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Jersey Number Seven Ki Diary

Publisher:
Sahitya Vimarsh
| Author:
Rakesh Shukla
| Language:
HIndi
| Format:
Paperback
Publisher:
Sahitya Vimarsh
Author:
Rakesh Shukla
Language:
HIndi
Format:
Paperback

198

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In stock

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3-5 Days

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Book Type

ISBN:
SKU 9789392829307 Categories ,
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142

लेंस से मोरों को देखते हुए उसे एकबारगी अहसास हुआ कि वह कितना बदल गयी है तीन-चार महीनों में। पहले मोरों की तरह धीमी लय में चलती थी, सकुचाती थी, वह सुनंदा कहाँ गयी! अब चंचलता बढ़ गयी है, इसीलिए नीचे वाली आंटी कह रही थी – ‘दुल्हनिया, सीढ़ी पर जल्दी-जल्दी चढ़ना-उतरना ठीक नहीं होता।’ वह शेखर से एकदम घुल-मिल गयी थी और अपने पंख खोलती चली जाती थी, मगर मोरों की मानिंद पंख समेटने की कला भूल गयी थी।

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Description

लेंस से मोरों को देखते हुए उसे एकबारगी अहसास हुआ कि वह कितना बदल गयी है तीन-चार महीनों में। पहले मोरों की तरह धीमी लय में चलती थी, सकुचाती थी, वह सुनंदा कहाँ गयी! अब चंचलता बढ़ गयी है, इसीलिए नीचे वाली आंटी कह रही थी – ‘दुल्हनिया, सीढ़ी पर जल्दी-जल्दी चढ़ना-उतरना ठीक नहीं होता।’ वह शेखर से एकदम घुल-मिल गयी थी और अपने पंख खोलती चली जाती थी, मगर मोरों की मानिंद पंख समेटने की कला भूल गयी थी।

About Author

मध्यवर्गीय जीवन, मध्यवर्गीय अभिलाषाएँ और विश्वास – यही मेरा परिचय है। एक विकल्पहीन जीवन जीते हुए तिनके बटोरता गया तथा इनसे शिल्प रचने की उधेड़बुन में जुटा रहा फिर–फिर।

समाज सम्बन्धों से बनता है, लेकिन सम्बन्धों को गड्ड–मड्ड होते देखना जीवन की बड़ी उपलब्धि रही। दूसरी बात, शुरू से आकाश, समन्दर आदि आकर्षित करते रहे हैं। जो अछोर है, अथाह है, वह खींचता रहा। जीवन जैसे–जैसे बढ़ा, पाया कि जीवन भी भीतर से विस्तृत व अथाह है। कदाचित इन दो अनुभवों ने कथालेखन की ओर धकेला। इनमें कई कहानियों के केन्द्र में प्रेम है, जो समाज की कसौटी पर है। मौजूदा समय में प्रेम विश्वास का सहचर न होकर इच्छा का सहचर है और इच्छाओं से समस्याएँ जन्मती हैं, इसलिए कथानक के रंग, बिम्ब और स्वीकृतियाँ बदल रही हैं।

दो पुस्तकें ‘छायावादोत्तर आख्यान काव्य‘ तथा ‘समवाय‘ प्रकाशित। बीते तीन दशकों से विभिन्न विषयों पर बेतरतीब लेखन। विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में लेखादि प्रकाशित तथा आकाशवाणी रायपुर से अनेक बार प्रसारित। सम्प्रति छत्तीसगढ़ राज्य सचिवालय में अधिकारी।

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