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Jahan Favvare Lahoo Rote Hain

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
नासिरा शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
नासिरा शर्मा
Language:
Hindi
Format:
Paperback

535

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SKU 9788194873617 Category
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436

जहाँ फ़व्वारे लहू रोते हैं के रिपोर्ताज उस समय के साक्षी हैं जो सुप्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा की नज़रों के सामने से न केवल गुज़रा है बल्कि उसकी बारीकियों को भी उन्होंने पकड़ा है। इसमें उसी दौर के बड़े हस्ताक्षरों एवं सियासतदाँ के साथ तमाम साक्षात्कार एवं वार्ताओं के ज़रिये जीवन्त संवाद भी क़ायम किये हैं। यह वही समय था जिसमें ईरान-क्रान्ति की नयी आहट के साथ-साथ लेखिका ने क्रान्ति की एक चश्मदीद गवाह के तौर पर साहित्य में हस्ताक्षर भी किये। दुनिया की अन्य क्रान्तियों की तरह इसमें भी खूब खून बहा। ईरानी क्रान्ति के बाद के वैश्विक परिदृश्य को भी इस किताब में मज़बूती से रखा गया है। ज़ाहिर है, क्रान्ति से पहले और बाद के दौर की धड़कनों को पकड़ते हुए तमाम उम्मीदों एवं प्रभावों को लेखिका ने खूबसूरत शैली और आकर्षक भाषा में पाठकों के सामने रखा है।

मध्य-पूर्वी मुल्कों के साथ-साथ दूसरे और मुल्कों की सामाजिक एवं राजनैतिक उथल-पुथल का सूक्ष्म अवलोकन इस किताब का मूल स्वरूप है ।

यह किताब ईरान-इराक़ युद्ध के सभी सन्दर्भों को उठाते हुए तबाही की संस्कृति के प्रभावों को हमारे सामने रखती है। जिससे फ़क़त पड़ोसी मुल्क ही प्रभावित नहीं हुए, बल्कि पूरा विश्व इसकी चपेट में आ गया था । इसके दूरगामी प्रभाव हम सबने देखे भी हैं और किसी भी युद्ध की विभीषिका देशों को कैसे तबाह कर देती है-इसे लेखिका ने समस्त प्रमाणों एवं साक्ष्यों के साथ किताब में रखा है।

यह किताब ईरान एवं मध्य-पूर्वी मुल्क एवं अन्य देशों पर न केवल एक मुस्तनद दस्तावेज़ है, बल्कि उन मुल्कों के भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को हमारे सामने खुलकर रखती है।

यह अपनी तरह का पहला और अनूठा काम है जो हमें उस कालखण्ड के विश्व इतिहास को समझने में मदद करता है।

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Description

जहाँ फ़व्वारे लहू रोते हैं के रिपोर्ताज उस समय के साक्षी हैं जो सुप्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा की नज़रों के सामने से न केवल गुज़रा है बल्कि उसकी बारीकियों को भी उन्होंने पकड़ा है। इसमें उसी दौर के बड़े हस्ताक्षरों एवं सियासतदाँ के साथ तमाम साक्षात्कार एवं वार्ताओं के ज़रिये जीवन्त संवाद भी क़ायम किये हैं। यह वही समय था जिसमें ईरान-क्रान्ति की नयी आहट के साथ-साथ लेखिका ने क्रान्ति की एक चश्मदीद गवाह के तौर पर साहित्य में हस्ताक्षर भी किये। दुनिया की अन्य क्रान्तियों की तरह इसमें भी खूब खून बहा। ईरानी क्रान्ति के बाद के वैश्विक परिदृश्य को भी इस किताब में मज़बूती से रखा गया है। ज़ाहिर है, क्रान्ति से पहले और बाद के दौर की धड़कनों को पकड़ते हुए तमाम उम्मीदों एवं प्रभावों को लेखिका ने खूबसूरत शैली और आकर्षक भाषा में पाठकों के सामने रखा है।

मध्य-पूर्वी मुल्कों के साथ-साथ दूसरे और मुल्कों की सामाजिक एवं राजनैतिक उथल-पुथल का सूक्ष्म अवलोकन इस किताब का मूल स्वरूप है ।

यह किताब ईरान-इराक़ युद्ध के सभी सन्दर्भों को उठाते हुए तबाही की संस्कृति के प्रभावों को हमारे सामने रखती है। जिससे फ़क़त पड़ोसी मुल्क ही प्रभावित नहीं हुए, बल्कि पूरा विश्व इसकी चपेट में आ गया था । इसके दूरगामी प्रभाव हम सबने देखे भी हैं और किसी भी युद्ध की विभीषिका देशों को कैसे तबाह कर देती है-इसे लेखिका ने समस्त प्रमाणों एवं साक्ष्यों के साथ किताब में रखा है।

यह किताब ईरान एवं मध्य-पूर्वी मुल्क एवं अन्य देशों पर न केवल एक मुस्तनद दस्तावेज़ है, बल्कि उन मुल्कों के भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को हमारे सामने खुलकर रखती है।

यह अपनी तरह का पहला और अनूठा काम है जो हमें उस कालखण्ड के विश्व इतिहास को समझने में मदद करता है।

About Author

नासिरा शर्मा का जन्म सन् 1948 में इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने फ़ारसी भाषा साहित्य में एम.ए. किया। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, पश्तो एवं फारसी पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किये, जो बहुचर्चित हुए। ईरानी युद्धबन्दियों पर जर्मन व फ्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी फ़िल्म में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सर्जनात्मक लेखन में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के साथ ही स्वतन्त्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। प्रकाशन : उपन्यास : सात नदियाँ एक समन्दर, शाल्मली, ठीकरे की मँगनी, ज़िन्दा मुहावरे, कुइयाँ-जान, ज़ीरो रोड, अक्षयवट, अजनबी ज़जीरा, पारिजात, काग़ज़ की नाव, शब्द पखेरू, दूसरी जन्नत, अल्फ़ा-बीटा-गामा; कहानी-संग्रह : शामी काग़ज़, पत्थर गली, संगसार, इब्ने मरियम, सबीना के चालीस चोर, ख़ुदा की वापसी, बुतख़ाना, दूसरा ताजमहल, इन्सानी नस्ल; सम्पूर्ण अध्ययन अफ़ग़ानिस्तान : बुज़कशी का मैदान, (दो खण्डों में) मरजीना का देश इराक़; लेख-संग्रह: राष्ट्र और मुसलमान, औरत के लिए औरत, औरत की दुनिया, वो एक कुमारबाज़ थी, औरत की आवाज़; रिपोर्ताज : जहाँ फ़व्वारे लहू रोते हैं; संस्मरण : यादों के गलियारे; अनुवाद : शाहनामा-ए-फ़िरदौसी, गुलिस्तान-ए-सादी, क़िस्सा जाम का, काली छोटी मछली, पोयम ऑफ़ प्रोटेस्ट, बर्निंग पायर, अदब में बायीं पसली (छह खण्डों में ); आलोचना : किताब के बहाने, सबसे पुराना दरख़्त; विविध: जब समय बदल रहा हो इतिहास; बाल-साहित्य : भूतों का मैकडोनल, दिल्लू दीमक, बदलू और उसकी मित्रमण्डली (उपन्यास) । गुल्लू, गिल्लो बी, दर्द का रिश्ता, चितकबरी (कहानी-संग्रह); नवसाक्षरों के लिए : धन्यवाद, पढ़ने का हक़, सच्ची सहेली, एक थी सुल्ताना, टी. वी. फ़िल्म व सीरियल : 'तड़प', 'माँ', 'काली मोहिनी', 'आया बसन्त सखी', 'सेमल का दरख़्त' (टेलीफ़िल्म), 'शाल्मली', 'दो बहनें', 'वापसी' (सीरियल)। सम्पर्क : डी-37/754, छत्तरपुर हिल्स, नयी दिल्ली-74 ।

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