ार–हज़ार बाँहोंवाली’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘रत्नगर्भ’, ‘इस गुब्बारे की छाया में’ तथा ‘भूल जाओ पुराने सपने’—इन संग्रहों से 1967 तक की सभी कविताओं को कालक्रम से यहाँ ले लिया गया है।
इसके अलावा नागार्जुन के सर्वाधिक प्रिय कवि कालिदास की रचना ‘मेघदूत’ का उनके द्वारा मुक्तछन्द में किया गया अनुवाद भी इसमें संकलित है। यह अनुवाद 1953 में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के एक ही अंक में प्रकाशित हुआ। इसके बाद 1955 में पुस्तकाकार प्रकाशन के समय इसमें एक लम्बी भूमिका और कुछ पादटिप्पणियाँ भी जोड़ी गर्इं। रचनावली में वह इसी रूप में उपलब्ध है।
About Author
नागार्जुन
जन्म : 30 जून, 1911 (ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन); ग्राम—तरौनी, ज़िला—दरभंगा (बिहार)।
शिक्षा : परम्परागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा।
सुविख्यात प्रगतिशील कवि-कथाकार। हिन्दी, मैथिली, संस्कृत और बांग्ला में काव्य-रचना। पूरा नाम वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’। मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ नाम से ही लेखन। शिक्षा-समाप्ति के बाद घुमक्कड़ी का निर्णय। गृहस्थ होकर भी रमते-राम। स्वभाव से आवेगशील, जीवन्त और फक्कड़। राजनीति और जनता के मुक्तिसंघर्षों में सक्रिय और रचनात्मक हिस्सेदारी। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा मध्य प्रदेश और बिहार के ‘शिखर सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित।
प्रमुख कृतियाँ : ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘बलचनमा’, ‘वरुण के बेटे’, ‘नई पौध आदि’ (उपन्यास); ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘चंदना’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘हज़ार-हज़ार बाँहोंवाली’, ‘पका है यह कटहल’, ‘अपने खेत में’, ‘मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा’ (कविता-संग्रह); ‘भस्मांकुर’, ‘भूमिजा’ (खंडकाव्य); ‘चित्रा’, ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (हिन्दी में भी अनूदित मैथिली कविता-संग्रह); ‘पारो’ (मैथिली उपन्यास); ‘धर्मलोक शतकम्’ (संस्कृत काव्य) तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियाँ।
निधन : 5 नवम्बर, 1998
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Nagarjun Rachanawali : Vols. 1 7 (HB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.