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Mera kuchh samaan (HB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Gulzar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Gulzar
Language:
Hindi
Format:
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Category: Hindi
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बहुत छोटी-छोटी बातें होती हैं—रोटी, तवा, धुआँ, पट्टी, कोहरा या पानी की एक बूँद। लेकिन, उनके बड़ेपन की तरफ़ कोई हमें ले जाता है, तो हम अनायास ही एक ताल से ऊपर उठ जाते हैं, नितान्त निर्मल होते हुए। गुलज़ार की शायरी इसी निर्मलता की तलाश की एक शीश जान पड़ती है। वे बहुत मामूली चीज़ों में बहुत ख़ास तरह से अभिव्यक्त होते हैं। उदासी, ख़ुशी या मिलन-बिछोह अथवा बचपन…। लगभग सभी नितान्त निजी इन स्पर्शों को वे शब्दों के ज़रिए मन से मन में स्थानान्तरित करने की क्षमता रखते हैं।
एक विशेष प्रकार की सूमनियत के बावजूद ये विराग में जाकर अपना उत्कर्ष पाते हैं। इसलिए उदास भी होते हैं तो अगरबत्ती की तरह ताकि जलें तो भी एक ख़ुशबू दे सकें औरों के लिए।
गुलज़ार की यह सारी मौलिकता और अपनापन इसलिए भी और-और महत्त्वपूर्ण जान पड़ती है क्योंकि वे अपनी संवेदनशीलता और शब्द फ़िल्मों में लेकर आए हैं।
बेशुमार दौलत और शोहरत की व्यावसायिक चकाचौंध में जहाँ लोकप्रियता का अपना पैमाना है, वहाँ साहित्य की संवेदनात्मक, मार्मिक तथा मानव हृदय से जुड़े हर्ष-विषाद की जैसी काव्यात्मक अभिव्यक्ति गुलज़ार के हाथों हुई, वह अपने आप में एक अद्वितीयता का प्रतीक बन गई है।
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Description
बहुत छोटी-छोटी बातें होती हैं—रोटी, तवा, धुआँ, पट्टी, कोहरा या पानी की एक बूँद। लेकिन, उनके बड़ेपन की तरफ़ कोई हमें ले जाता है, तो हम अनायास ही एक ताल से ऊपर उठ जाते हैं, नितान्त निर्मल होते हुए। गुलज़ार की शायरी इसी निर्मलता की तलाश की एक शीश जान पड़ती है। वे बहुत मामूली चीज़ों में बहुत ख़ास तरह से अभिव्यक्त होते हैं। उदासी, ख़ुशी या मिलन-बिछोह अथवा बचपन…। लगभग सभी नितान्त निजी इन स्पर्शों को वे शब्दों के ज़रिए मन से मन में स्थानान्तरित करने की क्षमता रखते हैं।
एक विशेष प्रकार की सूमनियत के बावजूद ये विराग में जाकर अपना उत्कर्ष पाते हैं। इसलिए उदास भी होते हैं तो अगरबत्ती की तरह ताकि जलें तो भी एक ख़ुशबू दे सकें औरों के लिए।
गुलज़ार की यह सारी मौलिकता और अपनापन इसलिए भी और-और महत्त्वपूर्ण जान पड़ती है क्योंकि वे अपनी संवेदनशीलता और शब्द फ़िल्मों में लेकर आए हैं।
बेशुमार दौलत और शोहरत की व्यावसायिक चकाचौंध में जहाँ लोकप्रियता का अपना पैमाना है, वहाँ साहित्य की संवेदनात्मक, मार्मिक तथा मानव हृदय से जुड़े हर्ष-विषाद की जैसी काव्यात्मक अभिव्यक्ति गुलज़ार के हाथों हुई, वह अपने आप में एक अद्वितीयता का प्रतीक बन गई है।
About Author
गुलज़ार
गुलज़ार एक मशहूर शायर हैं जो फ़िल्में बनाते हैं। गुलज़ार एक अप्रतिम फ़िल्मकार हैं जो कविताएँ लिखते हैं।
बिमल राय के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू हुए। फ़िल्मों की दुनिया में उनकी कविताई इस तरह चली कि हर कोई गुनगुना उठा। एक 'गुलज़ार-टाइप' बन गया। अनूठे संवाद, अविस्मरणीय पटकथाएँ, आसपास की ज़िन्दगी के लम्हे उठाती मुग्धकारी फ़िल्में। ‘परिचय’, ‘आँधी’, ‘मौसम’, ‘किनारा’, ‘ख़ुशबू’, ‘नमकीन’, ‘अंगूर’, ‘इजाज़त’—हर एक अपने में अलग।
1934 में दीना (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलज़ार ने रिश्ते और राजनीति—दोनों की बराबर परख की। उन्होंने ‘माचिस’ और ‘हू-तू-तू’ बनाई, ‘सत्या’ के लिए लिखा—'गोली मार भेजे में, भेजा शोर करता है...।‘
कई किताबें लिखीं। ‘चौरस रात’ और ‘रावी पार’ में कहानियाँ हैं तो ‘गीली मिट्टी’ एक उपन्यास। 'कुछ नज़्में’, ‘साइलेंसेस’, ‘पुखराज’, ‘चाँद पुखराज का’, ‘ऑटम मून’, ‘त्रिवेणी’ वग़ैरह में कविताएँ हैं। बच्चों के मामले में बेहद गम्भीर। बहुलोकप्रिय गीतों के अलावा ढेरों प्यारी-प्यारी किताबें लिखीं जिनमें कई खंडों वाली ‘बोसकी का पंचतंत्र’ भी है। ‘मेरा कुछ सामान’ फ़िल्मी गीतों का पहला संग्रह था, ‘छैयाँ-छैयाँ’ दूसरा। और किताबें हैं : ‘मीरा’, ‘ख़ुशबू’, ‘आँधी’ और अन्य कई फ़िल्मों की पटकथाएँ। 'सनसेट प्वॉइंट', 'विसाल', 'वादा', 'बूढ़े पहाड़ों पर' या 'मरासिम' जैसे अल्बम हैं तो 'फिज़ा' और 'फ़िलहाल' भी। यह विकास-यात्रा का नया चरण है।
बाक़ी कामों के साथ-साथ 'मिर्ज़ा ग़ालिब' जैसा प्रामाणिक टी.वी. सीरियल बनाया। ‘ऑस्कर अवार्ड’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित कई अलंकरण पाए। सफ़र इसी तरह जारी है। फ़िल्में भी हैं और 'पाजी नज़्मों' का मजमुआ भी आकार ले रहा है।
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