SaleHardback
Kuchh Khojte Hue
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अशोक वाजपेयी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अशोक वाजपेयी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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In stock
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In stock
ISBN:
SKU
9789350722046
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
730
यह कहना या ठीक-ठीक बता पाना कठिन है कि इस ज़िन्दगी भर से चली आ रही खोज का लक्ष्य क्या है? बिना लक्ष्य के या किसी प्राप्ति की आशा के खोज क्यों नहीं की जा सकती? अगर यह सम्भव है, भले कुछ अतर्कित है तो इन पृष्ठों में जो कुछ खोजा जाता रहा है इसका कुछ औचित्य बनता है। खोजने की प्रक्रिया में कुछ सच, कुछ सपने, कुछ रहस्य, कुछ जिज्ञासाएँ, कुछ उम्मीदें, कुछ विफलताएँ सब गुँथे हुए-से हैं। शायद कोई भी लेखक कुछ पाने के लिए नहीं खोजता : कई बार अकस्मात् अप्रत्याशित रूप से उसके हाथ कुछ लग जाता है। कई बार वह कुछ, इससे पहले कि लेखक को इसका सजग बोध हो या कि वह उसे विन्यस्त कर पाये वह फिसल भी जाता है और कई बार ऐसे गायब हो जाता है कि दुबारा फिर खोजे नहीं मिलता।
एक साप्ताहिक स्तम्भ के बहाने अपनी ऐसी ही बेढब खोज को दर्ज़ करता रहा हूँ। इसमें संस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, पुस्तक और कला समीक्षा, इधर-उधर हुए संवाद और मिल गये व्यक्तियों से बातचीत आदि सभी संक्षेप में शामिल हैं। मुझ जैसे बातूनी व्यक्ति को, ‘जनसत्ता’ में पिछले तेरह वर्षों से, बिला नागा, अबाध रूप से ‘कभी कभार’ स्तम्भ लिखते हुए यह अहसास हुआ कि संक्षेप लेखन का बेहद वांछनीय पक्ष है। जो संक्षेप में कुछ पते की बात नहीं कर सकता वह विस्तार में ऐसा कर पायेगा इसमें अब कुछ सन्देह होने लगा है। ऐसे पाठक या हितैषी मिलते हैं जिनकी शिकायत कई बार यह होती है कि विस्तार से लिखना चाहिए था। यह उन ‘चाहियों’ में से एक है जो मुझसे नहीं सधे । जैसे लिखना तो मुझे था डायरी, जो अब जब-जैसी याद आती है इसी स्तम्भ में लिख देता हूँ: डायरी नहीं लिख पाया ।
(भूमिका से)
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Description
यह कहना या ठीक-ठीक बता पाना कठिन है कि इस ज़िन्दगी भर से चली आ रही खोज का लक्ष्य क्या है? बिना लक्ष्य के या किसी प्राप्ति की आशा के खोज क्यों नहीं की जा सकती? अगर यह सम्भव है, भले कुछ अतर्कित है तो इन पृष्ठों में जो कुछ खोजा जाता रहा है इसका कुछ औचित्य बनता है। खोजने की प्रक्रिया में कुछ सच, कुछ सपने, कुछ रहस्य, कुछ जिज्ञासाएँ, कुछ उम्मीदें, कुछ विफलताएँ सब गुँथे हुए-से हैं। शायद कोई भी लेखक कुछ पाने के लिए नहीं खोजता : कई बार अकस्मात् अप्रत्याशित रूप से उसके हाथ कुछ लग जाता है। कई बार वह कुछ, इससे पहले कि लेखक को इसका सजग बोध हो या कि वह उसे विन्यस्त कर पाये वह फिसल भी जाता है और कई बार ऐसे गायब हो जाता है कि दुबारा फिर खोजे नहीं मिलता।
एक साप्ताहिक स्तम्भ के बहाने अपनी ऐसी ही बेढब खोज को दर्ज़ करता रहा हूँ। इसमें संस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, पुस्तक और कला समीक्षा, इधर-उधर हुए संवाद और मिल गये व्यक्तियों से बातचीत आदि सभी संक्षेप में शामिल हैं। मुझ जैसे बातूनी व्यक्ति को, ‘जनसत्ता’ में पिछले तेरह वर्षों से, बिला नागा, अबाध रूप से ‘कभी कभार’ स्तम्भ लिखते हुए यह अहसास हुआ कि संक्षेप लेखन का बेहद वांछनीय पक्ष है। जो संक्षेप में कुछ पते की बात नहीं कर सकता वह विस्तार में ऐसा कर पायेगा इसमें अब कुछ सन्देह होने लगा है। ऐसे पाठक या हितैषी मिलते हैं जिनकी शिकायत कई बार यह होती है कि विस्तार से लिखना चाहिए था। यह उन ‘चाहियों’ में से एक है जो मुझसे नहीं सधे । जैसे लिखना तो मुझे था डायरी, जो अब जब-जैसी याद आती है इसी स्तम्भ में लिख देता हूँ: डायरी नहीं लिख पाया ।
(भूमिका से)
About Author
अशोक वाजपेयी हिन्दी कवि-आलोचक, अनुवादक, सम्पादक तथा भारत की एक बड़ी सांस्कृतिक उपस्थिति हैं । कविता की 13 पुस्तकों, आलोचना की 7 पुस्तकों और अंग्रेजी में कला पर 3 पुस्तकों सहित उन्हें संस्कृति के विशिष्ट प्रसारक और नवोन्मेषी संस्था निर्माता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय और विदेशी संस्कृतियों के मध्य परस्पर जागरूकता और आपसी संवाद को बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया है। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सम्पादक के रूप में उन्होंने कविता और आलोचना में युवा प्रतिभाओं और समकालीन तथा शास्त्रीय कलाओं की आलोचनात्मक जागरूकता का प्रसार करने के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। वे साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, दृश्यकलाओं, लोक एवं जनजातीय कलाओं, सिनेमा आदि से सम्बन्धित हजारों कार्यक्रमों के आयोजक रहे हैं। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, दयावती कवि शेखर सम्मान, भारत भारती और कबीर सम्मान प्रदान किये गये हैं। उनके काव्य संकलनों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रांसीसी, पोलिश, उर्दू, बांग्ला, गुजराती, मराठी और राजस्थानी में हुए हैं।
भारत के एक विशिष्ट बुद्धिजीवी श्री वाजपेयी एक सृजनात्मक विश्व पर्यटक हैं, जिन्होंने सम्मेलनों में भाग लेने, व्याख्यान देने के क्रम में कई बार यूरोप आदि का भ्रमण किया है। उन्होंने पोलैण्ड के चार प्रमुख कवियों चेस्लाव मीलोष, वीस्वावा षिम्बोस्क, बीग्न्येव हेर्बेर्त और तादेऊष रूजेविच की कृतियों का हिन्दी अनुवाद किया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त होने के बाद वह दिल्ली में रह रहे हैं। उन्हें पोलैण्ड गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा और फ्रांसीसी सरकार द्वारा अपने उच्च सिविल सम्मानों से विभूषित किया गया है।
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