Meera Sikri Ki Lokpriya Kahaniyan
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मीरा सीकरी की कहानियाँ अधिकतर स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर लिखी गई हैं। संबंधों की एक ऐसी शृंखला, जो बाहर से भीतर की तरफ मुड़ी हुई है। बाहरी संबंध यहाँ एक भीतरी घटना की तरह हो गए हैं और इस घटना के साथ जुड़ा हुआ है कई तरह का अवसाद, अकेलापन और अस्तित्व के प्रश्न, जो संबंधों को नए-नए रूपों में परिभाषित करते चलते हैं। इन कहानियों के केंद्र में स्त्री है, जिसके मन के अनकहे एहसास को पकड़ने के लिए मनोविश्लेषण ही कारगर हो सकता है। वर्तमान समय में ऐसा प्रकट किया जा रहा है कि स्त्री-पुरुष संबंधों में एक स्वतंत्र और सहनशील मानसिकता विकसित हुई है। यह आभासी सच है या वास्तविकता, इसको देखना होगा। आज की उपभोगतावादी संस्कृति के परिदृश्य में, स्त्री हो या पुरुष, उसकी दृष्टि केंद्रित है अर्थ के उपार्जन पर, प्रतियोगिता और दौड़भाग, मन के भावों के लिए अवकाश ही कहाँ है? जीवन का सारा खेल शक्ति के केंद्रीकरण का है और इस शक्ति को समूचा का समूचा सौंप दिया गया है अर्थ को। समाज में व्याप्त विसंगतियाँ, संत्रास और परस्पर निर्भरता के ताने-बाने में बुनी ये कहानियाँ पठनीय तो हैं ही, उद्वेलित करनेवाली भी हैं|
मीरा सीकरी की कहानियाँ अधिकतर स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर लिखी गई हैं। संबंधों की एक ऐसी शृंखला, जो बाहर से भीतर की तरफ मुड़ी हुई है। बाहरी संबंध यहाँ एक भीतरी घटना की तरह हो गए हैं और इस घटना के साथ जुड़ा हुआ है कई तरह का अवसाद, अकेलापन और अस्तित्व के प्रश्न, जो संबंधों को नए-नए रूपों में परिभाषित करते चलते हैं। इन कहानियों के केंद्र में स्त्री है, जिसके मन के अनकहे एहसास को पकड़ने के लिए मनोविश्लेषण ही कारगर हो सकता है। वर्तमान समय में ऐसा प्रकट किया जा रहा है कि स्त्री-पुरुष संबंधों में एक स्वतंत्र और सहनशील मानसिकता विकसित हुई है। यह आभासी सच है या वास्तविकता, इसको देखना होगा। आज की उपभोगतावादी संस्कृति के परिदृश्य में, स्त्री हो या पुरुष, उसकी दृष्टि केंद्रित है अर्थ के उपार्जन पर, प्रतियोगिता और दौड़भाग, मन के भावों के लिए अवकाश ही कहाँ है? जीवन का सारा खेल शक्ति के केंद्रीकरण का है और इस शक्ति को समूचा का समूचा सौंप दिया गया है अर्थ को। समाज में व्याप्त विसंगतियाँ, संत्रास और परस्पर निर्भरता के ताने-बाने में बुनी ये कहानियाँ पठनीय तो हैं ही, उद्वेलित करनेवाली भी हैं|
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