Mohpash

Publisher:
Sahitya Vimarsh
| Author:
Dilip Kumar
| Language:
HIndi
| Format:
Paperback
Publisher:
Sahitya Vimarsh
Author:
Dilip Kumar
Language:
HIndi
Format:
Paperback

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219

अभिनेता देवानंद साहब अपनी किताब “रोमांसिग विथ लाइफ” में लिखते हैं कि “जीवन का सफर कैसा भी रहा हो, उसमें नाकामियां हों या उपलब्धियां, ये कुछ खास मायने नहीं रखता। सफर जारी रहा और हमने कितनी शिद्दत से मंजिल की तरफ कदम बढ़ाए, ये महत्वपूर्ण बात है।” ‘मोहपाश’ आपको जीवन के उतार -चढ़ाव के ऐसे अनुभवों से राब्ता करायेगा कि आप हैरान हो जाएंगे। इसमें पाने, हासिल करने की होड़ नहीं है बल्कि जीवन में गुंथे मोह के धागों को आत्मसम्मान के साथ बचाये रहने की जुगत है। नारी की शक्ति सिर्फ उसके शरीर की बनावट तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी सोच में है। कहते हैं कि पूरी दुनिया की औरतों की कोई जाति नहीं होती है, उनकी सिर्फ एक जाति होती है – औरत। यानी पूरी दुनिया में वो औरत ही रहती है चाहे वो नेपाल की तराई की एक छोटी सी दुकान चलाकर जीवनयापन करने वाली औरत हो या देश की राजधानी दिल्ली में रह रही आधुनकि परिवेश की स्त्री हो, उन सभी की सामाजिक बेड़ियां और संघर्ष कमोबेश एक जैसे ही हैं। भुजाली लेकर पहाड़ों पर भेड़ियों और नरपिशाचों से जूझती स्त्री का संघर्ष, सिख दंगों में उजड़ी दिल्ली में इज्जत से जीवनयापन करने की जद्दोजहद की कहानी कहती है, यह उपन्यास। एक युवती के आत्मसम्मान से जीने की जद्दोजहद और हक की लड़ाई जिसमें उसके सामने सब ऐसे लोग ही हैं जिनसे वो मोहपाश के धागे से जुड़ी है। सभी को एक दूसरे से मोह-नेह का रिश्ता है लेकिन जीवन के कुरुक्षेत्र से सज्ज है ये मोहपाश का चक्रव्यूह। कौन बच कर निकल पाता है – इससे जीत कर या सब कुछ हारकर?

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अभिनेता देवानंद साहब अपनी किताब “रोमांसिग विथ लाइफ” में लिखते हैं कि “जीवन का सफर कैसा भी रहा हो, उसमें नाकामियां हों या उपलब्धियां, ये कुछ खास मायने नहीं रखता। सफर जारी रहा और हमने कितनी शिद्दत से मंजिल की तरफ कदम बढ़ाए, ये महत्वपूर्ण बात है।” ‘मोहपाश’ आपको जीवन के उतार -चढ़ाव के ऐसे अनुभवों से राब्ता करायेगा कि आप हैरान हो जाएंगे। इसमें पाने, हासिल करने की होड़ नहीं है बल्कि जीवन में गुंथे मोह के धागों को आत्मसम्मान के साथ बचाये रहने की जुगत है। नारी की शक्ति सिर्फ उसके शरीर की बनावट तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी सोच में है। कहते हैं कि पूरी दुनिया की औरतों की कोई जाति नहीं होती है, उनकी सिर्फ एक जाति होती है – औरत। यानी पूरी दुनिया में वो औरत ही रहती है चाहे वो नेपाल की तराई की एक छोटी सी दुकान चलाकर जीवनयापन करने वाली औरत हो या देश की राजधानी दिल्ली में रह रही आधुनकि परिवेश की स्त्री हो, उन सभी की सामाजिक बेड़ियां और संघर्ष कमोबेश एक जैसे ही हैं। भुजाली लेकर पहाड़ों पर भेड़ियों और नरपिशाचों से जूझती स्त्री का संघर्ष, सिख दंगों में उजड़ी दिल्ली में इज्जत से जीवनयापन करने की जद्दोजहद की कहानी कहती है, यह उपन्यास। एक युवती के आत्मसम्मान से जीने की जद्दोजहद और हक की लड़ाई जिसमें उसके सामने सब ऐसे लोग ही हैं जिनसे वो मोहपाश के धागे से जुड़ी है। सभी को एक दूसरे से मोह-नेह का रिश्ता है लेकिन जीवन के कुरुक्षेत्र से सज्ज है ये मोहपाश का चक्रव्यूह। कौन बच कर निकल पाता है – इससे जीत कर या सब कुछ हारकर?

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