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Kalpataru Kee Utsavaleela
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कृष्णबिहारी मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कृष्णबिहारी मिश्र
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹500 ₹350
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ISBN:
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8126310170
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
598
कल्पतरु की उत्सवलीला : रामकृष्ण परमहंस –
अनुशीलन और ललित निबन्ध के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के लिए प्रतिष्ठित डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र की यह कृति उनके लेखन में नया प्रस्थान है; संवेदना और शिल्प की एक नयी मुद्रा शोध लालित्य का एक अनुपम समन्वय श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन प्रसंग पर केन्द्रित, अब तक प्रकाशित साहित्य से सर्वथा भिन्न यह प्रस्तुति अपनी सहजता और लालित्य में विशिष्ट है। श्री रामकृष्ण नवजागरण के सांस्कृतिक नायकों के बीच अद्वितीय थे। उनके सहज आचरण और ग्राम्य बोली-बानी से जनमे प्रकाश का लोक मानस पर जितना गहरा प्रभाव पड़ा है उतना बौद्धिक संस्कृति-नायकों की पण्डिताई का नहीं। पण्डितों की शक्ति और थी, पोथी-विद्या को अपर्याप्त माननेवाले श्री रामकृष्ण की शक्ति और। एक तरफ़ तर्क और वाद था; दूसरी ओर वाद निषेध की आकर्षक साधना थी। सम्प्रदाय सहिष्णुता दैवी विभूति के रूप में श्री रामकृष्ण के व्यक्तित्व में मूर्त हुई थी, जिसे विश्व-मानव के लिए ‘विधायक विकल्प’ के रूप में, कृष्णबिहारी मिश्र ने ऐसी जीवन्तता के साथ रचा है कि उन्नीसवीं शती का पूरा परिदृश्य और परमहंस देव का प्रकाशपूर्ण रोचक व्यक्तित्व सजीव हो उठा है।
ज्ञानपीठ आश्वस्त है, नितान्त अभिनव शिल्प में रचित यह कृति, उपभोक्ता सभ्यता के आघात से कम्पित समय में, प्रासंगिक मानी जायेगी।
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Description
कल्पतरु की उत्सवलीला : रामकृष्ण परमहंस –
अनुशीलन और ललित निबन्ध के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के लिए प्रतिष्ठित डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र की यह कृति उनके लेखन में नया प्रस्थान है; संवेदना और शिल्प की एक नयी मुद्रा शोध लालित्य का एक अनुपम समन्वय श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन प्रसंग पर केन्द्रित, अब तक प्रकाशित साहित्य से सर्वथा भिन्न यह प्रस्तुति अपनी सहजता और लालित्य में विशिष्ट है। श्री रामकृष्ण नवजागरण के सांस्कृतिक नायकों के बीच अद्वितीय थे। उनके सहज आचरण और ग्राम्य बोली-बानी से जनमे प्रकाश का लोक मानस पर जितना गहरा प्रभाव पड़ा है उतना बौद्धिक संस्कृति-नायकों की पण्डिताई का नहीं। पण्डितों की शक्ति और थी, पोथी-विद्या को अपर्याप्त माननेवाले श्री रामकृष्ण की शक्ति और। एक तरफ़ तर्क और वाद था; दूसरी ओर वाद निषेध की आकर्षक साधना थी। सम्प्रदाय सहिष्णुता दैवी विभूति के रूप में श्री रामकृष्ण के व्यक्तित्व में मूर्त हुई थी, जिसे विश्व-मानव के लिए ‘विधायक विकल्प’ के रूप में, कृष्णबिहारी मिश्र ने ऐसी जीवन्तता के साथ रचा है कि उन्नीसवीं शती का पूरा परिदृश्य और परमहंस देव का प्रकाशपूर्ण रोचक व्यक्तित्व सजीव हो उठा है।
ज्ञानपीठ आश्वस्त है, नितान्त अभिनव शिल्प में रचित यह कृति, उपभोक्ता सभ्यता के आघात से कम्पित समय में, प्रासंगिक मानी जायेगी।
About Author
कृष्णबिहारी मिश्र -
जन्म: 1 जुलाई, 1936, बलिहार, बलिया, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा: एम.ए. (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)। पीएच.डी. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)।
1996 में बंगवासी मार्निंग कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त। देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों के सारस्वत प्रसंगों में सक्रिय भूमिका।
प्रकाशित कृतियाँ: ललित निबन्ध-संग्रह: 'बेहया का जंगल', 'मकान उठ रहे है', 'आँगन की तलाश'।
पत्रकारिता : 'जातीय चेतना और खड़ी बोली साहित्य की निर्माण-भूमि', 'हिन्दी पत्रकारिता : राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका', 'गणेश शंकर विद्यार्थी', 'पत्रकारिता : इतिहास और प्रश्न', 'हिन्दी पत्रकारिता : जातीय अस्मिता की जागरण भूमिका'। समीक्षा : 'हिन्दी साहित्य की इतिहास कथा', 'आस्था और मूल्यों का संक्रमण', 'आलोकपन्था', 'सम्बुद्धि'।
सम्पादन : त्रैमासिक पत्रिका 'समिधा' और मासिक 'भोजपुरी माटी'।
मिश्र जी की भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित कृतियाँ हैं: 'हिन्दी पत्रकारिता' और 'नेह के नाते अनेक'।
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