Kahani : Vichardhara Aur Yatharth

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
वैभव सिंह
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
वैभव सिंह
Language:
Hindi
Format:
Hardback

417

Save: 30%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789388684989 Category
Category:
Page Extent:
344

वर्तमान में कहानी अब उन लोगों की सोहबत में अधिक है जिन्हें विमर्श करने वाला या विभिन्न सामाजिक विषयों को लेकर प्रतिरोध व आलोचना को व्यक्त करने वाला माना जाता है। समाज में आधुनिकतावाद तथा उस आधुनिकतावाद की आलोचना करने वाले सिद्धान्तों ने दमित परम्परा, उपेक्षित ज्ञान, हाशिये के जीवन, निम्नवर्गीय जीवनप्रसंग, वैकल्पिक दृष्टि, सबाल्टर्न चेतना, परिधि के सत्य आदि के विषयों को उठाया है और आधुनिक कथाएँ इनके साथ किसी न किसी स्तर पर सम्बद्ध हैं। पर कथाओं की लम्बी परम्परा भी हमारे सामने है। हिन्दी कहानियों के सैकड़ों पात्र हमारे यथार्थ को कल्पनापूर्ण तथा कल्पनाओं को यथार्थपरक बनाते हैं। लहना सिंह, बड़े भाई साहब, हामिद, घीसू-माधव, मधूलिका, चौधरी पीरबक्श, गनी मियाँ, लतिका, मिस पाल, लक्ष्मी, मदन, गोधन और मुनरी, हिरामन और हिराबाई, हंसा और सुशीला, रजुआ, मालती, लक्ष्मी, गजधर बाबू, जगपति और चंदा, विमली, डॉ. वाकणकर आदि सैकड़ों कथा-पात्र जैसे हमारे ही पड़ोस का हिस्सा हैं। हम कभी भी उनका हालचाल पूछने जा सकते हैं, उन्हें अपने घर बुला सकते हैं। उन्होंने हिन्दी कथासाहित्य का नागरिक बनकर पाठकों की संवेदनशीलता को अपने ही मूल परिवेश से नये ढंग से जोड़ा है। साथ ही उसकी कल्पनाओं को सीमित आत्मोन्मुख दायरों, स्वार्थी जड़ता-आलस और अहंग्रस्तता की दलदली ज़मीन से बाहर निकलने में सहायता की है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Kahani : Vichardhara Aur Yatharth”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

वर्तमान में कहानी अब उन लोगों की सोहबत में अधिक है जिन्हें विमर्श करने वाला या विभिन्न सामाजिक विषयों को लेकर प्रतिरोध व आलोचना को व्यक्त करने वाला माना जाता है। समाज में आधुनिकतावाद तथा उस आधुनिकतावाद की आलोचना करने वाले सिद्धान्तों ने दमित परम्परा, उपेक्षित ज्ञान, हाशिये के जीवन, निम्नवर्गीय जीवनप्रसंग, वैकल्पिक दृष्टि, सबाल्टर्न चेतना, परिधि के सत्य आदि के विषयों को उठाया है और आधुनिक कथाएँ इनके साथ किसी न किसी स्तर पर सम्बद्ध हैं। पर कथाओं की लम्बी परम्परा भी हमारे सामने है। हिन्दी कहानियों के सैकड़ों पात्र हमारे यथार्थ को कल्पनापूर्ण तथा कल्पनाओं को यथार्थपरक बनाते हैं। लहना सिंह, बड़े भाई साहब, हामिद, घीसू-माधव, मधूलिका, चौधरी पीरबक्श, गनी मियाँ, लतिका, मिस पाल, लक्ष्मी, मदन, गोधन और मुनरी, हिरामन और हिराबाई, हंसा और सुशीला, रजुआ, मालती, लक्ष्मी, गजधर बाबू, जगपति और चंदा, विमली, डॉ. वाकणकर आदि सैकड़ों कथा-पात्र जैसे हमारे ही पड़ोस का हिस्सा हैं। हम कभी भी उनका हालचाल पूछने जा सकते हैं, उन्हें अपने घर बुला सकते हैं। उन्होंने हिन्दी कथासाहित्य का नागरिक बनकर पाठकों की संवेदनशीलता को अपने ही मूल परिवेश से नये ढंग से जोड़ा है। साथ ही उसकी कल्पनाओं को सीमित आत्मोन्मुख दायरों, स्वार्थी जड़ता-आलस और अहंग्रस्तता की दलदली ज़मीन से बाहर निकलने में सहायता की है।

About Author

वैभव सिंह 4 सितम्बर 1974, उन्नाव (उ.प्र.)। पीएच.डी. तक की शिक्षा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से। प्रकाशित पुस्तकें : इतिहास और राष्ट्रवाद, शताब्दी का प्रतिपक्ष, भारतीय उपन्यास और आधुनिकता, भारत : एक आत्मसंघर्ष। अनुवाद : मार्क्सवाद और साहित्यालोचन (टेरी ईगलटन), भारतीयता की ओर (पवन वर्मा)। सम्पादन : अरुण कमल : सृजनात्मकता के आयाम, यशपाल के उपन्यास 'दिव्या' पर आलोचना के सीडी संस्करण का। सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और राष्ट्रीयअन्तरराष्ट्रीय सेमिनारों में भागीदारी। सम्मान : देवीशंकर अवस्थी आलोचना सम्मान, शिवकुमार मिश्र स्मृति आलोचना सम्मान, स्पन्दन आलोचना सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान (भोपाल)। कुछ समय भारतीय वायुसेना में और स्वैच्छिक सेवानिवत्ति। फिर कछ साल पत्रकारिता और विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन। सम्प्रति : अम्बेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली में अध्यापन। ई-मेल : vaibhv.newmail@gmail.com

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Kahani : Vichardhara Aur Yatharth”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED