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Kagaji Hai Pairahan (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ismat Chugtai
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Ismat Chugtai
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹695 ₹556
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ISBN:
SKU
9788171789672
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
उर्दू की विद्रोहिणी लेखिका इस्मत चुग़ताई हिन्दी पाठकों के लिए भी उर्दू जितनी ही आत्मीय रही हैं। भारतीय समाज के रूढ़िवादी जीवन-मूल्यों और घिसी–पिटी परम्पराओं पर इस्मत चुग़ताई ने अपनी कहानियों से जितनी चोट की है और इसे एक अधिक मानवीय समाज बनाने में जितना बड़ा योगदान किया है, उसकी बराबरी कर पानेवाले लोग बिरले ही हैं। पाठकों के मन में सहज ही यह सवाल उठता रहा है कि इतनी पैनी नज़र से अपने परिवेश को टटोलनेवाली और इतने जीते–जागते पात्र रचनेवाली इस लेखिका की ख़ुद अपनी बनावट क्या है, किस प्रक्रिया में उसका निर्माण हुआ है। इस्मत आपा ने शायद अपने पाठकों की इस जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए ही अपनी आत्मकथा ‘काग़ज़ी है पैरहन’ शीर्षक से क़लमबंद की।
कहने को ही यह पुस्तक आत्मकथा है। पढ़ने में यह बाक़ायदा उपन्यास और उपन्यास से भी ज़्यादा कुछ है। एक पूरे समय और समाज का इतना जीवन्त, इतना प्रामाणिक वर्णन मुश्किल से ही मिल सकता है। तॉल्स्ताय ने गोर्की के बारे में कहा था कि उनकी कहानियाँ दिलचस्प हैं, लेकिन उनका जीवन और भी दिलचस्प है। यही बात इस्मत चुग़ताई के बारे में भी शब्दश: कही जा सकती है। तीस के दशक में पर्देदार कुलीन मुस्लिम परिवार में एक लड़की के पढ़ने–लिखने में कितनी मुश्किलें आती होंगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। ये मुश्किलें ‘काग़ज़ी है पैरहन’ की मुख्य कथावस्तु बनी हैं। लेकिन जो पीड़ा ये मुश्किलें एक ज़िद्दी लड़की के भीतर पैदा करती रही होंगी, उसका अन्दाज़ा पाठक को ख़ुद ही लगाना होगा, क्योंकि अपने दु:खों को बयान करना, आत्म–दया दिखाना इस्मत चुग़ताई की फ़ितरत ही नहीं रही है।
गद्य की लय क्या होती है, कितनी सहजता से यह लय ज़िन्दगी की घनघोर उलझनों का बयान करा ले जाती है, इसका अप्रतिम उदाहरण यह पुस्तक है। ख़ुद इस्मत आपा के शब्दों में : “लिखते हुए मुझे ऐसा लगता है जैसे पढ़नेवाले मेरे सामने बैठे हैं, उनसे बातें कर रही हूँ और वो सुन रहे हैं। कुछ मेरे हमख़याल हैं, कुछ मोतरिज़ हैं, कुछ मुस्कुरा रहे हैं, कुछ ग़ुस्सा हो रहे हैं। कुछ का वाक़ई जी जल रहा है। अब भी मैं लिखती हूँ तो यही एहसास छाया रहता है कि बातें कर रही हूँ।”
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Description
उर्दू की विद्रोहिणी लेखिका इस्मत चुग़ताई हिन्दी पाठकों के लिए भी उर्दू जितनी ही आत्मीय रही हैं। भारतीय समाज के रूढ़िवादी जीवन-मूल्यों और घिसी–पिटी परम्पराओं पर इस्मत चुग़ताई ने अपनी कहानियों से जितनी चोट की है और इसे एक अधिक मानवीय समाज बनाने में जितना बड़ा योगदान किया है, उसकी बराबरी कर पानेवाले लोग बिरले ही हैं। पाठकों के मन में सहज ही यह सवाल उठता रहा है कि इतनी पैनी नज़र से अपने परिवेश को टटोलनेवाली और इतने जीते–जागते पात्र रचनेवाली इस लेखिका की ख़ुद अपनी बनावट क्या है, किस प्रक्रिया में उसका निर्माण हुआ है। इस्मत आपा ने शायद अपने पाठकों की इस जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए ही अपनी आत्मकथा ‘काग़ज़ी है पैरहन’ शीर्षक से क़लमबंद की।
कहने को ही यह पुस्तक आत्मकथा है। पढ़ने में यह बाक़ायदा उपन्यास और उपन्यास से भी ज़्यादा कुछ है। एक पूरे समय और समाज का इतना जीवन्त, इतना प्रामाणिक वर्णन मुश्किल से ही मिल सकता है। तॉल्स्ताय ने गोर्की के बारे में कहा था कि उनकी कहानियाँ दिलचस्प हैं, लेकिन उनका जीवन और भी दिलचस्प है। यही बात इस्मत चुग़ताई के बारे में भी शब्दश: कही जा सकती है। तीस के दशक में पर्देदार कुलीन मुस्लिम परिवार में एक लड़की के पढ़ने–लिखने में कितनी मुश्किलें आती होंगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। ये मुश्किलें ‘काग़ज़ी है पैरहन’ की मुख्य कथावस्तु बनी हैं। लेकिन जो पीड़ा ये मुश्किलें एक ज़िद्दी लड़की के भीतर पैदा करती रही होंगी, उसका अन्दाज़ा पाठक को ख़ुद ही लगाना होगा, क्योंकि अपने दु:खों को बयान करना, आत्म–दया दिखाना इस्मत चुग़ताई की फ़ितरत ही नहीं रही है।
गद्य की लय क्या होती है, कितनी सहजता से यह लय ज़िन्दगी की घनघोर उलझनों का बयान करा ले जाती है, इसका अप्रतिम उदाहरण यह पुस्तक है। ख़ुद इस्मत आपा के शब्दों में : “लिखते हुए मुझे ऐसा लगता है जैसे पढ़नेवाले मेरे सामने बैठे हैं, उनसे बातें कर रही हूँ और वो सुन रहे हैं। कुछ मेरे हमख़याल हैं, कुछ मोतरिज़ हैं, कुछ मुस्कुरा रहे हैं, कुछ ग़ुस्सा हो रहे हैं। कुछ का वाक़ई जी जल रहा है। अब भी मैं लिखती हूँ तो यही एहसास छाया रहता है कि बातें कर रही हूँ।”
About Author
इस्मत चुग़ताई
जन्म : 21 जुलाई, 1915; बदायूँ (उत्तर प्रदेश)।
इस्मत ने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़े की दबी-कुचली-सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। इस्मत चुग़ताई पर उनकी मशहूर कहानी ‘लिहाफ़’ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में मुक़दमा चला, लेकिन ख़ारिज हो गया। ‘गेन्दा’ उनकी पहली कहानी थी जो 1949 में उर्दू साहित्य की सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका 'साक़ी’ में छपी। उनका पहला उपन्यास ‘जि़द्दी’ 1941 में प्रकाशित हुआ। ‘मासूमा’, ‘सैदाई’, ‘जंगली कबूतर’, ‘टेढ़ी लकीर’, ‘दिल की दुनिया’, ‘अजीब आदमी’, ‘एक क़तरा ख़ून’ और ‘बाँदी’ उनके अन्य उपन्यास हैं। ‘कलियाँ’, ‘चोटें’, ‘एक रात’, ‘छुई-मुई’, ‘दो हाथ’, ‘दोज़ख़ी’, ‘शैतान’ आदि कहानी-संग्रह हैं। हिन्दी में ‘कुँवारी’ व अन्य कई कहानी-संग्रह तथा अंग्रेज़ी में उनकी कहानियों के तीन संग्रह प्रकाशित हैं जिनमें ‘काली’ काफ़ी मशहूर हुआ। कई फ़िल्में लिखीं और ‘जुनून’ में एक रोल भी किया। 1943 में उनकी पहली फ़िल्म ‘छेड़-छाड़’ थी। कुल 13 फ़िल्मों से वे जुड़ी रहीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म ‘गर्म हवा’ (1973) को कई अवार्ड मिले।
'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ के अलावा उन्हें 'इक़बाल सम्मान’, 'मख़दूम अवार्ड’ और 'नेहरू अवार्ड’ भी मिले। अदबी दुनिया में 'इस्मत आपा’ के नाम से विख्यात इस लेखिका का निधन 24 अक्टूबर, 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुम्बई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।
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