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Liver Pratyaropan : Mere Anubhav “लिवर प्रत्यारोपण मेरे अनुभव” Book in Hindi

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Ashok Kumar Pant
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Dr. Ashok Kumar Pant
Language:
Hindi
Format:
Paperback

300

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In stock

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1-4 Days

In stock

Weight 265 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789355219374 Categories ,
Page Extent:
208

संस्मरण मनोरंजक हो, ज्ञानवर्धक हो, गतिमान हो और पाठक के हृदय को उद्वेलित कर सके तो साहित्य की वैतरणी में बहकर लेखक के साथ पाठक भी तर जाता है। अशोक पंतजी ने ऐसा ही एक वितान रचा है, जिससे यह सीख तो मिलती ही है कि अंगदान जैसा पुण्यकर्म मानव जीवन के लिए कितना आवश्यक है और यह प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की विडंबना और महानगरों में जटिल उपलब्धता की ओर भी इंगित करता है ।

अस्पताल एक दर्दभरी कहानियों की किताब है। हर मरीज की अपनी कहानी, जिसे सुनते-सुनते डॉक्टर भी उकता जाते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। लेकिन रोग की गंभीरता और रोगी की मानसिकता को समझते हुए जो डॉक्टर सांत्वना के अवतार बनकर रोगी को सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं, वे उसके लिए ईश्वर का पर्याय बन जाते हैं।

अनेक बार ऐसा होता है कि रोगी या तो अपनी परेशानी समझा नहीं पाता है या डॉक्टर अपनी व्यस्तता के कारण समय नहीं दे पाता है और रोगी का डॉक्टर अथवा अस्पताल के प्रति रवैया बदलने लगता है । विचारशील व्यक्तित्व के धनी लेखक ने सामाजिक प्रतिबद्धता के अनुरूप अपने संस्मरणों को मानव उत्थान की परिकल्पना करते हुए ऐसी सघन बीमारियों से पीड़ित रोगियों के कल्याण की कामना की है, इसलिए भी यह कदम सराहनीय है।

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Description

संस्मरण मनोरंजक हो, ज्ञानवर्धक हो, गतिमान हो और पाठक के हृदय को उद्वेलित कर सके तो साहित्य की वैतरणी में बहकर लेखक के साथ पाठक भी तर जाता है। अशोक पंतजी ने ऐसा ही एक वितान रचा है, जिससे यह सीख तो मिलती ही है कि अंगदान जैसा पुण्यकर्म मानव जीवन के लिए कितना आवश्यक है और यह प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की विडंबना और महानगरों में जटिल उपलब्धता की ओर भी इंगित करता है ।

अस्पताल एक दर्दभरी कहानियों की किताब है। हर मरीज की अपनी कहानी, जिसे सुनते-सुनते डॉक्टर भी उकता जाते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। लेकिन रोग की गंभीरता और रोगी की मानसिकता को समझते हुए जो डॉक्टर सांत्वना के अवतार बनकर रोगी को सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं, वे उसके लिए ईश्वर का पर्याय बन जाते हैं।

अनेक बार ऐसा होता है कि रोगी या तो अपनी परेशानी समझा नहीं पाता है या डॉक्टर अपनी व्यस्तता के कारण समय नहीं दे पाता है और रोगी का डॉक्टर अथवा अस्पताल के प्रति रवैया बदलने लगता है । विचारशील व्यक्तित्व के धनी लेखक ने सामाजिक प्रतिबद्धता के अनुरूप अपने संस्मरणों को मानव उत्थान की परिकल्पना करते हुए ऐसी सघन बीमारियों से पीड़ित रोगियों के कल्याण की कामना की है, इसलिए भी यह कदम सराहनीय है।

About Author

डॉ. अशोक कुमार पंत जन्म : 18 अप्रैल, 1958। शिक्षा : एम.एससी. (वनस्पति विज्ञान), पी-एच. डी., पी. जी. डी. आर. डी. । शोध : एसेसमेंट एंड स्टेटस ऑफ टेरिडोफाइट डायवर्सिटी इन मिलम (नंदा देवीबायोस्फेयर रिजर्व) । सेवा - काल : एस. डी. एस. रा.इ.का.: प्रधानाचार्य (से.नि.),पिथौरागढ़;सी.ओ.(एस.एस.बी.) भारत सरकार (प्रतिनियुक्ति); जिला परियोजना प्रबंधक (स्वजल ) उ.प्र./ उत्तराखंड (प्रतिनियुक्ति); समन्वयक, कॉलेज ऑफ टीचर्स एजूकेशन (सी.टी.ई.) पी.जी. कॉलेज, पिथौरागढ़। विशिष्ट सेवा : राज्य समन्वयक, राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, उत्तराखंड; सदस्य (गवर्निंग बॉडी), एन.सी.एस.टी. सी नैटवर्क, नई दिल्ली; सदस्य, परियोजना सलाहकार समिति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार । 'श्रीराम : एक विचार'पुस्तक तथा अनेकशोध-पत्र प्रकाशित । अनेक पत्र-पत्रिकाओं कासंपादन तथा कुछ का सह-संपादन । संपादन : विज्ञान वार्त्ता, अभिनव पथ, परिवर्तन, सरस्वती, धरती धर्म प्रवर्तक प्रथम महिला : सरला बहिन । अभिरुचि : विज्ञान लोकप्रियकरण एवं विज्ञान संचार, लोक साहित्य और लोक संस्कृति का अध्ययन और शोध । संप्रति : चेयरमैन, मानस ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन, पिथौरागढ़; वैज्ञानिक सलाहकार 'पहल' तथा 'विज्ञान परिचर्चा' ।

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