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Kaalyatri Hai Kavita (HB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Prabhakar Shrotriya
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Prabhakar Shrotriya
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹396
Save: 20%
In stock
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1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788171191284
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
सुपरिचित आलोचक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा हिन्दी कविता की यह काल-यात्रा विशेष महत्त्व रखती है। कोई रचना इतिहास के दौर में क्या रूप लेती है और मानवीय संवेदन की अन्तर्धारा उसमें किन माध्यमों से परिचालित होती है, इसकी प्रामाणिक और गहरी समझ डॉ. श्रोत्रिय को थी। अक्सर इतिहास के कालबोध की परवर्ती दृष्टि के दौर में लोग अतीत की परिस्थितियों और कवि-सीमाओं को उपेक्षित कर जाते हैं। इस पुस्तक में ऐसा आवश्यक लचीलापन है, जिससे यह अतीत को जहाँ आधुनिकता की सार्थकता में देख सकी है, वहीं युग और कवि सीमा को भी संवेदित परकाय-प्रवेश की भाँति अपने मौलिक स्वरूप में प्रतिष्ठित कर सकी है। इससे कविता इतिवृत्त नहीं रहती, बल्कि वह आगामी काल-प्रवाह में सक्रिय और प्रेरक साझीदार प्रतीत होती है। अपने समय की नवीनतम काव्य-प्रवृत्तियों को भी लेखक ने गहराई से पकड़ा है, तभी वह आदिकाल से लेकर सातवें, आठवें और नवें दशक तक के विभिन्न कविता-दौरों पर समान रूप से विचार कर सका है।
यही नहीं, इस संस्करण के लिए पुस्तक को संशोधित करते हुए डॉ. श्रोत्रिय ने दो नए अध्याय भी जोड़े थे। इनमें से एक है ‘भारतीय साहित्य की परम्परा’ और दूसरा, ‘नवाँ दशक : बदलाव की नई पहल’।
लम्बी कविता और हिन्दी-नवगीत पर पहले से ही दो अध्याय पुस्तक में हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि डॉ. श्रोत्रिय की यह आलोचना-कृति हिन्दी कविता का एक व्यापक और मूल्यवान अध्ययन है और मनुष्यता के चिर उपेक्षित हिस्से की पीड़ाओं को काव्य-साहित्य की प्रमुख मानवीय चिन्ताओं में शामिल करने का आग्रह करती है।
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Description
सुपरिचित आलोचक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा हिन्दी कविता की यह काल-यात्रा विशेष महत्त्व रखती है। कोई रचना इतिहास के दौर में क्या रूप लेती है और मानवीय संवेदन की अन्तर्धारा उसमें किन माध्यमों से परिचालित होती है, इसकी प्रामाणिक और गहरी समझ डॉ. श्रोत्रिय को थी। अक्सर इतिहास के कालबोध की परवर्ती दृष्टि के दौर में लोग अतीत की परिस्थितियों और कवि-सीमाओं को उपेक्षित कर जाते हैं। इस पुस्तक में ऐसा आवश्यक लचीलापन है, जिससे यह अतीत को जहाँ आधुनिकता की सार्थकता में देख सकी है, वहीं युग और कवि सीमा को भी संवेदित परकाय-प्रवेश की भाँति अपने मौलिक स्वरूप में प्रतिष्ठित कर सकी है। इससे कविता इतिवृत्त नहीं रहती, बल्कि वह आगामी काल-प्रवाह में सक्रिय और प्रेरक साझीदार प्रतीत होती है। अपने समय की नवीनतम काव्य-प्रवृत्तियों को भी लेखक ने गहराई से पकड़ा है, तभी वह आदिकाल से लेकर सातवें, आठवें और नवें दशक तक के विभिन्न कविता-दौरों पर समान रूप से विचार कर सका है।
यही नहीं, इस संस्करण के लिए पुस्तक को संशोधित करते हुए डॉ. श्रोत्रिय ने दो नए अध्याय भी जोड़े थे। इनमें से एक है ‘भारतीय साहित्य की परम्परा’ और दूसरा, ‘नवाँ दशक : बदलाव की नई पहल’।
लम्बी कविता और हिन्दी-नवगीत पर पहले से ही दो अध्याय पुस्तक में हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि डॉ. श्रोत्रिय की यह आलोचना-कृति हिन्दी कविता का एक व्यापक और मूल्यवान अध्ययन है और मनुष्यता के चिर उपेक्षित हिस्से की पीड़ाओं को काव्य-साहित्य की प्रमुख मानवीय चिन्ताओं में शामिल करने का आग्रह करती है।
About Author
प्रभाकर श्रोत्रिय
प्रख्यात आलोचक, नाटककार, निबन्धकार। प्रखर सन्तुलित : दृष्टि। सर्जनात्मक भाषा और विवेचना की मौलिक भंगिमा। नई कविता का सौन्दर्यशास्त्र, नई और समकालीन कविता का प्रामाणिक मूल्यांकन, साहित्येतिहास का पुनर्मूल्यन, छायावाद, द्विवेदी-युग, प्रगतिवाद इत्यादि का नव विवेचन। दो दर्जन मौलिक और एक दर्जन सम्पादित ग्रन्थ।
प्रमुख कृतियाँ : ‘कविता की तीसरी आँख’, ‘रचना एक यातना है’, ‘जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता’, ‘संवाद’ (नई कविता-आलोचना), ‘कालयात्री है कविता’, ‘अतीत के हंस : मैथिलीशरण गुप्त’, ‘प्रसाद साहित्य में प्रेमतत्त्व’, ‘हिन्दी कविता की प्रगतिशील भूमिका’, ‘शमशेर बहादुर सिंह’, ‘नरेश मेहता’, ‘सुमन : मनुष्य और सृष्टा’, ‘रामविलास शर्मा : व्यक्ति और कवि’ (आलोचना); ‘धर्मवीर भारती’ (सं.), ‘कविता की तीसरी आँख’ का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘The Quintessence of Poetry’ (नाटक); ‘इला’, ‘साँच कहूँ तो...’, ‘फिर से जहाँपनाह’। ‘इला’ का ग्यारह भारतीय भाषाओं में अनुवाद आदि।
सम्मान : ‘अखिल भारतीय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान), ‘अ.भा. रामकृष्ण बेनीपुरी पुरस्कार’ (बिहार सरकार, भाषा विभाग), ‘आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार’ (मध्य प्रदेश साहित्य परिषद), ‘रामेश्वर गुरु पत्रकारिता पुरस्कार’, ‘श्री शरद सम्मान’ आदि।
कार्य : निदेशक भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता; निदेशक, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली;
सम्पादक : ‘वागर्थ’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘साक्षात्कार’, ‘अक्षरा’, ‘पूर्वग्रह’।
विदेश यात्रा : नार्वे।
सदस्य : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, विद्या परिषद महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय।
परामर्शदाता : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी (हूज. हू. हिन्दी), नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली लक्ष्मीदेवी ललित कला अकादमी, कानपुर।
निधन : 15 सितम्बर, 2016
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