कामसूत्रम् (संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद)- Kama Sutra

Publisher:
Chaukhamba Surbharati Prakashan
| Author:
Shri Vatsyayanamuni
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Chaukhamba Surbharati Prakashan
Author:
Shri Vatsyayanamuni
Language:
Hindi
Format:
Hardback

736

Save: 5%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

ISBN:
SKU 9789380326542 Category
Category:
Page Extent:
584

कामसूत्र में उल्लिखित अनुश्रुति के अनुसार जगत्स्रष्टा प्रजापति ब्रह्मा ने मानव-जीवन को नियमित एवं सुव्यवस्थित बनाने के उद्देश्य से धर्म, अर्थ और काम के साधनभूत एक लाख अध्यायों का संविधान तैयार किया था। उस शास्त्रमहोदधि का मन्थन कर स्वयम्भूपुत्र मनु ने धर्मविषयक अंश को लेकर एक स्वतन्त्र शास्त्र का सम्पादन किया जो मानवधर्मशास्त्र के नाम से विख्यात है। उस ब्रह्मोक्त संविधान के अर्थविषयक अंश को लेकर आचार्य बृहस्पति ने अलग से बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र की रचना की। तदनन्तर महादेव के अनुचर नन्दी ने कामविषयक अंश को अलग कर एक हजार अध्यायों में कामशास्त्र का सम्पादन किया। तत्पश्चात् उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ने उस नन्दिप्रोक्त कामशास्त्र को पाँच सौ अध्यायों में संक्षिप्त किया।

उसके पश्चात् पाञ्चाल देश के निवासी बाभ्रव्य ने श्वेतकेतु द्वारा सम्पादित संस्करण को संक्षिप्त कर डेढ़ सौ अध्यायों में संक्षिप्त किया, जिसमें सात अधिकरण थे साधारण, साम्प्रयोगिक, कन्यासम्प्रयुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक, वैशिक और औपनिषदिक। इस प्रकार जगत्स्रष्टा प्रजापति ने कामशास्त्र का प्रवचन किया और बाभ्रव्य ने उसे शास्त्र का रूप प्रदान किया। आचार्य बाभ्रव्य के पश्चात् पाटलिपुत्र की गणिकाओं के अनुरोध पर आचार्य दत्तक ने बाभ्रव्य के कामशास्त्र के षष्ठ अधिकरण के वैशिक नामक प्रकरण पर पृथक् से ग्रन्थ-रचना की।

इसी प्रकार आचार्य चारायण ने साधारण अधिकरण पर, आचार्य सुवर्णनाभ ने साम्प्रयोगिक अधिकरण पर, आचार्य घोटकमुख ने कन्यासम्प्रयुक्तक अधिकरण पर, आचार्य गोनर्दीय ने भार्याधिकारिक अधिकरण पर, आचार्य गोणिकापुत्र ने पारदारिक अधिकरण पर और आचार्य कुचुमार ने औपनिषदिक अधिकरण पर अलग-अलग शास्त्र की रचना की। किन्तु आचार्य बाभ्रव्य का कामशास्त्र अधिक विशाल होने के कारण सामान्य अध्येता के लिए दुरधिगम एवं दुरध्येय था और दत्तक आदि आचार्यों के विवेचन एकाङ्गी होने के कारण कामशास्त्र के सर्वाङ्गीण प्रतिपादन में असमर्थ थे। अतः आचार्य वात्स्यायन ने कामशास्त्र के सर्वाङ्गीण अध्ययन की आवश्यकता का अनुभव कर बाभ्रव्य के शास्त्र का संक्षिप्तीकरण कर कामसूत्र का प्रणयन किया, जिसमें उक्त सभी ग्रन्थों का सार समन्वित था, जो साहित्य-जगत् में सर्वमान्य एवं उपादेय हो गया।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “कामसूत्रम् (संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद)- Kama Sutra”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

कामसूत्र में उल्लिखित अनुश्रुति के अनुसार जगत्स्रष्टा प्रजापति ब्रह्मा ने मानव-जीवन को नियमित एवं सुव्यवस्थित बनाने के उद्देश्य से धर्म, अर्थ और काम के साधनभूत एक लाख अध्यायों का संविधान तैयार किया था। उस शास्त्रमहोदधि का मन्थन कर स्वयम्भूपुत्र मनु ने धर्मविषयक अंश को लेकर एक स्वतन्त्र शास्त्र का सम्पादन किया जो मानवधर्मशास्त्र के नाम से विख्यात है। उस ब्रह्मोक्त संविधान के अर्थविषयक अंश को लेकर आचार्य बृहस्पति ने अलग से बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र की रचना की। तदनन्तर महादेव के अनुचर नन्दी ने कामविषयक अंश को अलग कर एक हजार अध्यायों में कामशास्त्र का सम्पादन किया। तत्पश्चात् उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ने उस नन्दिप्रोक्त कामशास्त्र को पाँच सौ अध्यायों में संक्षिप्त किया।

उसके पश्चात् पाञ्चाल देश के निवासी बाभ्रव्य ने श्वेतकेतु द्वारा सम्पादित संस्करण को संक्षिप्त कर डेढ़ सौ अध्यायों में संक्षिप्त किया, जिसमें सात अधिकरण थे साधारण, साम्प्रयोगिक, कन्यासम्प्रयुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक, वैशिक और औपनिषदिक। इस प्रकार जगत्स्रष्टा प्रजापति ने कामशास्त्र का प्रवचन किया और बाभ्रव्य ने उसे शास्त्र का रूप प्रदान किया। आचार्य बाभ्रव्य के पश्चात् पाटलिपुत्र की गणिकाओं के अनुरोध पर आचार्य दत्तक ने बाभ्रव्य के कामशास्त्र के षष्ठ अधिकरण के वैशिक नामक प्रकरण पर पृथक् से ग्रन्थ-रचना की।

इसी प्रकार आचार्य चारायण ने साधारण अधिकरण पर, आचार्य सुवर्णनाभ ने साम्प्रयोगिक अधिकरण पर, आचार्य घोटकमुख ने कन्यासम्प्रयुक्तक अधिकरण पर, आचार्य गोनर्दीय ने भार्याधिकारिक अधिकरण पर, आचार्य गोणिकापुत्र ने पारदारिक अधिकरण पर और आचार्य कुचुमार ने औपनिषदिक अधिकरण पर अलग-अलग शास्त्र की रचना की। किन्तु आचार्य बाभ्रव्य का कामशास्त्र अधिक विशाल होने के कारण सामान्य अध्येता के लिए दुरधिगम एवं दुरध्येय था और दत्तक आदि आचार्यों के विवेचन एकाङ्गी होने के कारण कामशास्त्र के सर्वाङ्गीण प्रतिपादन में असमर्थ थे। अतः आचार्य वात्स्यायन ने कामशास्त्र के सर्वाङ्गीण अध्ययन की आवश्यकता का अनुभव कर बाभ्रव्य के शास्त्र का संक्षिप्तीकरण कर कामसूत्र का प्रणयन किया, जिसमें उक्त सभी ग्रन्थों का सार समन्वित था, जो साहित्य-जगत् में सर्वमान्य एवं उपादेय हो गया।

About Author

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “कामसूत्रम् (संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद)- Kama Sutra”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED