Munni Mobile

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
प्रदीप सौरभ
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
प्रदीप सौरभ
Language:
Hindi
Format:
Paperback

194

Save: 1%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789352295760 Category
Category:
Page Extent:
156

मुन्नी मोबाइल –
‘मुन्नी मोबाइल’ समकालीन सच्चाइयों के बदहवास चेहरों की शिनाख्त करता उपन्यास है। धर्म, राजनीति, बाज़ार और मीडिया आदि के द्वारा सामाजिक विकास की प्रक्रिया किस तरह प्रेरित व प्रभावित हो रही है, इसका चित्रण प्रदीप सौरभ ने अपनी मुहावरेदार खाँ-दवाँ भाषा के माध्यम से किया है प्रदीप सौरभ के पास नये यथार्थ के प्रामाणिक और विरल अनुभव हैं। इनका कथात्मक उपयोग करते हुए उन्होंने यह अत्यन्त दिलचस्प उपन्यास लिखा। मुन्नी मोबाइल का चरित्र इतना प्रभावी है कि स्मृति में ठहर जाता है। -रवीन्द्र कालिया,सुप्रसिद्ध कथाकार।

लेखक – पत्रकार आनन्द भारती की व्यासपीठ से निकली ‘मुन्नी मोबाइल’ की कथा पिछले तीन दशकों के भारत का आईना है। इसकी कमानी मोबाइल क्रान्ति से लेकर मोदी (नरेन्द्र) की भ्रान्ति तक और जातीय सेनाओं से लेकर लन्दन के आप्रवासी भारतीयों के जीवन को माप रही है। दिल्ली के बाहरी इलाक़े की एक सीधीसादी घरेलू नौकरानी का वक़्त की हवा के साथ क्रमशः एक दबंग और सम्पन्न स्थानीय ‘दादा’ बन जाना और फिर लड़कियों की बड़ी सप्लायर में उसका आख़िरी रूपान्तरण, एक भयावह कथा है, जिसमें हमारे समय की अनेक अकथनीय सच्चाइयाँ छिपी हुई हैं। मुन्नी के सपनों की बेटी रेखा चितकबरी पर समाप्त होने वाली यह गाथा, ख़त्म होकर भी ख़त्म कहाँ होती है? -मृणाल पांडे, प्रमुख सम्पादक, दैनिक हिन्दुस्तान

‘मुन्नी मोबाइल’ एकदम नयी काट का, एक दुर्लभ प्रयोग है! प्रचारित जादुई तमाशों से अलग, जमीनी, धड़कता हुआ, आसपास का और फिर भी इतना नवीन कि लगे आप इसे उतना नहीं जानते थे। इसमें डायरी, रिपोर्टिंग, कहानी की विधाएँ मिक्स होकर ऐसे वृत्तान्त का रूप ले लेती हैं जिसमें समकालीन उपद्रवित, अति उलझे हुए उस गौरव यथार्थ का चित्रण है, इसे पढ़कर आप गोर्की के तलछटिए जीवन के जीवन्त वर्णनों और ब्रेख्त द्वारा जर्मनी में हिटलर के आगाज़ को लेकर लिखे ‘द रेसिस्टीबिल राइज ऑफ़ आर्तुरो उई’ जैसे विख्यात नाटक के प्रसंगों को याद किये बिना नहीं रह सकते! पत्रकारिता और कहानी कला को मिक्स करके अमरीका में जो कथा प्रयोग टॉम वुल्फ़ ने किये हैं प्रदीप यहाँ किये हैं। -सुधीश पचौरी, सुप्रसिद्ध आलोचक

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Munni Mobile”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

मुन्नी मोबाइल –
‘मुन्नी मोबाइल’ समकालीन सच्चाइयों के बदहवास चेहरों की शिनाख्त करता उपन्यास है। धर्म, राजनीति, बाज़ार और मीडिया आदि के द्वारा सामाजिक विकास की प्रक्रिया किस तरह प्रेरित व प्रभावित हो रही है, इसका चित्रण प्रदीप सौरभ ने अपनी मुहावरेदार खाँ-दवाँ भाषा के माध्यम से किया है प्रदीप सौरभ के पास नये यथार्थ के प्रामाणिक और विरल अनुभव हैं। इनका कथात्मक उपयोग करते हुए उन्होंने यह अत्यन्त दिलचस्प उपन्यास लिखा। मुन्नी मोबाइल का चरित्र इतना प्रभावी है कि स्मृति में ठहर जाता है। -रवीन्द्र कालिया,सुप्रसिद्ध कथाकार।

लेखक – पत्रकार आनन्द भारती की व्यासपीठ से निकली ‘मुन्नी मोबाइल’ की कथा पिछले तीन दशकों के भारत का आईना है। इसकी कमानी मोबाइल क्रान्ति से लेकर मोदी (नरेन्द्र) की भ्रान्ति तक और जातीय सेनाओं से लेकर लन्दन के आप्रवासी भारतीयों के जीवन को माप रही है। दिल्ली के बाहरी इलाक़े की एक सीधीसादी घरेलू नौकरानी का वक़्त की हवा के साथ क्रमशः एक दबंग और सम्पन्न स्थानीय ‘दादा’ बन जाना और फिर लड़कियों की बड़ी सप्लायर में उसका आख़िरी रूपान्तरण, एक भयावह कथा है, जिसमें हमारे समय की अनेक अकथनीय सच्चाइयाँ छिपी हुई हैं। मुन्नी के सपनों की बेटी रेखा चितकबरी पर समाप्त होने वाली यह गाथा, ख़त्म होकर भी ख़त्म कहाँ होती है? -मृणाल पांडे, प्रमुख सम्पादक, दैनिक हिन्दुस्तान

‘मुन्नी मोबाइल’ एकदम नयी काट का, एक दुर्लभ प्रयोग है! प्रचारित जादुई तमाशों से अलग, जमीनी, धड़कता हुआ, आसपास का और फिर भी इतना नवीन कि लगे आप इसे उतना नहीं जानते थे। इसमें डायरी, रिपोर्टिंग, कहानी की विधाएँ मिक्स होकर ऐसे वृत्तान्त का रूप ले लेती हैं जिसमें समकालीन उपद्रवित, अति उलझे हुए उस गौरव यथार्थ का चित्रण है, इसे पढ़कर आप गोर्की के तलछटिए जीवन के जीवन्त वर्णनों और ब्रेख्त द्वारा जर्मनी में हिटलर के आगाज़ को लेकर लिखे ‘द रेसिस्टीबिल राइज ऑफ़ आर्तुरो उई’ जैसे विख्यात नाटक के प्रसंगों को याद किये बिना नहीं रह सकते! पत्रकारिता और कहानी कला को मिक्स करके अमरीका में जो कथा प्रयोग टॉम वुल्फ़ ने किये हैं प्रदीप यहाँ किये हैं। -सुधीश पचौरी, सुप्रसिद्ध आलोचक

About Author

प्रदीप सौरभ - निजी जीवन में खरी-खोटी हर ख़ूबियों से लैस खड़क, खुरदरे, खुर्राट और खरे। मौन में तर्कों का पहाड़ लिये इस शख्स ने कब, कहाँ और कितना जिया इसका हिसाब-किताब कभी नहीं रखा। बँधी-बँधाई लीक पर नहीं चले। पेशानी पर कभी कोई लकीर नहीं, भले ही जीवन की नाव 'भँवर' पर अटकी खड़ी हो। कानपुर में जन्मे लेकिन लम्बा समय इलाहाबाद में गुज़ारा। वहीं विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। कई नौकरियाँ करते-छोड़ते दिल्ली पहुँचकर 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के सम्पादकीय विभाग से जुड़े। क़लम से तनिक भी ऊबे तो कैमरे की आँख से बहुत कुछ देखा। कई बड़े शहरों में फ़ोटो प्रदर्शनी लगायी और अख़बारों में दूसरों पर कॉलम लिखने वाले, ख़ुद कॉलम पर छा गये। मूड आया तो चित्रांकन भी किया। पत्रकारिता में पच्चीस वर्षों से अधिक समय पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्यों में गुज़ारा। गुजरात दंगों की बेबाक रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत हुए। देश का पहला हिन्दी का बच्चों का अख़बार और साहित्यिक पत्रिका 'मुक्ति' का सम्पादन किया। पंजाब के आतंकवादियों और बिहार के बँधुआ मज़दूरों पर बनी लघु फ़िल्मों के लिए शोध किया। 'बसेरा' धारावाहिक के मीडिया सलाहकार भी रहे। कई विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता विभाग की विज़िटिंग फैकल्टी हैं। इनके हिस्से कविता, बच्चों की कहानी, सम्पादित आलोचना की पाँच किताबें हैं। फिलवक़्त दैनिक हिन्दुस्तान के सहायक सम्पादक हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Munni Mobile”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED