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Kanchanjangha Samay
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मनीषा झा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मनीषा झा
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹200 ₹199
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In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789326355575
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
111
कंचनजंघा समय –
समकालीन कविता के परिदृश्य में, जो क्षरण की ज़द में है—वो है प्रकृति और पर्यावरण। प्रकृति प्रेम की कविताओं का संसार भी लगातार सिकुड़ रहा है। लेखकों में यायावरी का स्वभाव भी पिछले दशकों में बनिस्पत कम हुआ है। एक ऐसे दौर में कंचनजंघा की मौलिक छवियाँ इस संग्रह को मूल्यवान बनाती हैं क्योंकि इसमें भूमण्डलीकरण के बाद हुए नकारात्मक परिवर्तनों में प्रकृति के विनाश की गहरी अन्तर्ध्वनि समाविष्ट है।
‘कंचनजंघा समय’ में अनूठे बिम्बों की आमद है जैसे धूप कुरकुरी, सर्दी में ठिठुरता पत्थर, झुरमुट से झरती स्वर रोशनी, गूँज से निर्मित अणु-अणु, रोटी की बीन, पेड़ के सुनहले टेसू, परती पराट, पतझड़ की बिरसता, छन्द का चाँद, रंग हरा नहीं भूरा आदि। इस संग्रह में आकर्षित करनेवाली नवीन शब्द राशि भी है।
कवि की सीनिक दृष्टि की तरलता, विचार की ऊष्मा और सृष्टि के प्रति गहरा राग दृष्टव्य हैं। ‘कंचनजंघा’ पर आगत ख़तरों की चेतावनी इस कृति को प्रासंगिक बनाती है। उम्मीद है यह विरल प्रकृति प्रतिबद्धता पाठकों को पर्यावरण दृष्टि से सम्पन्न करने में छोटी ही सही, एक भूमिका का काम करेगी।
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Description
कंचनजंघा समय –
समकालीन कविता के परिदृश्य में, जो क्षरण की ज़द में है—वो है प्रकृति और पर्यावरण। प्रकृति प्रेम की कविताओं का संसार भी लगातार सिकुड़ रहा है। लेखकों में यायावरी का स्वभाव भी पिछले दशकों में बनिस्पत कम हुआ है। एक ऐसे दौर में कंचनजंघा की मौलिक छवियाँ इस संग्रह को मूल्यवान बनाती हैं क्योंकि इसमें भूमण्डलीकरण के बाद हुए नकारात्मक परिवर्तनों में प्रकृति के विनाश की गहरी अन्तर्ध्वनि समाविष्ट है।
‘कंचनजंघा समय’ में अनूठे बिम्बों की आमद है जैसे धूप कुरकुरी, सर्दी में ठिठुरता पत्थर, झुरमुट से झरती स्वर रोशनी, गूँज से निर्मित अणु-अणु, रोटी की बीन, पेड़ के सुनहले टेसू, परती पराट, पतझड़ की बिरसता, छन्द का चाँद, रंग हरा नहीं भूरा आदि। इस संग्रह में आकर्षित करनेवाली नवीन शब्द राशि भी है।
कवि की सीनिक दृष्टि की तरलता, विचार की ऊष्मा और सृष्टि के प्रति गहरा राग दृष्टव्य हैं। ‘कंचनजंघा’ पर आगत ख़तरों की चेतावनी इस कृति को प्रासंगिक बनाती है। उम्मीद है यह विरल प्रकृति प्रतिबद्धता पाठकों को पर्यावरण दृष्टि से सम्पन्न करने में छोटी ही सही, एक भूमिका का काम करेगी।
About Author
मनीषा झा -
जन्म: 22 फ़रवरी, 1973।
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी., कलकत्ता विश्वविद्यालय।
उत्तर बंग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन एवं यू.जी.सी.—मानव संसाधन विकास केन्द्र में उप-निदेशक के पद पर कार्यरत।
प्रकाशित कृतियाँ: प्रकृति, पर्यावरण और समकालीन कविता, समय, संस्कृति और समकालीन कविता (शोध); कविता का सन्दर्भ साहित्य की संवेदना (आलोचना); शब्दों की दुनिया (कविता संग्रह), सोने का दरवाज़ा (बांग्ला उपन्यास 'सोनार दुआर' का हिन्दी अनुवाद), स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में शोध-पत्र, समीक्षाएँ तथा कविताएँ प्रकाशित।
सम्पादन: हिन्दी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय की शोध-पत्रिका 'संकल्प-6', 'समकालीन सृजन', में सम्पादन-सहयोग। हिन्दी विभाग, उत्तर बंग विश्वविद्यालय की शोध-पत्रिका 'संवाद' का सम्पादन।
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