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Jis Tarah Ghulti Hai Kaya
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
वाजदा खान
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
वाजदा खान
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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In stock
ISBN:
SKU
9788126319367
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
134
जिस तरह घुलती है काया –
‘जिस तरह घुलती है काया’ युवा कवयित्री वाज़दा ख़ान का पहला कविता संग्रह है। पहला कविता संग्रह होने के बावजूद इन कविताओं में छिपी गहराई अत्यन्त उल्लेखनीय है। ज़िन्दगी में आयी तमाम परेशानियों से जूझने की हिम्मत देती ये कविताएँ, कँटीले सफ़र पर साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती, घायल हुई कोमल संवेदनाओं को नरमी से सहलाती हमारे भीतर उतरती एक ख़ामोश दस्तक-सी लगती हैं। अहसास के धरातल पर खड़े इस संग्रह की कई कविताएँ अनायास ही हमारी उँगली पकड़कर साथ-साथ चलने लगती हैं। अपने भीतर की छटपटाहट को कवयित्री बड़ी बेबाकी से काग़ज़ पर उतार देती है। शब्दचित्रों से गढ़ी हुई ये कविताएँ सचमुच जीवन का कैनवास नज़र आने लगती हैं। जीवन के सारे रंगों को अपनी अनुभवी कूची से लपेटकर वे जब नये जीवनचित्र का सृजन करती हैं तो चित्रकला के अनेक शब्द—अत्यन्त प्रतीकात्मक हो उठते हैं—सदी को करना है आह्वान/ देना है उसे नया आकार/ बना लो आकाश का कैनवास/ घोल दो घनेरे बादलों को/ पैलेट में, बना लो हवाओं को माध्यम/ चित्रित कर दो वक़्त को ।
प्रतिष्ठित चित्रकारों— सल्वाडोर डाली, अमृता शेरगिल, हुसेन का स्मरण कविताओं में जब आता है तो एक नये अर्थ का सृजन कर जाता है—मैला-कुचैला, अधफटा /ब्लाउज, उठंग लहँगा /ओढ़े तार तार ओढ़नी /नन्ही बच्ची हाथ में लिये कटोरा /माँगती रोटी के चन्द लुम्मे/हुसेन की पेंटिंग नहीं /भूखी है दो रातों से। संग्रहणीय और बार-बार पढ़ने योग्य एक कविता-संग्रह।
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Description
जिस तरह घुलती है काया –
‘जिस तरह घुलती है काया’ युवा कवयित्री वाज़दा ख़ान का पहला कविता संग्रह है। पहला कविता संग्रह होने के बावजूद इन कविताओं में छिपी गहराई अत्यन्त उल्लेखनीय है। ज़िन्दगी में आयी तमाम परेशानियों से जूझने की हिम्मत देती ये कविताएँ, कँटीले सफ़र पर साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती, घायल हुई कोमल संवेदनाओं को नरमी से सहलाती हमारे भीतर उतरती एक ख़ामोश दस्तक-सी लगती हैं। अहसास के धरातल पर खड़े इस संग्रह की कई कविताएँ अनायास ही हमारी उँगली पकड़कर साथ-साथ चलने लगती हैं। अपने भीतर की छटपटाहट को कवयित्री बड़ी बेबाकी से काग़ज़ पर उतार देती है। शब्दचित्रों से गढ़ी हुई ये कविताएँ सचमुच जीवन का कैनवास नज़र आने लगती हैं। जीवन के सारे रंगों को अपनी अनुभवी कूची से लपेटकर वे जब नये जीवनचित्र का सृजन करती हैं तो चित्रकला के अनेक शब्द—अत्यन्त प्रतीकात्मक हो उठते हैं—सदी को करना है आह्वान/ देना है उसे नया आकार/ बना लो आकाश का कैनवास/ घोल दो घनेरे बादलों को/ पैलेट में, बना लो हवाओं को माध्यम/ चित्रित कर दो वक़्त को ।
प्रतिष्ठित चित्रकारों— सल्वाडोर डाली, अमृता शेरगिल, हुसेन का स्मरण कविताओं में जब आता है तो एक नये अर्थ का सृजन कर जाता है—मैला-कुचैला, अधफटा /ब्लाउज, उठंग लहँगा /ओढ़े तार तार ओढ़नी /नन्ही बच्ची हाथ में लिये कटोरा /माँगती रोटी के चन्द लुम्मे/हुसेन की पेंटिंग नहीं /भूखी है दो रातों से। संग्रहणीय और बार-बार पढ़ने योग्य एक कविता-संग्रह।
About Author
वाज़दा ख़ान -
जन्म: सिद्धार्थ नगर, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा: राजस्थान की किशनगढ़ शैली की चित्रकला पर वर्ष 2000 में पीएच.डी (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।
पेशे से चित्रकार। पहली बार 1995 में चित्रों की सह-प्रदर्शनी अभिरुचि, वुमेन्स आर्टिस्ट एक्ज़िबिशन द्वारा इलाहाबाद में तब से अनेक प्रदर्शनियों में सहभागिता। दो बार एकल प्रदर्शनी भी लगायी। कला-कार्यशालाओं में भी हिस्सा लेती रही हैं। देश और विदेश में इनके चित्रों का संग्रह।
कविताएँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपती रही हैं। यह पहला कविता संग्रह प्रकाशित।
पुरस्कार/सम्मान: सन् 2000 में त्रिवेणी कला महोत्सव (एनसीज़ेडसीसी, इलाहाबाद) द्वारा सम्मानित। 2004-05 में ललित कला अकादेमी द्वारा अनुदान के रूप में गढ़ी (ललित कला अकादेमी का कला निकेतन) में काम करने का अवसर।
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