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Kali Barf

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मीरा कान्त
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मीरा कान्त
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789357754828 Category
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80

नाटक काली बर्फ़ अब नाट्य त्रयी कन्धे पर बैठा था शाप के साये से निकलकर अपनी अलग पहचान बना रहा है-यह निस्सन्देह प्रसन्नता का विषय है। इस नाटक के केन्द्र में आतंकवाद से उपजा विस्थापन और उसका दर्द है जो आज विश्व की एक विकराल समस्या है। दुनियाभर में करोड़ों लोग विस्थापित हैं और यह अमानवीय स्थिति लगातार अपने पाँव पसारती जा रही है।

आज लगभग दो दशक बाद भी यह नाटक अपनी प्रासंगिकता की ज़मीन पर मज़बूती से खड़ा है। यह उन स्थितियों का नाटक है जिसमें कश्मीर बेबस आँखों के सामने दम तोड़ती जीवन-संस्कृति है, घायल अस्मिता है। इसमें अपनी जड़ों से उखड़ने का दर्द ढोते परिवार हैं तो घाटी में आतंकवाद के साये में डरी-सहमी-मजबूर ज़िन्दगी जीते लोग भी हैं। अपनी समग्रता में जो सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक जीवन और मनोजगत की तबाही है। मगर साथ ही मन में एक ऐसा खुशनुमा अतीत है, कश्मीरियत है जिससे उम्मीद और सम्भावनाओं के सपने बराबर बने रहते हैं।

प्रत्येक कृति की अपनी एक रचनात्मक यात्रा होती है। सृजन की संवेदना या विचार के बीज का अपनी मिट्टी में पलकें खोलना ही इस यात्रा की शुरुआत है। काली बर्फ़ के सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है कि सर्वप्रथम इस नाटक का प्रकाशन जनवरी-मार्च 2004 में ‘पश्यन्ती’ पत्रिका में हुआ था। अगले वर्ष यानी फ़रवरी 2005 में श्री मुश्ताक काक के निर्देशन में इसे श्रीराम सेंटर, दिल्ली के रंगमंडल ने मंचित किया। रंगमंडल ने इसकी आठ सफल प्रस्तुतियाँ दीं ।

वर्ष 2006 में काली बर्फ़ भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित नाट्य त्रयी कन्धे पर बैठा था शाप का हिस्सा बना। कुछ वर्ष बाद यानी 2011 में जम्मू-कश्मीर राज्य के कश्मीर दूरदर्शन (डी.डी. कश्मीर) पर यह तेरह कड़ियों के धारावाहिक के रूप में प्रसारित हुआ । देश के कुछ विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित होने के बाद अब यह नाटक अपनी एक अलग अस्मिता के साथ पुनः प्रकाशित हो रहा है।

-पुस्तक की भूमिका से

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Description

नाटक काली बर्फ़ अब नाट्य त्रयी कन्धे पर बैठा था शाप के साये से निकलकर अपनी अलग पहचान बना रहा है-यह निस्सन्देह प्रसन्नता का विषय है। इस नाटक के केन्द्र में आतंकवाद से उपजा विस्थापन और उसका दर्द है जो आज विश्व की एक विकराल समस्या है। दुनियाभर में करोड़ों लोग विस्थापित हैं और यह अमानवीय स्थिति लगातार अपने पाँव पसारती जा रही है।

आज लगभग दो दशक बाद भी यह नाटक अपनी प्रासंगिकता की ज़मीन पर मज़बूती से खड़ा है। यह उन स्थितियों का नाटक है जिसमें कश्मीर बेबस आँखों के सामने दम तोड़ती जीवन-संस्कृति है, घायल अस्मिता है। इसमें अपनी जड़ों से उखड़ने का दर्द ढोते परिवार हैं तो घाटी में आतंकवाद के साये में डरी-सहमी-मजबूर ज़िन्दगी जीते लोग भी हैं। अपनी समग्रता में जो सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक जीवन और मनोजगत की तबाही है। मगर साथ ही मन में एक ऐसा खुशनुमा अतीत है, कश्मीरियत है जिससे उम्मीद और सम्भावनाओं के सपने बराबर बने रहते हैं।

प्रत्येक कृति की अपनी एक रचनात्मक यात्रा होती है। सृजन की संवेदना या विचार के बीज का अपनी मिट्टी में पलकें खोलना ही इस यात्रा की शुरुआत है। काली बर्फ़ के सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है कि सर्वप्रथम इस नाटक का प्रकाशन जनवरी-मार्च 2004 में ‘पश्यन्ती’ पत्रिका में हुआ था। अगले वर्ष यानी फ़रवरी 2005 में श्री मुश्ताक काक के निर्देशन में इसे श्रीराम सेंटर, दिल्ली के रंगमंडल ने मंचित किया। रंगमंडल ने इसकी आठ सफल प्रस्तुतियाँ दीं ।

वर्ष 2006 में काली बर्फ़ भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित नाट्य त्रयी कन्धे पर बैठा था शाप का हिस्सा बना। कुछ वर्ष बाद यानी 2011 में जम्मू-कश्मीर राज्य के कश्मीर दूरदर्शन (डी.डी. कश्मीर) पर यह तेरह कड़ियों के धारावाहिक के रूप में प्रसारित हुआ । देश के कुछ विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित होने के बाद अब यह नाटक अपनी एक अलग अस्मिता के साथ पुनः प्रकाशित हो रहा है।

-पुस्तक की भूमिका से

About Author

मीरा कान्त - 1958 में श्रीनगर में जन्म । प्रकाशन : हाइफन, काग़ज़ी, बुर्ज, गली दुल्हनवाली और ताले में शहर (कहानी-संग्रह); तत्ः किम्, उर्फ़ हिटलर, एक कोई था कहीं नहीं-सा और हमआवाज़ दिल्लियाँ (उपन्यास); स); ईहामृग, नेपथ्य राग, भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर, कन्धे पर बैठा था शाप, काली बर्फ, मेघ-प्रश्न, हुमा को उड़ जाने दो, अन्त हाज़िर हो और उत्तर प्रश्न (नाटक); पुनरपि दिव्या (नाट्य रूपान्तर) तथा अन्तरराष्ट्रीय महिला दशक और हिन्दी पत्रकारिता शोधपरक ग्रन्थ । मीराँ : मुक्ति की साधिका का सम्पादन । मोहन राकेश के अधूरे उपन्यास काँपता हुआ दरिया की पूरक कथाकार भी । नाटकों का मराठी, तेलुगू, उर्दू, अंग्रेज़ी, कन्नड व संस्कृत में अनुवाद भी प्रकाशित । मंचन : 'कालिदास नाट्य समारोह', उज्जैन, 'भारत रंग महोत्सव', दिल्ली, 'इंटरनेशनल आर्ट्स फेस्टिवल', दिल्ली, 'साहित्य कला परिषद' तथा 'हिन्दी अकादमी', दिल्ली के तत्वावधान और देश के असंख्य शहरों में समय-समय पर नाटकों का मंचन । नाटक 'उत्तर प्रश्न' संस्कृत में भी मंचित । पुरस्कार/सम्मान : नेपथ्य राग के लिए वर्ष 2003 में मोहन राकेश सम्मान (प्रथम पुरस्कार), ईहामृग के लिए सेठ गोविन्द दास सम्मान (2003), तत्ः किम् के लिए अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति सम्मान (2004), 'पुवनेश्वर दर भुवनेश्वर के लिए डॉ. गोकुल चन्द्र गांगुली पुरस्कार (2008), उत्तर प्रश्न के लिए मोहन राकेश सम्मान (प्रथम पुरस्कार) 2008, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के साहित्यकार सम्मान (2005-06), एवं सर्वश्रेष्ठ लेखक के नटसम्राट सम्मान (2015) से अलंकृत । सम्पर्क : बी-95, गुलमोहर पार्क, नयी दिल्ली-110049 ई-मेल : drmeerakant@gmail.com वेब : www.meerakant.com

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