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Karyakshetra Mein Safalta Ke Sootra
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कोई व्यक्ति, जो अपने घर में खूब सफाई और व्यवस्था बनाए रखता है, वह अपने कार्य-स्थल पर जाकर सबकुछ भूल क्यों जाता है? क्या इसका कारण आलस्य है? या फिर वह अपने कार्य-स्थल पर सफाई रखना पसंद ही नहीं करता? या ज्यादा काम के कारण उसे सफाई का समय ही नहीं मिल पाता? या फिर उदासीनता इसका कारण है? लेकिन क्यों? दरअसल, हम अपनी गतिविधियों— जिसमें सफाई भी शामिल है—को अपने कार्य-संपादन से जोड़कर नहीं देख पाते। इससे हम अपने आस-पास के परिवेश के प्रति उदासीन ही बने रहते हैं। आज कार्यालय संबंधी कार्य एक बोझ की तरह हो गए हैं, जिसे ढोना मजबूरी समझा जाता है। ‘कुछ भी कर लो, कोई फर्क नहीं पड़ता,’—जी हाँ, नौकरशाही वर्ग की यह एक आम धारणा बन गई है। यदि हम अपने देश को उत्कर्ष की ओर ले जाना चाहते हैं तो इस धारणा को बदलने की जरूरत है। प्रबंधन पर आधारित यह पुस्तक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री अश्विनी लोहानी के स्वयं के जीवन से जुड़ी कहानी है। पच्चीस वर्षों के सेवाकाल में विभिन्न पदों पर सफलतापूर्वक कार्य करते हुए उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किए, उन्हें शब्दबद्ध किया है। प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्र-प्रेम, सिद्धांतप्रियता, देश-निष्ठा, कार्य-प्रतिबद्धता एवं दायित्व-निर्वहण की अनेक अंतःकथाएँ पढ़ने को मिलेंगी, जिनसे प्रेरणा तो मिलती ही है, मार्गदर्शन भी होता है। प्रत्येक पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक|
कोई व्यक्ति, जो अपने घर में खूब सफाई और व्यवस्था बनाए रखता है, वह अपने कार्य-स्थल पर जाकर सबकुछ भूल क्यों जाता है? क्या इसका कारण आलस्य है? या फिर वह अपने कार्य-स्थल पर सफाई रखना पसंद ही नहीं करता? या ज्यादा काम के कारण उसे सफाई का समय ही नहीं मिल पाता? या फिर उदासीनता इसका कारण है? लेकिन क्यों? दरअसल, हम अपनी गतिविधियों— जिसमें सफाई भी शामिल है—को अपने कार्य-संपादन से जोड़कर नहीं देख पाते। इससे हम अपने आस-पास के परिवेश के प्रति उदासीन ही बने रहते हैं। आज कार्यालय संबंधी कार्य एक बोझ की तरह हो गए हैं, जिसे ढोना मजबूरी समझा जाता है। ‘कुछ भी कर लो, कोई फर्क नहीं पड़ता,’—जी हाँ, नौकरशाही वर्ग की यह एक आम धारणा बन गई है। यदि हम अपने देश को उत्कर्ष की ओर ले जाना चाहते हैं तो इस धारणा को बदलने की जरूरत है। प्रबंधन पर आधारित यह पुस्तक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री अश्विनी लोहानी के स्वयं के जीवन से जुड़ी कहानी है। पच्चीस वर्षों के सेवाकाल में विभिन्न पदों पर सफलतापूर्वक कार्य करते हुए उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किए, उन्हें शब्दबद्ध किया है। प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्र-प्रेम, सिद्धांतप्रियता, देश-निष्ठा, कार्य-प्रतिबद्धता एवं दायित्व-निर्वहण की अनेक अंतःकथाएँ पढ़ने को मिलेंगी, जिनसे प्रेरणा तो मिलती ही है, मार्गदर्शन भी होता है। प्रत्येक पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक|
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