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Jati Hi Poochho Sadhu Ki
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विजय तेंदुलकर, डॉ. सुनील देवधर द्वारा मराठी से हिंदी में अनुवाद
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विजय तेंदुलकर, डॉ. सुनील देवधर द्वारा मराठी से हिंदी में अनुवाद
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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9789387409248
Category Hindi
Category: Hindi
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116
विजय तेंडुलकर के नाटक सामाजिक जड़ता और विकृतियों पर तीखा प्रहार करते हैं। यह नाटक हमारे समाज में सदियों से चली आ रही जाति व्यवस्था और उसके गहन दुष्प्रभाव पर करारा व्यंय करता है। यह विसंगति आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमारे समाज में उपस्थित है। शिक्षा व्यवस्था भी मनुष्यों के मन में विभेद उत्पन्न करने वाली इन बेड़ियों को तोड़ पाने में असफल रही है। यह नाटक हमारी शिक्षा व्यवस्था की उस कमी की ओर भी संकेत करता है जो डिग्रीधारी युवा तो पैदा कर देती है, पर वह समाज की उन्नति के लिए सही अर्थों में अपना कोई रचनात्मक योगदान देने में अक्षम ही साबित होती है। ‘नो वेकेंसी’ के इस भयावह समय में शिक्षा व्यवस्था ने बेरोजगार युवाओं की फौज खड़ी कर दी है। यह नाटक उसी प्रश्न से रूबरू कराता है और इस विकट समस्या पर विचार करने को बाध्य करता है।
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Description
विजय तेंडुलकर के नाटक सामाजिक जड़ता और विकृतियों पर तीखा प्रहार करते हैं। यह नाटक हमारे समाज में सदियों से चली आ रही जाति व्यवस्था और उसके गहन दुष्प्रभाव पर करारा व्यंय करता है। यह विसंगति आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमारे समाज में उपस्थित है। शिक्षा व्यवस्था भी मनुष्यों के मन में विभेद उत्पन्न करने वाली इन बेड़ियों को तोड़ पाने में असफल रही है। यह नाटक हमारी शिक्षा व्यवस्था की उस कमी की ओर भी संकेत करता है जो डिग्रीधारी युवा तो पैदा कर देती है, पर वह समाज की उन्नति के लिए सही अर्थों में अपना कोई रचनात्मक योगदान देने में अक्षम ही साबित होती है। ‘नो वेकेंसी’ के इस भयावह समय में शिक्षा व्यवस्था ने बेरोजगार युवाओं की फौज खड़ी कर दी है। यह नाटक उसी प्रश्न से रूबरू कराता है और इस विकट समस्या पर विचार करने को बाध्य करता है।
About Author
विजय तेंडुलकर वर्तमान भारतीय रंग-परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण नाटककार के रूप में समादृत श्री तेंडुलकर मूलतः मराठी के साहित्यकार हैं जिनका जन्म 7 जनवरी, 1928 को हुआ। उन्होंने लगभग तीस नाटकों तथा दो दर्जन एकांकियों की रचना की है, जिनमें से अनेक आधुनिक भारतीय रंगमंच की। क्लासिक कृतियों के रूप में शुमार होते हैं। उनके नाटकों में प्रमुख हैं-शांतता! कोर्ट चालू आहे (1967), सखाराम बाइंडर (1972), कमला (1981), कन्यादान (1983)। श्री तेंडुलकर के नाटक घासीराम कोतवाल (1972) की मूल मराठी में और अनूदित रूप में देश और विदेश में छह हज़ार से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। मराठी लोकशैली, संगीत तथा आधुनिक रंगमंचीय तकनीक से सम्पन्न यह नाटक दुनिया के सर्वाधिक मंचित होने वाले नाटकों में से एक का दर्जा पा चुका है। श्री तेंडलकर ने बच्चों के लिए भी ग्यारह नाटकों की रचना की है। उनकी कहानियों के चार संग्रह और सामाजिक आलोचना व साहित्यिक लेखों के पाँच संग्रह प्रकाशित हो। चुके हैं। इन्होंने दूसरी भाषाओं से मराठी में अनुवाद किये हैं, जिसके तहत नौ उपन्यास, दो जीवनियाँ और पाँच नाटक भी उनके कृतित्व में शामिल हैं। इसके अलावा बीस के करीब फ़िल्मों का लेखन। हिन्दी की निशान्त, मन्थन, आक्रोश, अर्धसत्य आदि। दूरदर्शन धारावाहिक स्वयंसिद्ध, प्रिय तेंडुलकर टॉक शो। सम्मान पुरस्कार : नेहरू फेलोशिप (1973-74), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में अभ्यागत प्राध्यापक के रूप में (1979-1981), पद्म भूषण (1984), फ़िल्मफेयर से पुरस्कृत। 19 मई, 2008 को पुणे (महाराष्ट्र) में महाप्रस्थान।
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