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Nagarjun Ka Rachana Sansar
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विजय बहादुर सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विजय बहादुर सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
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9789350001059
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
192
एक ऐसे कविता-समय में जहाँ सब सिद्धान्तवादी सृजन में अनुशासित शिल्पियों की तरह जुटे हुए हों, नागार्जुन ने ऐसे अनुशासनों को अँगूठा दिखाते हुए वे नई काव्य मर्यादाएँ रची हैं जिनसे ठस्स होती रचनाशीलता बेदखल हो सकी है। अपने चुनौतीपूर्ण सृजन से वे यह बता सके हैं कि कवि की आधार पहचान सिद्धान्तों का विनिवेशन नहीं, लोकानुभवों का सर्जनात्मक भाषानुवाद करना है। और लोकानुभव कभी भी प्रायोजित नहीं किए जा सकते
यह नागार्जुन जैसे कवियों को पढ़ते हुए ही जाना जा सकता है कि कविता सचेत दुनियादारी की कमाई नहीं है वह तो समय और गतिशील सृष्टि की आत्मा की सामूहिक पुकार है ।
नागार्जुन जैसे कवियों के आलोचकों को यह संस्कार तो विकसित करना ही चाहिए कि कविता का सौन्दर्य-दर्शन उस सैद्धान्तिक चीर-फाड़ में नहीं है जो उसकी सार-सत्ता को तरह-तरह से एक वैज्ञानिक की तरह बिखेर देता है।
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Description
एक ऐसे कविता-समय में जहाँ सब सिद्धान्तवादी सृजन में अनुशासित शिल्पियों की तरह जुटे हुए हों, नागार्जुन ने ऐसे अनुशासनों को अँगूठा दिखाते हुए वे नई काव्य मर्यादाएँ रची हैं जिनसे ठस्स होती रचनाशीलता बेदखल हो सकी है। अपने चुनौतीपूर्ण सृजन से वे यह बता सके हैं कि कवि की आधार पहचान सिद्धान्तों का विनिवेशन नहीं, लोकानुभवों का सर्जनात्मक भाषानुवाद करना है। और लोकानुभव कभी भी प्रायोजित नहीं किए जा सकते
यह नागार्जुन जैसे कवियों को पढ़ते हुए ही जाना जा सकता है कि कविता सचेत दुनियादारी की कमाई नहीं है वह तो समय और गतिशील सृष्टि की आत्मा की सामूहिक पुकार है ।
नागार्जुन जैसे कवियों के आलोचकों को यह संस्कार तो विकसित करना ही चाहिए कि कविता का सौन्दर्य-दर्शन उस सैद्धान्तिक चीर-फाड़ में नहीं है जो उसकी सार-सत्ता को तरह-तरह से एक वैज्ञानिक की तरह बिखेर देता है।
About Author
विजय बहादुर सिंह
16 फरवरी, 1940 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद - अब अंबेडकर नगर - के एक गाँव जयमलपुर में जन्मे विजय बहादुर सिंह ने अध्यापन-कार्य के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक कृतियों की सृष्टि कर सर्वभारतीय प्रतिष्ठा प्राप्त की है। उनके स्वतंत्र आलोचनात्मक ग्रंथ हैं 'वृहत्त्रयी' (प्रसाद, निराला, पंत की कविता पर एकाग्र), ‘नागार्जुन का रचना-संसार', 'नागार्जुन संवाद', 'कविता और संवेदना', 'उपन्यास : समय और संवेदना', ‘आलोचक का स्वदेश' (आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की साहित्यिक जीवनी)।
आठ खंडों में 'भवानीप्रसाद मिश्र ग्रंथावली', चार खंडों में ‘दुष्यंत कुमार ग्रंथावली’, आठ खंडों में 'नंददुलारे वाजपेयी ग्रंथावली' के संपादन कार्य के अलावा उन्होंने 'जनकवि ' नाम से प्रगतिशील कवियों केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर और मुक्तिबोध की कविताओं का संपादन किया है।
आलोचना की दुरूह बौद्धिकता से संबद्ध रहते हुए भी कविता के भावमय जगत् में प्रवेश करने में विजय बहादुर सिंह को कोई कठिनाई नहीं हुई । 'मौसम की चिट्ठी', 'पतझर की बाँसुरी', 'पृथ्वी का प्रेमगीत' (तीन कवियों का संयुक्त संकलन), लंबी आख्यानक कविता 'भीम बैठका’ और 'शब्द जिन्हें भूल गई भाषा' उनकी काव्यकृतियाँ हैं । 'आजादी के बाद के लोग' और 'आओ खोजें एक गुरु' उनकी समाज और शिक्षा से जुड़ी कृतियाँ हैं ।
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