SaleHardback
Kaal Kothri
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
स्वदेश दीपक
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
स्वदेश दीपक
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹150 ₹149
Save: 1%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789352295272
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
55
नाट्यात्मक कहानियों के लिए पहचाने गये स्वदेश दीपक हिन्दी में कहानी के रंगमंच की अवधारणा को विकसित करनेवाले लेखकों में से हैं । सुगठित चरित्रांकन, चुस्त संवाद और गत्यात्मक घटनाएँ उनकी रचनाओं की ख़ास विशेषताएँ हैं। रजत, मीना, अंगद, कौल, राजीव, महेन्द्र, कान्ता, बलवन्त जैसे रंगजीवी और शर्मा तथा वसुंधरा जैसे सत्ताश्रयी परजीवी इस नाटक में जो परिवेश रचते हैं उसमें कला, काल बन जाती है। अभावग्रस्त रंगमंच यहाँ काल कोठरी के रूप में उभरता है। कलाकारों की विवशता, तकलीफ़ों के बीच थियेटर को ज़िन्दा रखने का जुनून और स्वाभिमान बचाए रखने का जटिल संघर्ष समानान्तर पर्याय बनकर नाटकीय तनाव की सृष्टि करते हैं ।
पद और पहुँच के बल पर साहित्य, कलाएँ, संस्कृति के नियामक संचालक बननेवाले ब्यूरोक्रेट वर्ग के कथित कवियों कला मर्मज्ञों की जड़ता अहं और राजनीति के सामने पराभूत होने की दयनीयता को व्यक्त करते हुए स्वदेश दीपक कई सच्चाइयों को निरावृत कर देते हैं।
रंगकर्मी कलाकार का सामाजिक गुस्सा विरोधाभास से भरे विसंगत यथार्थ को प्रतिबिम्बित करता है। व्यंग्य के माध्यम से लेखक चोट ही नहीं करता बल्कि करुणा को भी गहराता है। यहाँ सक्रिय नाट्य पदावली काव्यभाषा के आवेग से युक्त है। अनायास अर्ध उत्तेजन इसकी विशेषता है।
-हेमंत कुकरेती
Be the first to review “Kaal Kothri” Cancel reply
Description
नाट्यात्मक कहानियों के लिए पहचाने गये स्वदेश दीपक हिन्दी में कहानी के रंगमंच की अवधारणा को विकसित करनेवाले लेखकों में से हैं । सुगठित चरित्रांकन, चुस्त संवाद और गत्यात्मक घटनाएँ उनकी रचनाओं की ख़ास विशेषताएँ हैं। रजत, मीना, अंगद, कौल, राजीव, महेन्द्र, कान्ता, बलवन्त जैसे रंगजीवी और शर्मा तथा वसुंधरा जैसे सत्ताश्रयी परजीवी इस नाटक में जो परिवेश रचते हैं उसमें कला, काल बन जाती है। अभावग्रस्त रंगमंच यहाँ काल कोठरी के रूप में उभरता है। कलाकारों की विवशता, तकलीफ़ों के बीच थियेटर को ज़िन्दा रखने का जुनून और स्वाभिमान बचाए रखने का जटिल संघर्ष समानान्तर पर्याय बनकर नाटकीय तनाव की सृष्टि करते हैं ।
पद और पहुँच के बल पर साहित्य, कलाएँ, संस्कृति के नियामक संचालक बननेवाले ब्यूरोक्रेट वर्ग के कथित कवियों कला मर्मज्ञों की जड़ता अहं और राजनीति के सामने पराभूत होने की दयनीयता को व्यक्त करते हुए स्वदेश दीपक कई सच्चाइयों को निरावृत कर देते हैं।
रंगकर्मी कलाकार का सामाजिक गुस्सा विरोधाभास से भरे विसंगत यथार्थ को प्रतिबिम्बित करता है। व्यंग्य के माध्यम से लेखक चोट ही नहीं करता बल्कि करुणा को भी गहराता है। यहाँ सक्रिय नाट्य पदावली काव्यभाषा के आवेग से युक्त है। अनायास अर्ध उत्तेजन इसकी विशेषता है।
-हेमंत कुकरेती
About Author
स्वदेश दीपक
हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित और प्रशंसित लेखक व नाटककार स्वदेश दीपक का जन्म रावलपिण्डी में 6 अगस्त, 1942 को हुआ। अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बाद उन्होंने लम्बे समय तक गाँधी मेमोरियल कॉलेज, अम्बाला छावनी में अध्यापन किया । दशकों तक अम्बाला ही उनका निवास स्थान रहा। सन् 1991 से 1997 तक दुनिया से कटे रहने के बाद जीवन की ओर बहुआयामी वापसी करते हुए उन्होंने कई कालजयी कृतियाँ रचीं जिनमें मैंने माँडू नहीं देखा और सबसे उदास कविता के साथ-साथ कई कहानियाँ शामिल हैं। वे उन कुछेक नाटककारों में से हैं, जिन्हें संगीत नाटक अकादेमी सम्मान हासिल हुआ। यह सम्मान उन्हें सन् 2004 में प्राप्त हुआ ।
कोर्ट मार्शल स्वदेश दीपक का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। अरविन्द गौड़ के निर्देशन में अस्मिता थियेटर ग्रुप द्वारा भारत भर में इस नाटक का 450 से भी अधिक बार मंचन किया गया।
सन् 2006 की एक सुबह वे टहलने के लिए निकले और घर नहीं लौट पाये। तब से उनका पता लगाने की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Kaal Kothri” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.