Murdon Ka Tila (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Rangeya Raghav
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
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Rangeya Raghav
Language:
Hindi
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भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का इतिहास मुअनजोदड़ो के उत्खनन में मिली सिन्धु घाटी की सभ्यता से शुरू होता है। इस सभ्यता का विकसित स्वरूप उस समय की ज्ञात किसी सभ्यता की तुलना में अधिक उन्नत है। प्रसिद्ध उपन्यासकार रांगेय राघव ने अपने इस उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ में उस आदि सभ्यता के संसार का सूक्ष्म चित्रण किया है। मोअन-जो-दड़ो सिन्धी शब्द है। उसका अर्थ है—मृतकों का स्थान अर्थात् ‘मुर्दों का टीला’।
‘मुर्दों का टीला’ शीर्षक इस उपन्यास में रांगेय राघव ने एक रचनाकार की दृष्टि से मोअन-जो-दड़ो का उत्खनन करने का प्रयास किया है। इतिहास की पुस्तकों में तो इस सभ्यता के बारे में महज़ तथ्यात्मक विवरण ही मिल पाते हैं। लेकिन रांगेय राघव के इस उपन्यास के सहारे हम सिन्धु घाटी सभ्यता के समाज की जीवित धड़कनें सुनते हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्वरूप क्या था? उस समाज के लोगों की जीवन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? रीति-रिवाज कैसे थे? शासन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? इन प्रश्नों का इतिहाससम्मत उत्तर आप इस उपन्यास में पाएँगे। भारतीय उपमहाद्वीप की अल्पज्ञात आदि सभ्यता को लेकर लिखा गया यह अद्वितीय उपन्यास है। रांगेय राघव का यह उपन्यास प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में प्रवेश का पहला दरवाज़ा है।

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Description

भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का इतिहास मुअनजोदड़ो के उत्खनन में मिली सिन्धु घाटी की सभ्यता से शुरू होता है। इस सभ्यता का विकसित स्वरूप उस समय की ज्ञात किसी सभ्यता की तुलना में अधिक उन्नत है। प्रसिद्ध उपन्यासकार रांगेय राघव ने अपने इस उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ में उस आदि सभ्यता के संसार का सूक्ष्म चित्रण किया है। मोअन-जो-दड़ो सिन्धी शब्द है। उसका अर्थ है—मृतकों का स्थान अर्थात् ‘मुर्दों का टीला’।
‘मुर्दों का टीला’ शीर्षक इस उपन्यास में रांगेय राघव ने एक रचनाकार की दृष्टि से मोअन-जो-दड़ो का उत्खनन करने का प्रयास किया है। इतिहास की पुस्तकों में तो इस सभ्यता के बारे में महज़ तथ्यात्मक विवरण ही मिल पाते हैं। लेकिन रांगेय राघव के इस उपन्यास के सहारे हम सिन्धु घाटी सभ्यता के समाज की जीवित धड़कनें सुनते हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्वरूप क्या था? उस समाज के लोगों की जीवन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? रीति-रिवाज कैसे थे? शासन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? इन प्रश्नों का इतिहाससम्मत उत्तर आप इस उपन्यास में पाएँगे। भारतीय उपमहाद्वीप की अल्पज्ञात आदि सभ्यता को लेकर लिखा गया यह अद्वितीय उपन्यास है। रांगेय राघव का यह उपन्यास प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में प्रवेश का पहला दरवाज़ा है।

About Author

रांगेय राघव

जन्म: 17 जनवरी, 1923; आगरा। मूल नाम : टी.एन.वी. आचार्य (तिरुमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य)।

शिक्षा : आगरा में। सेंट जॉन्स कॉलेज से 1944 में स्नातकोत्तर और 1949 में आगरा विश्वविद्यालय से गुरु गोरखनाथ पर पीएच.डी.। हिन्दी, अंग्रेज़ी, ब्रज और संस्कृत पर असाधारण अधिकार।

कृतियाँ : 13 वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया। 1942 में अकालग्रस्त बंगाल की यात्रा के बाद एक रिपोर्ताज लिखा—‘तूफ़ानों के बीच’।

मात्र 30 वर्ष की आयु में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अतिरिक्त आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं।

सम्मान : ‘हिन्दुस्तानी अकादमी पुस्कार’ (1947), ‘डालमिया पुरस्कार’ (1954), ‘उत्तरप्रदेश शासन पुरस्कार’ (1957 तथा 1959) और मरणोपरांत ‘महात्मा गांधी पुरस्कार’ (1966) से सम्मानित।

निधन : 12 सितम्बर, 1962 को बम्बई में।

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