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Marang Goda Neelkanth Hua (HB)
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Marang Goda Neelkanth Hua (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Mahua Maji
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Mahua Maji
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹450 ₹315
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In stock
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ISBN:
SKU
9788126727612
Category Hindi
Category: Hindi
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महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित यह उपन्यास एक बड़ी रिक्ति की भरपाई है।
इस उपन्यास में महुआ माजी यूरेनियम की तलाश से जुड़ी जिस सम्पूर्ण प्रक्रिया को उजागर करती हैं, वह हिन्दी उपन्यास का जोखिम के इलाक़े में प्रवेश है। महुआ माजी ने गहरे शोध, सर्वेक्षण और समाजशास्त्रीय दृष्टि का सहारा लेकर इस उपन्यास के माध्यम से एक ज़रूरी हस्तक्षेप किया है।
उपन्यास का केन्द्रीय पात्र सगेन प्रतिरोध की स्थानिकता को बरकरार रखते हुए विकिरणविरोधी वैश्विक आन्दोलन के साथ भी संवाद बनाता है। हिरोशिमा की दहशत और चेरनोबिल व फुकुशिमा सरीखे हादसे उसकी चेतना को लगातार प्रतिरोधी दिशा देते हैं। अच्छा यह भी है कि यह सबकुछ मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा एवं अन्तर्द्वन्द्व में घुल-मिलकर प्रस्तुत हुआ है। सचमुच उपन्यास में वर्णित बहुत से तथ्य व मुद्दे अभी तक गम्भीर चर्चा का विषय नहीं बन सके हैं। इस रूप में यह उपन्यास एक नई भूमिका के रूप में भी प्रस्तुत है।
—वीरेन्द्र यादव
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Description
महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर केन्द्रित यह उपन्यास एक बड़ी रिक्ति की भरपाई है।
इस उपन्यास में महुआ माजी यूरेनियम की तलाश से जुड़ी जिस सम्पूर्ण प्रक्रिया को उजागर करती हैं, वह हिन्दी उपन्यास का जोखिम के इलाक़े में प्रवेश है। महुआ माजी ने गहरे शोध, सर्वेक्षण और समाजशास्त्रीय दृष्टि का सहारा लेकर इस उपन्यास के माध्यम से एक ज़रूरी हस्तक्षेप किया है।
उपन्यास का केन्द्रीय पात्र सगेन प्रतिरोध की स्थानिकता को बरकरार रखते हुए विकिरणविरोधी वैश्विक आन्दोलन के साथ भी संवाद बनाता है। हिरोशिमा की दहशत और चेरनोबिल व फुकुशिमा सरीखे हादसे उसकी चेतना को लगातार प्रतिरोधी दिशा देते हैं। अच्छा यह भी है कि यह सबकुछ मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा एवं अन्तर्द्वन्द्व में घुल-मिलकर प्रस्तुत हुआ है। सचमुच उपन्यास में वर्णित बहुत से तथ्य व मुद्दे अभी तक गम्भीर चर्चा का विषय नहीं बन सके हैं। इस रूप में यह उपन्यास एक नई भूमिका के रूप में भी प्रस्तुत है।
—वीरेन्द्र यादव
About Author
महुआ माजी
जन्म : 10 दिसम्बर, राँची।
शिक्षा : समाजशास्त्र में एम.ए., पीएच.डी.।
महुआ माजी ने फ़िल्म ऐंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट, पुणे से फ़िल्म अप्रीसिएशन कोर्स किया है।
नवम्बर 2013 से नवम्बर 2016 तक ‘झारखंड राज्य महिला आयोग’ की ‘अध्यक्ष’ रहीं।
पहला उपन्यास ‘मैं बोरिशाइल्ला’ (बांग्लादेश के अभ्युदय की महागाथा) 2006 में प्रकाशित हुआ।
2008 में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद हुआ जो 2010 में रोम (इटली) स्थित यूरोप के सबसे बड़े विश्वविद्यालय ‘सापिएन्जा यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोम’ में मॉडर्न लिटरेचर के बी.ए. के कोर्स में शामिल किया गया।
दूसरा उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ (विकिरण, प्रदूषण और विस्थापन से जूझते आदिवासियों की गाथा) 2012 में प्रकाशित हुआ।
म्मान/पुरस्कार : 2007 में लन्दन के हाउस ऑफ़ लाड्र्स में ब्रिटेन के आन्तरिक सुरक्षा मंत्री के हाथों ‘अन्तरराष्ट्रीसय कथा यू.के. सम्मान’; 2010 में मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी तथा संस्कृति परिषद द्वारा ‘अखिल भारतीय वीरसिंह देव सम्मान’; 2010 में उज्जैन के कालिदास अकादमी द्वारा ‘विश्व हिन्दी सेवा सम्मान’; 2012 में ‘राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान : ‘मैला आंचल’—फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार’। लोक सेवा समिति, झारखंड द्वारा ‘झारखंड रत्न सम्मान’। झारखंड सरकार का ‘राजभाषा सम्मान’। 2019 में ‘बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान’ आदि।
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