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Musafir Hoon Yaro

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Partha Sarthi Sen Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Partha Sarthi Sen Sharma
Language:
Hindi
Format:
Hardback

263

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1-4 Days

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Book Type

Categories: ,
Page Extent:
184

इस पुस्तक के लेखक सरकार के लिए कार्य करनेवाले एक सैंतीस वर्षीय भारतीय हैं। भारत सरकार ने अपने मध्य क्रम के अधिकारियों के शिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत एम.बी.ए कोर्स हेतु उन्हें चुना और प्रायोजित किया था। इस कोर्स के लिए उन्हें एक अल्पज्ञात यूरोपीय देश स्लोवेनिया की राजधानी ल्युब्ल्याना भेजा गया। बीते हजारों वर्षों से यूरोपीय यात्री भारत की यात्रा करते और अपनी इन यात्राओं के बारे में लिखते रहे हैं। मेगस्थनीज से लेकर मार्को पोलो और निकोलो कॉण्टी से मार्क टली तक बहुत से श्वेत यूरोपियनों ने भारत की यात्रा कर अपने देशवासियों व भावी पीढ़ी के लाभ हेतु अपने अनुभवों को दर्ज किया है। इस अनुपात में, यूरोप की यात्रा करनेवाले भारतीयों की संख्या बहुत कम है और उनमें से भी अपने अनुभवों, दृष्टिकोणों व प्रतिक्रियाओं को दर्ज करनेवालों की संख्या तो और भी कम रही है। लेकिन पिछली शताब्दी में भारत इतना बदल गया है, जितना इतिहास में किसी भी शताब्दी में नहीं बदला था। आज इतिहास में पहली बार यूरोप से आनेवालों के मुकाबले यूरोप जानेवाले भारतीयों की संख्या अधिक हो गई है। इसके बावजूद कुछ अज्ञात कारणों से अपनी यूरोप यात्रा के अनुभवों को दर्ज करनेवाले भारतीयों की संख्या नगण्य ही है। यह पुस्तक इसी असंतुलन को साधने का एक विनीत प्रयास है, जो वहाँ की कला-संस्कृति-समाज का सांगोपांग दर्शन कराती है।.

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Description

इस पुस्तक के लेखक सरकार के लिए कार्य करनेवाले एक सैंतीस वर्षीय भारतीय हैं। भारत सरकार ने अपने मध्य क्रम के अधिकारियों के शिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत एम.बी.ए कोर्स हेतु उन्हें चुना और प्रायोजित किया था। इस कोर्स के लिए उन्हें एक अल्पज्ञात यूरोपीय देश स्लोवेनिया की राजधानी ल्युब्ल्याना भेजा गया। बीते हजारों वर्षों से यूरोपीय यात्री भारत की यात्रा करते और अपनी इन यात्राओं के बारे में लिखते रहे हैं। मेगस्थनीज से लेकर मार्को पोलो और निकोलो कॉण्टी से मार्क टली तक बहुत से श्वेत यूरोपियनों ने भारत की यात्रा कर अपने देशवासियों व भावी पीढ़ी के लाभ हेतु अपने अनुभवों को दर्ज किया है। इस अनुपात में, यूरोप की यात्रा करनेवाले भारतीयों की संख्या बहुत कम है और उनमें से भी अपने अनुभवों, दृष्टिकोणों व प्रतिक्रियाओं को दर्ज करनेवालों की संख्या तो और भी कम रही है। लेकिन पिछली शताब्दी में भारत इतना बदल गया है, जितना इतिहास में किसी भी शताब्दी में नहीं बदला था। आज इतिहास में पहली बार यूरोप से आनेवालों के मुकाबले यूरोप जानेवाले भारतीयों की संख्या अधिक हो गई है। इसके बावजूद कुछ अज्ञात कारणों से अपनी यूरोप यात्रा के अनुभवों को दर्ज करनेवाले भारतीयों की संख्या नगण्य ही है। यह पुस्तक इसी असंतुलन को साधने का एक विनीत प्रयास है, जो वहाँ की कला-संस्कृति-समाज का सांगोपांग दर्शन कराती है।.

About Author

दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक पार्थ सारथी सेन शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं और इस समय लखनऊ में स्थित हैं। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, डिस्कवर इंडिया, स्वागत, रेल बंधु और अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के लिए कई लेख लिखे हैं, जिनमें से अधिकांश यात्रा संबंधी हैं। पूर्व में उनका उपन्यास ‘हम हैं राही प्यार के’ प्रकाशित हो चुका है। अपने काम और लिखने के शौक के अलावा वे अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। वे खेलकूद में रुचि रखते हैं और साथ ही यात्रा करने तथा पुस्तकें पढ़ने के अत्यधिक शौकीन हैं।.

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